आईआईएसईआर के शोधकर्ताओं ने पहली बार भारताीय गायों का ड्राफ्ट जीनोम सीक्वेंस तैयार किया

1/31/2023 5:27:52 PM

भोपाल, 31 जनवरी (भाषा) भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) भोपाल के शोधकर्ताओं ने पहली बार भारतीय गायों की चार नस्लों का ड्राफ्ट जीनोम सीक्वेंस तैयार किया है। देशी गायों के प्रजनन में सुधार और बेहतर प्रबंधन में सहायक इस शोध से भारतीय पशुपालन उद्योग की उत्पादन क्षमता और स्थायित्व बढ़ेगी।

आईआईएसईआर की मंगलवार को यहां जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ताओं ने भारत की देशी गायों की चार नस्लों– कासरगोड ड्वार्फ, कासरगोड कपिला, वेचूर और ओंगोल - की आनुवंशिक संरचना को सफलतापूर्वक सामने रखा है। पहली बार इन भारतीय गायों की जीनोम सीक्वेंसिंग की गई है।’’
जीनोम किसी जीव जैसे कि पौधे या जानवर की संरचना और संचालन के निर्देशों के एक समूह का ब्लूप्रिंट है। यह जीन से बना होता है, जिसमें उस जीव के बढ़ने, विकसित होने और सुचारु कार्य करने के लिए जरूरी जानकारियां होती हैं। जैसे किसी इमारत के ब्लूप्रिंट में उसके निर्माण की जानकारी होती है उसी तरह जीनोम में वह सभी जानकारी होती है जो एक जीव के जीवन यापन और जीवित रहने के लिए चाहिए।

जीनोम की जानकारी हो तो वैज्ञानिक उस जीव के बारे में जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जैसे कि कुछ बीमारियों या लक्षणों से इसका कैसे संबंध हो सकता है।

विज्ञप्ति के अनुसार भारत की देशी गायों में कुछ विशिष्ट क्षमताएं होती हैं जैसे कम गुणवत्ता की खाद्य सामग्रियां खाने और बीमारियों से लड़ने की क्षमता जो उन्हें भारत की कठिन परिस्थितियों में जीवित रखती हैं।

इसमें कहा गया है कि पिछले अध्ययनों में भारतीय गायों के कुछ लक्षणों जैसे कि उनका गर्म मौसम में खुद को संभालना, उनके आकार और दूध के प्रकार पर ध्यान दिया गया है, लेकिन भारतीय गायों की विशिष्ट नस्लों का पूरा जीनोम ज्ञात नहीं था, इसलिए यह समझना कठिन था कि उनमें कुछ खास विशेषताएं क्यों होती हैं।

आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ताओं ने हाई-थ्रुपुट सीक्वेंसिंग तकनीक से भारत की देशी गायों की चार नस्लों के जीनोम को पढ़ने और समझने का प्रयास किया है, इस शोध का मूल उद्देश्य यह जानना है कि कैसे यह भारतीय मूल की गायें भारतीय वातावरण के अनुसार अनुकूलित हुई हैं।

आईआईएसईआर में जीव विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विनीत के. शर्मा ने इस शोध के बारे में पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमने देशी भारतीय गाय की इन नस्लों में जीन के एक विशिष्ट समूह की पहचान की है जो पशुओं की पश्चिमी प्रजातियों की तुलना में इनके जीन सीक्वेंस और संरचना में भिन्नता दर्शाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस जानकारी से यह बेहतर समझा जा सकता है कि भारतीय गायों की नस्लें कैसे उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के अनुकूल हो जाती हैं। इसके लिए कासरगोड ड्वार्फ कंजर्वेशन सोसाइटी ने केरल के कपिला गौशाला से सैम्पल लेने में मदद की।’’
उन्होंने कहा कि जीनोम संरचना की मदद से इन गायों के प्रजनन में सुधार और बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप भारतीय पशुपालन उद्योग की उत्पादन क्षमता और स्थायित्व में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि भारत की देशी गायों की नस्लों के जीनोम सीक्वेंस तैयार करने से यह समझना भी आसान होगा कि उन नस्लों और अन्य नस्लों में क्या आनुवंशिक अंतर हैं । यह जानकारी भावी शोध और आनुवंशिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

जीनोम सीक्वेंसिंग शोध के विवरण प्रीप्रिंट सर्वर बायो आरएक्सआईवी में प्रकाशित किए गए हैं। यह शोध-पत्र डॉ. विनीत के. शर्मा, अभिषेक चक्रवर्ती, मनोहर एस. बिष्ट, डॉ. रितुजा सक्सेना, श्रुति महाजन और डॉ. जॉबी पुलिक्कन ने मिल कर लिखा है।



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