दो दशक में चौपट हुई ग्वालियर की 15 खूबसूरत पहाड़ियां, कांग्रेस ने शिवराज सरकार को बताया माफिया राज

7/29/2022 5:46:58 PM

ग्वालियर (अंकुर जैन): शहर के बीचोंबीच दो दशक में 15 से ज्यादा पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं और ज्यादातर पहाड़ियों पर कब्जा हो चुका है, तो कुछ पहाड़ियों को माफिया ने खुर्द-बुर्द कर दिया है। शहर में 15 प्रमुख पहाड़ियां हैं। राजस्व और वन विभाग के अंतर्गत आने वाली ये पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। इन पहाड़ियों पर माफिया या बाहर से आए लोगों ने कब्जा कर लिया है।खास बात यह है कि अब इन पहाड़ियों को लेकर न तो राजस्व विभाग कुछ बोलने को तैयार है न वन विभाग के अफसर। तो आइए हम बताते हैं कि कुछ खास पहाड़ियां किस हाल में हैं।पहाड़ियों के गायब होने का खामियाजा ग्वालियर शहर के नागरिक भी लगातार भुगत रहे हैं। यहां प्रदूषण बढ़ रहा है और तापमान भी। बारिश का स्तर भी अनियमित हो गया है।

महलगांव पहाड़ी: यह पहाड़ी हाउसिंग बोर्ड को रहवासी क्षेत्र विकसित करने के लिए दी गई थी। इसके बाद नीचे क्षेत्र में निजी कॉलोनी बसा दी गई। इस पर पांच सौ से ज्यादा मकान है, जिनमें अब लगभग 6 हजार लोग रहते हैं।

कैंसर पहाड़ी: कैंसर हॉस्पिटल और शोध संस्थान को यहां चिकित्सीय कार्य और औषधीय पौधों का विकास करने की लीज दी गई थी। पहाड़ी पर हॉस्पिटल सिर्फ एक क्षेत्र में है। बाकी की 40 फीसदी दूसरी जगह अतिक्रमण में है। मांढरे की माता के आसपास के अवैध आवासीय क्षेत्र को हटाने के लिए कई बार निर्देश हो चुके हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव और अफसरों की लापरवाही ने अतिक्रमण को और बढ़ावा दिया है। यहां सैकड़ों मकान तो अब पक्के बन चुके हैं, जबकि बड़ी संख्या में कच्चे मकान भी है। यहां सड़क, बिजली और पानी सब का इंतजाम है।

मोतीझील पहाड़ी: इस पहाड़ी पर भूमाफिया ने 1.50 लाख से 4 लाख तक की कीमत के प्लॉट बेचे हैं। 2016 में कोर्ट के आदेश पर यहां से 250 अतिक्रमण हटाए गए थे।लेकिन बाद में राजस्व और नगर निगम के अधिकारिों की लापरवाही के कारण दोबारा से अतिक्रमण हो गया। इस पहाड़ी पर अब बाकायदा कॉलोनियां विकसित हो चुकी है।

रहमत नगर पहाड़ी: पहाड़ी पर भूमाफिया ने लॉटरी के जरिए 50 हजार से 2 लाख तक की कीमत में प्लॉट बेचे हैं। 2016 में कोर्ट के आदेश पर यहां से 400 अतिक्रमण हटाए गए थे। लेकिन बाद में राजस्व नगर निगम के अधिकारी द्वारा ध्यान न दिए जाने की जाने से द्वारा अतिक्रमण हो गया।

सत्यनारायण की टेकरी: शहर के बीच मौजूद इस पहाड़ी पर तीन से चार हजार अतिक्रमण हैं। कोर्ट इस पहाड़ी पर बसावट को अवैध घोषित कर चुका है। इस पहाड़ी पर मंदिर के बहाने कब्जे की शुरुआत हुई और अब कॉलोनियों से घिरकर पहाड़ी गायब ही हो गई।

गोल पहाड़िया: बीते दो दशक में इस पहाड़ी पर वैध और अवैध बसावट काबिज है। घर बनाने के लिए पूरी पहाड़ी काट दी गई। यहां लगभग 5000 मकान हैं। अब इसका सिर्फ नाम ही पहाड़ी है, लेकिन मौके पर पहाड़ का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।

वन विभाग की भूमिका संदिग्ध 

ग्वालियर शहर की इन 15 पहाड़ियों पर करीब 1.5 लाख से ज्यादा लोग कब्जा कर बैठे हैं। वहीं ये आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वहीं, फॉरेस्ट विभाग के अफसरों पर पहाड़ियों पर अतिक्रमण रोकने की जिम्मेदारी है। क्योंकि इनका स्वामित्व उसी का है। वह खामोश है। यहां तक मीडिया में भी नहीं बोल पा रहे हैं। क्योंकि उन पर पहाड़ियों पर पैसा लेकर कब्जा कराने के आरोप भी लगते रहे हैं। उसके अफसर इसके लिए राजस्व अमले को जिम्मेदार मानते हैं।

वन और राजस्व विभाग आमने सामने 

इस मामले में डीएफओ ब्रिजेन्द्र श्रीवास्तव का कहना हैं कि जब भी अतिक्रमण की खबर मिलती है, हम उसे तत्काल तोड़ते हैं। वह पहाड़ियों के अतिक्रमण पर चुप्पी साध जाते हैं। जबकि राजस्व अधिकारी कहते हैं कि वन अफसर जब अतिक्रमण हटाने के लिए अमला मांगते हैं, हम तत्काल देते हैं। उनके कहने पर 2 साल पहले कलेक्ट्रेट के आगे की पहाड़ी पर कब्जा होने से तत्काल रोका था।

तीन पहाड़ियों से अतिक्रमण हटाने का प्लान  

पहाड़ियों पर अतिक्रमण देखकर ग्वालियर की शहरी क्षेत्र और आसपास मौजूद पहाड़ियों और सरकारी जमीनों पर भू माफिया के लगातार बढ़ती कब्जे को देख हाल में ही 3 स्थानों पर मौजूद पारियों को चिन्हित किया है। जहां से जल्द ही अतिक्रमणकारियों से जमीन को मुक्त कराने का प्लान है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर पहाड़ियों पर ऐसे कब्जाधारी है, जिन्होंने धार्मिक स्थान पर कब्जा करने की शुरुआत की है। ऐसे में प्रशासन के सामने मौजूदा वक्त में मुश्किल थोड़ी ज्यादा है। इन अतिक्रमणों को लेकर अनेक बार कोर्ट तोड़ने का आदेश दे चुका है। लेकिन अपील के बाद ये फिर लंबित हो जाते हैं। राजस्व विभाग के अफसर हो या वन विभाग के वे भी कोर्ट में पक्ष रखने नही जाते लिहाजा, मामले लटककर ही रह जाते हैं।

एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप 

नगर निगम अधिकारी कैमरे के सामने तो कुछ नहीं बोलते लेकिन निजी बातचीत में कहते हैं कि ज्यादातर अतिक्रमण या तो वन विभाग की पहाड़ियों पर है या राजस्व विभाग की। लेकिन न तो तहसीलदार और न ही डीएफओ इसके लिए पहल करते हैं। नगर निगम उन्हें साधन उपलब्ध कराता है लेकिन प्रक्रिया तो उन्हें ही पूरी करनी पड़ेगी। जबकि राजस्व और वन से जुड़े अफसर इसका ठीकरा निगम पर फोड़ते हुए कहते है। सब निगम की मिली भगत से ही होता है।

भूमाफिया और बीजेपी नेताओं का गठबंधन: कांग्रेस

कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता आरपी सिंह कहते हैं कि मध्य प्रदेश में 15 साल बीजेपी की सरकार रही, तो भूमाफिया और बीजेपी नेताओं के गठजोड़ से पहाड़िया बेची गई। इनमें गैर कानूनी ढंग से सुविधाएं दी गई। चूंकि इसमें सरकार के लोग शामिल थे। लिहाजा प्रशासन बेवस होकर देखता रहा और पहाड़िया गायब होती गई।

कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी की सफाई   

वहीं बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि देखिए कोई माफिया राज, शिवराज मामा (shivraj mama) के राज में नहीं चला। जीरो टैलेंट से हमारी जो शिवराज मामा का बुलडोजर है। जो सभी माफियाओं पर चलता है, चाहे वह बेटियों पर परेशान करने का मामला हो या या जमीनों पर कब्जा करने का मामला हो। इन सभी मामलों पर चलेगा सोन चिरैया अभ्यारण (Sonchiraiya forest) के तहत जो माफियाओं ने आपके करे हैं, उन पर बुलडोजर रुकेगा नहीं।

Devendra Singh

This news is News Editor Devendra Singh