आखिर नरोत्तम मिश्रा के दिल में क्या है ?
5/29/2020 6:36:44 PM
भोपाल (हेमंत चतुर्वेदी): नरोत्तम मिश्रा की कार्यशैली के साथ उनके व्यंग और हास परिहासों में उनकी महत्वाकांक्षा की झलक को आसानी से देखा जा सकता है, जिसे देख और समझ तो हर कोई रहा है, लेकिन न जाने क्यों इसे लेकर प्रदेश की सियासत में एक चुप्पी कायम है। न तो पक्ष-विपक्ष इस पर कुछ बोल रहे हैं और न ही राजनीति की बाल की खाल निकालने वाले तमाम खबरनवीस।
शुरूआत एक दिन पहले के सियासी हंसी ठट्ठे से करते हैं...
पत्रकारों के बीच बैठकर प्रदेश में सत्ता पलट संबंधी अपने अनुभवों को साझा करते हुए नरोत्तम मिश्रा अपने चिर परिचित अंदाज में नजर आ रहे थे। बात आगे बढ़ी, तो कहा, कि कांग्रेस के एक नेता का कहना था, कि कोई सात जन्मों तक कमलनाथ की सरकार नहीं गिरा पाएगा, बकौल मिश्रा- यह मेरा सातवां ही जन्म था। नरोत्तम मिश्रा का इतना ही कहना था, कि पत्रकारों के साथ उनके पीछे बैठे समर्थकों की ऐसी हंसी सुनने को मिली, जैसे ये जुमला उन्होंने पहली दफा सुना हो। यह बयान जैसे ही मिश्रा के मुंह से निकला, तो प्रदेश के समाचार चैनलों के साथ व्हाट्सअप ग्रुप पर घूमने लगा, फेसबुक पर शेयर होने लगा, और मिश्रा समर्थित लॉबी यह साबित करने में जुट गई, कि प्रदेश में भाजपा की वापसी नरोत्तम मिश्रा के ही जरिए हुई है।
दरअसल नरोत्तम मिश्रा के बारे में जिक्र करने का आज एक विशेष उद्देश्य है, क्योंकि इस वक्त नरोत्तम मिश्रा को लेकर प्रदेश की सियासत में एक रहस्य की स्थिति कायम है। ये बात अभी तक लोगों के गले नहीं उतर रही, कि ऑपरेशन लोटस पार्ट -1 के सूत्रधार माने जाने वाले, कमलनाथ सरकार से हर मोर्चे पर सीधे टक्कर लेने वाले और भाजपा हाईकमान के आंख के तारे के तौर पर पहचाने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा को आखिरकार वो कुर्सी क्यों नहीं मिल सकी, जिसका उन्हें सबसे प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। क्या 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव उनके लिए दीवार बन गए, या फिर उनका ब्राह्मण होना उनकी इस राह में रोड़ा बन गया, सवाल यह भी है, कि क्या नरोत्तम मिश्रा दूसरे नंबर की स्थिति पाकर खुश हैं ? या फिर उन्हें अभी भी कहीं से उम्मीद की कोई किरण नजर आ रही है, जो उन्हें न्याय दे सके ?
अब जरा दूसरी स्थिति पर गौर कीजिए, दरसअल पिछले कुछ दिनों में नरोत्तम मिश्रा के बंगले पर एक खास तरह की गणेश परिक्रमा का दौर जारी है। इस दौरान निर्दलीय, सपा और बसपा के विधायक नरोत्तम मिश्रा के पास पहुंच रहे हैं और सरकार में अपनी भागीदारी को लेकर चर्चा कर रहे है। इन गणेश परिक्रमाओं पर बहुत खबरें बनीं, लेकिन इस विषय में किसी ने कुछ भी सोचने की जहमत नहीं उठाई, या फिर सोच समझकर भी इसे अनदेखा कर दिया, कि कोई विधायक सरकार में अपनी भागीदारी के लिए मुख्यमंत्री के पास न जाते हुए गृहमंत्री के पास क्यों जा रहा है ? जबकि मुख्यमंत्री इस वक्त सातों दिन भोपाल में है, जबकि नरोत्तम मिश्रा राजधानी को कुछ ही समय दे पाते हैं। मतलब साफ है, कि ये बात बाकी के विधायक भी समझते हैं, कि इस बार प्रदेश भाजपा और सरकार से जुड़े फैसले शिवराज सिंह के हाथ में न होकर भाजपा हाईकमान के हाथ में है, और भाजपा हाईकमान तक पहुंचने के लिए नरोत्तम मिश्रा से बेहतर रास्ता कोई नहीं है।
जब दूर बैठे लोग नरोत्तम मिश्रा के कद और पहुंच से वाकिफ है, तो सियासत का मझा हुआ ये खिलाड़ी निश्चित तौर पर इस स्थिति को और बारीकी से समझ रहा होगा, और यह समझ उनके दिल में एक तरह की अपेक्षा को भी जन्म दे रही होगी, जो फिलहाल उनकी जुबां पर नहीं आई और इसे कुबूल करवाना भी काफी मुश्किल काम है। लेकिन नरोत्तम मिश्रा की कार्यशैली के साथ उनके व्यंग और हास परिहासों में इसकी झलक को आसानी से देखा जा सकता है, जिसे देख और समझ तो हर कोई रहा है, लेकिन न जाने क्यों इसे लेकर प्रदेश की सियासत में एक चुप्पी कायम है। न तो पक्ष-विपक्ष इस पर कुछ बोल रहे हैं और न ही राजनीति की बाल की खाल निकालने वाले तमाम खबरनवीस। लिहाजा ये मसला और रहस्यमयी होता जा रहा है, और यह सवाल भी हर बीतते दिन के साथ और जटिल होता जा रहा है, कि आखिर नरोत्तम मिश्रा के दिल में क्या है ?