सरकारी नौकरी छोड़ गरीबों के मसीहा बने पति पत्नी, अस्पताल में 40 साल से कर रहे निस्वार्थ सेवा

7/1/2022 6:23:17 PM

बालोद(लीलाधर निर्मलकर): संसार में डॉक्टर की तुलना भगवान से होती है। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि डॉक्टर भगवान तो नहीं पर भगवान से कम भी नहीं होती है। छत्तीसगढ़ के बालोद में एक ऐसे ही शख्स है जो बड़ी बड़ी नौकरी छोड़ कर गरीबों के सबसे बड़े अस्पताल में सेवा दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं लौह नगरी दल्ली राजहरा के शहीद हॉस्पिटल की। एक ऐसे डॉक्टर दंपत्ति की जो सरकारी नौकरी को छोड़ बीमार लोगों का ईलाज कर उन्हें नया जीवन दे रहे हैं और उनके चेहरे पर मुस्कान ला रहे।

डॉ. शैबाल जाना दल्ली राजहरा आने से पूर्व कोलकाता कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई करने के दौरान एक संगठन बनाकर मजदूर बस्ती में डिस्पेंसरी खोल उनका इलाज शुरू किया। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद जैसे ही डॉक्टर जाना को पता चला कि दल्ली राजहरा में श्रमिक संगठन और मजदूरों द्वारा चंदा एकत्रित कर श्रमदान से गरीब मजदूर और किसानों के लिए अस्पताल का निर्माण कर रहे, तो वे यहां 1982 में आकर श्रमिक नेता वह मजदूरों के मसीहा के नाम से विख्यात स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी से मिले और अस्पताल में सेवा भाव से काम करने की इच्छा जताई।

26 जनवरी 1983 को श्रमिक संगठन से मिले महज 2 हजार से एक झोपड़ी नुमा मकान में डिस्पेंसरी चालू कर गरीब मजदूर का इलाज शुरू किया। मजदूर साथियों की मदद से 9 लोगों का स्वास्थ्य कमेटी बना ट्रेनिंग देना और पोस्टर एक्टिवेशन के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया। 1977 में अपने हक और अधिकार के लिए आंदोलन कर रहे मजदूरों की पुलिसिया गोली कांड में मारे गए 12 मजदूरों की याद में 3 जून 1983 को मजदूरों की श्रमदान और चंदे के पैसे से बने भवन में मजदूर संगठन से मिले 10 हजार रुपयों से 10 बिस्तर अस्पताल की शुरुआत कर ईलाज करना प्रारम्भ किया। जो आज श्रमिक संगठन और आम लोगों की जन सहयोग से विशाल दो मंजिला सर्व सुविधा युक्त डेढ़ सौ बिस्तर अस्पताल में विस्तार हो गया। जहां बालोद नहीं बल्कि दूसरे जिले से लोग यहां पहुंच कम खर्चे में बेहतर स्वास्थ्य सेवा का लाभ लेते हैं।

अस्पताल प्रारम्भ करने का एक ही उद्देश्य है। मेहनत कस मजदूर, किसान और छोटे-छोटे व्यापार करने वाले लोगों को बेहतर उपचार मिल सके। डॉक्टर जाना का कहना है स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास बड़े-बड़े अस्पताल बने है लेकिन वहां गरीब लोग अपना इलाज नहीं करा सकते। इसलिए हमारा नारा है स्वास्थ्य के लिए संघर्ष करो और इसी उद्देश्य को लेकर हम लगातार चल रहे हैं।

बता दें शहीद अस्पताल प्रारम्भ के पीछे बेहद रोचक कहानी है। 40 साल पूर्व कुसुम बाई नामक एक महिला मजदूर व श्रमिक नेता को डिलीवरी के लिए नगर के बीएसपी अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां उन्हें अच्छे से उपचार नहीं मिल पाया और स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें भिलाई के सेक्टर 9 अस्पताल में रैफर किया जा रहा था। लेकिन बीच रास्ते में उनकी मौत हो गई। जिस से आहत होकर श्रमिक नेता वह मजदूरों ने फैसला लिया कि क्यों ना हम अपने लिए श्रमदान व चंदा एकत्रित कर स्वयं का अस्पताल बनाएं। जहां हम सब मजदूर परिवारों का इलाज के अलावा गरीब लोगों का कम खर्च में बेहतर इलाज हो सके। तब से लेकर आज तक यहां अस्पताल लगातार संचालित है और प्रतिदिन कैजुअल्टी में ढाई सौ से तीन मरीज लोग इलाज कराने पहुंचते हैं।

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This news is Content Writer meena