प्रसिद्ध शायर नैयर दमोही की याद जलसा, देश के प्रसिद्ध मौलानाओं, शायरों ने की शिरकत

1/18/2020 6:03:50 PM

दमोह(इम्तियाज चिश्ती): दमोह में चिश्ती नगर में बीती रात जलसा का आयोजन हुआ। जिसमें देश के प्रसिद्ध मौलाना और शायरों ने शिरक़त की कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मरहूम शायर हाजी नैयर दमोही की याद में इसाले सबाव आयोजित किया गया था। बता दें कि, बीते दिनों ऊर्दू के प्रसिद्ध शायर नैयर दमोही इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। जिन्हें सूफ़ियाना महफिलों में बड़े ही अदब से सुना जाता था।

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आयोजित जलसे में हिंदुस्तान के प्रसिद्ध मौलाना मुफ्ती हज़रत सूफी, अब्दुर्रहमान साहब बरेली, मौलाना शकील अहमद चरखारी उत्तरप्रदेश, मौलाना याकूब केसर रायपुर छत्तीसगढ़, हाफिज ख़लील रज़ा, क़ारी तहसीन रज़ा, हाफिज मुनव्वर रज़ा, हाफिज फैजान रज़ा के अलावा मशहूर शायरों में शायर कलीम दानिश कानपुर, क़ासिम नदीमी बनारस, पुरनम कटंगी, रफ़ीक़ कैप्टन टीकमगढ़ ने शिरक़त की जलसा कार्यक्रम देर रात तक चला सभी ने नातिया कलाम पढ़े तो वही मौलाना सूफी अब्दुर्रहमान साहब ने अपनी तक़रीर मेंं कहा कहा कि शायर नैयर दमोही अदबी और सूफ़ियाना महफिलों की जान हुआ करते थे जिन्हें बड़े ही अदब के साथ बड़े बड़े उलेमा और अवाम सुनती रही है, नैयर साहब एक आशिके रसूल शायर थे, नाते रसूल लिखने का वो अंदाज जो बहुत ही कम शायरों में देखने मिलता है उनके एक शेर से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की नैयर दमोही किस दर्जे के शायर थे।

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'ग़मे हबीब को सीने में पाल रक्खा है। यही निजात का रस्ता निकाल रक्खा है'
ऐसी शायरी एक आशिके रसूल ही लिख सकता है। उन्हें शायरी के हर फन में महारथ हासिल थी चाहे नातिया कलाम, नज़्म, मनकबत या ग़ज़ल सारी विधाओं में नैयर साहब का कोई जबाब नही था। ये सब उन्हें उनके पीरो मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा अब्दुस्सलाम साहब चिश्ती ने अता किया था। ये उनके पीर की मोहब्बत का ही नतीजा है जो नैयर दमोही को पीरो मुर्शिद के पास ही जगह मिली अब गुरु और शिष्य दोनों पास पास ही है। जैसे दिल्ली में महान शायर हज़रत अमीर ख़ुशरो को अपने पीरो मुर्शिद हज़रत निजामुद्दीन औलिया के पास रखा गया। इसी तरह दमोह के चिश्ती नगर में भी शायर नैयर दमोही साहब को उनके पीरो मुर्शिद के पास ही दफनाया गया ,कार्यक्रम में पहुंचे सभी मौलाना और शायरों ने अपने कलामों के जरिये नैयर दमोही को याद किया और अपने ख़्याल पेश किए। यह कार्यक्रम ठंड के बावजूद भी रात नौ बजे से सुबह 4 बजे तक चला रहा। सैकड़ों की संख्या में अकीदतमंद लोग मौजूद रहे।

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बॉलीबुड सिंगर और उस्ताद क़व्वालों ने भी की शिरकत
प्रसिद्ध क़व्वाल और सूफी सिंगर नौशाद अली मुम्बई से अपना शो छोड़कर दमोह अपने उस्ताद शायर नैयर दमोही की याद मे आयोजित जलसा फ़ातिहा चेहल्लुम में शामिल होने पहुंचे। सिंगर नौशाद अली ने नैयर साहब के बारे में कहा कि वे आम शायर नहीं थे हमने देश और दुनिया में कई शो किए और सब शायरों के कलाम पढ़े लेकिन जो बात नैयर दमोही साहब के कलामों में थी वो किसी आशिके रसूल और बुजुर्गों से निस्बत करने वाला शायर ही कह सकता है।

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वहीं उस्ताद क़व्वाल सलीम झंकार ने भी नैयर दमोही साहब के गुजर जाने पर बड़ा अफ़सोस जाहिर किया, सलीम झंकार ने कहा कि मुझे जो कुछ भी मक़बूलियत मिली और जो कुछ भी महफिलों में गाता हूं वो मेरे महबूब शायर नैयर दमोही साहब के ही कलामों से मिला और उन्हें ही पढ़ता रहा हूं। जो आज मेरी पहचान का सबब है। नैयर साहब का लिखा एक गीत हमने 'ये कैसी आशिक़ी' फ़िल्म में भी गाया है और उस गीत का भी एक अलग किस्सा है। जब हमारे सामने एक क़व्वाली सांग का ऑफर आया तब फ़िल्म के डारेक्टर ने फ़िल्म की मांग के अनुसार एक क़व्वाली सॉग चाहिए था।

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उस फिल्म में महान सूफ़ी संत हज़रत ख़्वाजा खानून साहब की शान में लिखना था लेकिन डायरेक्टर ने सब शायरों से संपर्क किया उनको कामयाबी नहीं मिली। तब मैंने फ़िल्म की लोकेशन के बारे में उस्ताद शायर नैयर दमोही साहब को बताया और उन्होंने बिना वक़्त गवाये फ़िल्म की मांग के मुताबिक एक क़व्वाली सांग लिखा जो  गीत फ़िल्म की कामयाबी का सबब बन गया। आज वे हमारे बीच नहीं लेकिन उनके लिखे कलामों से वे हमेशा हमारे दिलों पर राज करते रहेंगे।


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Edited By

meena

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