मप्र में गिरता भू-जल स्तर, बन सकता है परेशानी का सबब

6/10/2018 12:05:01 PM

मध्यप्रदेश: जल के बिना जीवन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। लेकिन दिन- प्रतिदिन गिर रहा भू-जल स्तर  भविष्य में खतरे का कारण  बन सकता है। ऐसा ही हाल है मध्यप्रदेश में। प्रदेश में भू-जल स्‍तर 63.24 प्रतिशत तक गिर गया हैभोपाल, दतिया, जबलपुर मुरैना, रीवा, टीकमगढ़ और देवास जैसे अन्य जिलों में भूमिगत जल स्तर गिरने से बोरिंग के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है। राजधानी में दो साल पहले तक अधिकांश क्षेत्रों में 120 फीट से 170 फीट तक पानी मिल जाता था। वहीं कोलार, नीलबड़, रातीबड़ और सीहोर रोड की कई कॉलोनियों में 1000 फीट कर बोर करना पड़ रहा है। अन्य क्षेत्रों में जहां 200 फीट की गहराई में पानी मिल जाता था, वहीं अब 500 से 700 फीट तक भूमिगत जल मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नलकूपों की स्थिति खराब है। भोपाल जिले में प्रशासन द्वारा 4000 नलकूप स्थापित किए थे। इसमें 378 आंशिक रूप से चालू है, 279 हैंडपंपो को असुधार योग्य होने के कारण निकाला जा रहा है और 143 को जल स्तर कम होने के कारण बंद कर दिया गया है।

स्थिति बन गई है गंभीर
विशेषज्ञों का कहना है कि गिरते जल स्तर के कई कारण है, लेकिन प्रमुख कारण बोरिंग है। पूरे प्रदेश में बीते 15 सालों में बड़ी मात्रा में बोर कराए गए, लेकिन इनके लिए प्रशासनिक अनुमति ही नहीं ली जाती। अगर नियमों की बात की जाए, तो बिना अनुमति के बोर नहीं किया जा सकता। लेकिन अधिकारियों की सुस्त कार्रवाई के कारण प्रदेश में लगातार बोर की संख्या बड़ रही है। यह भूमिगत जल स्तर के लिए घातक साबित हो रहे हैं। ।

ये है भू-जल में आई गिरावट का कारण
विशेषज्ञ डॉ. सुभाष सी पांडे ने कहा कि पिछले कुछ सालों की अपेक्षा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ ज्यादा किया जा रहा है। कैंचमेंट एरिया और ग्रीन वेल्ट क्षेत्र में अवैध रूप से निर्माण किए जा रहे हैं। यह स्थिति पूरे प्रदेश में है। इस कारण नदियों और तालाबों का जल स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। भूमिगत जल का भंडारण जल स्त्रोतों पर भी निर्भर करता है। दूसरा कारण यह है कि 90 के दशक से सीमेंटीकरण में तेजी आई वहीं वनों की कटाई भी की जा रही है। यह दोनों ही गिरते भूजल स्तर के बड़े कारण है।

 

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