बार काउंसिल ऑफ इंडिया के आदेशों को नहीं मान रहे कॉलेज और युनिवर्सिटी, नहीं कर रहे फीस माफ

8/7/2020 11:41:18 PM

जबलपुर (विवेक तिवारी): मध्यप्रदेश के विधि कानून के छात्रों को राहत देने का आदेश 27 जुलाई को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने जारी किया। इस आदेश में कहा गया कि मध्यप्रदेश के समस्त विश्वविद्यालय और कॉलेज विधि छात्रों की फीस में रियायत करें, साथ ही किस्त में ही फीस लें। इसके अलावा अगर कोई छात्र फीस देने में सक्षम नहीं है, तो उसकी फीस माफ की जाए ऐसे आदेश बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने जारी किए। लेकिन इस आदेश के जारी होने के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने आदेश को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया। इसके साथ ही मध्यप्रदेश की तमाम यूनिवर्सिटी भी इस आदेश को कचरे के डिब्बे में डाल चुकी हैं तो वही कॉलेज तो किसी की सुनने को ही तैयार नहीं है। लगातार विधि छात्रों से फीस भरने का दबाव बनाया जा रहा है।
 

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जनरल प्रोमोशन के बाद भी एग्जाम फॉर्म...
मध्य प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालय ऐसे पाठ्यक्रम पर भी परीक्षा फॉर्म भरवा रहे हैं, जिनका जनरल प्रोमोशन का आदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिया है। वहीं फाइनल ईयर के छात्रों को कहा गया है, कि वे परीक्षा सितंबर माह में देंगे लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश की तमाम यूनिवर्सिटी उच्च शिक्षा विभाग के आदेश का इंतजार कर रही है तो अपनी मनमानी तरीके से परीक्षा फॉर्म भरने की तिथि भी जारी कर चुकी है। परेशान छात्र समझ नहीं पा रहे हैं, कि वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सुनें या, उच्च शिक्षा विभाग की, या फिर विश्वविद्यालय की सुनें या फिर कॉलेज की सुने। सबके अपने अपने अलग आदेश हैं। विधि के तमाम प्राइवेट कॉलेज बिना फीस के फॉर्म भरने नहीं देते, पहले ऑनलाइन फॉर्म जमा करने के लिए कॉलेज से अप्रूवल लेना पड़ता है। उसके बाद ही विश्वविद्यालय में कोई छात्र फॉर्म परीक्षा का जमा कर सकता है। विश्वविद्यालय तो इतना अनजान हो गया है कि जनरल प्रमोशन प्राप्त पाठ्यक्रमों पर भी वह फॉर्म भरवा रहा है। जिसमें सिर्फ परीक्षा का रिजल्ट ही बनना है उसने भी बाकायदा 2500 रुपये से ऊपर की फीस जमा करवाई जा रही है। तर्क दिया जा रहा है कि पास करने की प्रक्रिया में यह फीस जरूरी होगी, लेकिन सवाल यही उठता है कि क्या 25 सौ रुपए में एक मार्कशीट बनेगी। जब परीक्षा का आयोजन नहीं होना है। पेपर किसी तरह के छपने नहीं है, तब आखिर फीस किस बात की, यह सवाल लगातार छात्र उठा रहे हैं और जब बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 27 जुलाई को एक आदेश जारी किया, जिसमें साफ कर दिया गया है की विधि छात्रों को फीस में रियायत दी जाए, उनकी फीस माफ की जाए, बेवजह उन पर दबाव न बनाया जाए, इसके बावजूद मध्य प्रदेश के शिक्षण संस्थान किसी को सुनने को तैयार नहीं है>

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इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की बात करें या फिर हम जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की, सभी जगह एक जैसे ही आदेश हैं। लगातार फीस का दबाव छात्रों के ऊपर बढ़ता जा रहा है बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक बड़ी कोशिश की लेकिन यहां पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के आदेश को सुनने के लिए ही कोई तैयार नहीं है। 10 दिन हो चुके हैं आदेश को जारी हुए लेकिन न तो विश्वविद्यालय ने इस पर कोई संज्ञान लिया ना कोई कॉलेज ने।

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असमंजस में फंसे छात्र हो रहे परेशान...
कोरोना काल में सभी छात्र बेहद परेशान है। अभिभावकों के रोजगार छिन गए हैं, जो व्यापार करते थे उनका व्यापार नहीं चल रहा है। आर्थिक संकट से गुजर रहे दौर में शिक्षा स्तर को बेहतर करने के लिए और छात्रों को राहत देने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया की पहल बेहतरीन रही। लेकिन जब आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। तब सवाल यही उठता है कि लॉ एजुकेशन की सर्वोच्च संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया का क्या अस्तित्व,


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Vikas kumar

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