किस्सा कुर्सी का, बात ‘चित्रकूट’ विधानसभा की
10/29/2018 6:25:04 PM
सतना: जिले के चित्रकूट को भगवान श्रीराम की नगरी के नाम से जाना जाता है। वनों और पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र पर हमेशा से कांग्रेस का राज रहा है, और बीजेपी सत्ता हथियाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती। यही वजह है कि राजनीतिक दृष्टि से महत्व रखने वाला यह क्षेत्र आज तक पिछड़ा हुआ है। यह आने वाला चुनाव ही निर्धारित करेगा कि चित्रकूट की जनता किसे चुनती है और किसका पलड़ा भारी होगा।
2008 की राजनीतिक स्थिति
भगवान राम के नाम की राजनीति करने वाली भाजपा को यहां की जनता ने हमेशा से नकारा है। 2008 के आकड़ों पर नजर डाले तो बीजेपी के सुरेंद्र सिंह गहरवार ने कांग्रेस के प्रेम सिंह को हराकर पहली बार यहां से जीत हासिल की थी। वहीं, दूसरी तरफ बसपा के रंजन वाजपेई को मात्र 18534 मतों से संतोष करना पड़ा था।
नाम |
पार्टी |
प्राप्त मत |
सुरेन्द्र सिंह |
भाजपा |
24955 |
प्रेम सिंह |
कांग्रेस |
24233 |
रंजन वाजपेई |
बसपा |
18534 |
2013 में किसे मिले कितने मत
2013 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिला। जिसमें प्रेम सिंह ने भाजपा के सुरेन्द्र सिंह को 10970 मतों से हराया और बसपा के तीर्थ प्रसाद कुशवाहा 24275 लेकर तीसरे स्थान पर रहे।
नाम |
पार्टी |
प्राप्त मत |
प्रेम सिंह |
कांग्रेस |
45913 |
सुरेन्द्र सिंह |
भाजपा |
34943 |
तीर्थ प्रसाद |
बसपा |
24275 |
इसके बाद कांग्रेस विधायक प्रेम सिंह का निधन होने के बाद नवंबर 2017 में दोबारा उपचुनाव हुए। जिसमें दोनों पार्टियों में सीट के लिए काफी जदोजहद हुई। इस राजनीतिक दंगल में कांग्रेस के नीलांशु चतुर्वेदी ने बीजेपी के उम्मीदवार शंकर दयाल को हराकर सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा।
आज की स्थिति
2008 को छोड़ दिया जाए तो चित्रकूट की जनता पर सत्ता पक्ष का जादू अब तक नहीं चला है। इस समय यहां पर नीलांशु चतुर्वेदी विधायक हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले चार विधानसभा चुनावों और एक उपचुनाव में कांग्रेस ही लोगों की पहली पसंद रही है।
2013 के चुनाव को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे
चित्रकूट विधानसभा सीट पर हाल ही में हुए उपचुनाव को जीत कर कांग्रेस ने भले ही अपने इस सीट को बरकरार रखा है। लेकिन आगामी चुनाव में कांग्रेस के लिए इसको फतह करना इतना आसान नहीं रहने वाला। दरअसल कई ऐसे मुद्दे हैं, जो आगामी विधानसभा चुनाव में गूंज सकते हैं। जैसे - कुपोषण, बेरोजगारी, भूखमरी, डकैती पर्यटन स्थलों में सुविधाओं की कमी। कांग्रेस ने विकास के नाम पर सिर्फ सरकारी आंकडो की खानापूर्ति ही की है। बड़ी बात यह है कि क्षेत्र मे एक भी उद्योग के साधन मौजूद नहीं है और सरकारी अस्तपाल होने के बावजूद सुविधाऔं का नामोनिशान नहीं है। जाहिर है आनेवाले चुनाव में नेताओं के लिए इन मुद्दो को दरकिनार करना आसान नहीं होगा।।