दमोह में बोले महामहिम, कमजोर वर्ग के विकास से देश होगा समृद्ध

3/7/2021 2:36:46 PM

दमोह: MP दौरे के दूसरे दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार को दमोह पहुंचे। महामहिम सिंग्रामपुर में आयोजित हुए जनजातीय सम्मेलन में शामिल हुए। यहां उन्होंने रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर सिंगौरगढ़ किले के रिनोवेशन और 26 करोड़ की लागत से होने वाले विकास कार्यों की आधारशिला रखी। कार्यक्रम में राष्ट्रपति के साथ राज्यपाल आंनदी बेन, सीएम शिवराज सिंह चौहान समेत केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री मौजूद रहे।

जनजातीय सम्मेलन राष्ट्रपति ने मेधावी चार छात्रों को रानी दुर्गावती पुरस्कार से सम्मानित किया। इस दौरान सागर की छात्रा सारिका ठाकुर को सम्मानित किया और छात्रा को 51 हजार रुपये की राशि सम्मानित किया। जनजातीय सम्मेलन और शिलान्यास कार्यक्रम में संबोधन करते हुए कहा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी का मुझे आज स्मरण हो रहा है, अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत सरकार में जनजातीय आयोग का गठन किया था और फिर जनजातीय ट्राइबल मिनिस्ट्री बनी, अटल बिहारी की सोच सरानीय थी'

राष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न जनजातीय समुदायों ने भारत की आजादी में गौरवशाली योगदान दिया है। हमारे जनजातीय शहीद केवल स्थानीय रूप से ही नहीं पूजे जाते बल्कि पूरे देश में उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है। हम सबको ये स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि आदिवासी समुदाय का कल्याण और विकास पूरे देश के कल्याण और विकास से जुड़ा हुआ है।

वहीं, महामहिम ने कहा कि मुझे ये जानकर प्रसन्नता हुई कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 6 नए मण्डलों का सृजन किया गया। इन नए मण्डलों में जबलपुर मण्डल भी शामिल है, जिसका  शुभारंभ हुआ है। जनजातीय समुदायों में परंपरागत ज्ञान का अक्षय भंडार संचित है। मुझे बताया गया है कि मध्य प्रदेश में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह में शामिल बैगा समुदाय के लोग परंपरागत औषधियों व चिकित्सा के विषय में बहुत जानकारी रखते हैं।

इस जनजातीय सम्मेलन में राज्यपाल आंनदी बेन भी शामिल हुई. इस दौरान उन्होंने अपना संबोधन दिया। राज्यपाल ने अपने संबोधन में सबसे पहले रानी दुर्गावती को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि वीर साहसी और धर्म प्रिय रानी दुर्गावती को मैं श्रद्धांजलि देती हू। वहीं, उन्होंने कहा कि आदिवासी कठिनाईयों में भी जिंदगी में जुनून भर देते हैं। जब हम जनजातीय समुदाय के साथ काम करते हैं तो खुले दिल से काम करना चाहिए। आदिवासियों का जल, जंगल और जमीन से गहरा नाता होता है, जड़ी बूटियों की पहचान करना आदिवासियों को अच्छे तरीके से आता है, इसलिए उन्हें धरती-पुत्र कहा जाता है।

 

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This news is Content Writer shahil sharma