चट्टान काटकर बनाया गया धर्मराजेश्वर मंदिर, दुनिया का पहला ऐसा मंदिर, जिसमें पहले शिखर बना, बना में भरी गई नींव

7/16/2023 3:13:33 PM

मंदसौर (राहुल धनगर): मध्यप्रदेश के मंदसौर में एक ऐसा मंदिर है जो एक ही चट्टान को काटकर ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया है, आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती देता हुआ इस मंदिर को देखकर लगता ही नहीं कि यह मंदिर सदियों पूर्व बनाया गया है, मंदिर में शिव और विष्णु दोनों एक ही गर्भ वृह में विराजित है, शैव और वैष्णव संप्रदाय के अलावा यहां पर बौद्ध गुफाएं भी मौजूद है।

आज के इस आधुनिक इंजीनियरिंग युग को चुनौती देते हुए ऊपर से नीचे की ओर निर्माण होने वाला यह मंदिर अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक है। जब सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह तक जाती है, तब ऐसा लगता है कि सूर्य भगवान स्वयं अपने 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर भगवान शिव और विष्णु के दर्शन करने के लिए मंदिर आए हों। मंदसौर जिला मुख्यालय से धर्मराजेश्वर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है, यहां आने वाला हर श्रद्धालु इस स्थान को देखकर एक अलग ही आनंद की अनुभूति करता है। मंदिर में छोटी कुईया विद्यमान हैं, मान्यता है कि इसका पानी कभी नहीं सूखता है। विशाल मंदिर और यह देवालय ना सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के मंदिर का प्रतीक है, बल्कि यह संसार का अकेला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के भीतर होते हुए भी सूर्य की किरणों से सराबोर हैं।

किवदंती है कि द्वापर युग में पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आए थे, तो भीम ने गंगा के सामने इसी जगह पर शादी का प्रस्ताव रखा था। जबकि गंगा भीम से शादी नहीं करना चाहती थी। इसीलिए गंगा ने भीम के सामने शादी की एक शर्त रखी थी, जिसके मुताबिक भीम को एक ही रात में चट्टान को काटकर इस मंदिर का निर्माण करया था। उसके बाद भीम की शर्त के मुताबिक 6 माह की एक रात बना दी। 6 माह की इस रात्रि में मंदिर का निर्माण किया गया था। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर मूल रूप से विष्णु भगवान का मंदिर था लेकिन बाद में यहां पर सेव मत के अनुयायियों ने भगवान शिव की भी स्थापना कर दी। मंदिर चौथी से पांचवी शताब्दी का माना जाता है यहां पर वैष्णव और शैव मत के अलावा बौद्ध गुफाएं भी है।

धर्मराजेश्वर एक रॉक कट टेंपल है। यह चट्टानों को काटकर बनाया गया मंदिर है, और इस प्रकार के मंदिर भारत के अंदर केवल चार राज्यों में मिले हैं हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा एक स्थान है वहां पर है। दूसरा तमिलनाडु में महाबलीपुरम का मंदिर समूह है। तीसरा महाराष्ट्र में एलोरा की गुफाएं हैं, और चौथा मध्यप्रदेश में चंदवासा के समीप धर्मराजेश्वर नाम का स्थान है। बौद्ध काल के अंदर स्थान का नाम चंदन गिरी महाविहार होगा ऐसा अनुमान 1962 में डॉक्टर वाकणकर ने यहां जो एक मिट्टी की सील मिली थी। उसका नाम चंदन गिरी महाविहार मिलता है। यह अभियंत्रिकी कला का अद्भुत नमूना इन अर्थों में है कि एलोरा के कैलाश मंदिर कोई भी जो चट्टान है। वह चिकने बलवा पाषाण की है और वहां उनके सामने पहाड़ था। जिसको काट कर के उन्होंने मंदिर बनाया लेकिन यहां पहाड़ के अंदर जो 54  मीटर लंबी 20 मीटर चौड़ी और 9 मीटर गहरी चट्टान को काट कर के और उसके अंदर 14.52 मीटर लंबा और 10 मीटर चौड़ा जो भगवान का मंदिर बनाया गया। यह अभियांत्रिकी कला का अद्भुत नमूना है। इसके दाएं बाएं सोपान मार्ग है।

शैव वैष्णव और बौद्ध गुफाओं के सम्मिश्रण का अद्भुत यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है, और यहां पर मंदिर के मूल स्वरूप को छोड़कर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए शासन कई तरह के यहां पर संसाधन विकसित कर रहा है। ताकि दूर-दूर से लोग जहां पर पर्यटक आए और मंदिर के दर्शन भी कर सके और भारत की प्राचीन संस्कृति और कला से रूबरू हो सके। मंदसौर जिले के शामगढ़ में स्थित धर्मराजेश्वर का यह मंदिर जो एक शिला को तराश कर बनाया गया है। जिसमें छोटे-बड़े मंदिर, गुफाएं हैं। यहां पर 7 छोटे और एक बड़ा मंदिर और 200 के लगभग गुफाएं मौजूद हैं। बताया जाता है कि यहां पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है, जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा बंद कर रखा है। चट्टानों से तराशे गए इस भव्य धमराजेशवर मंदिर में आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। सरकार प्रयास कर रही है कि यहां पर पर्यटकों के लिए और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए ताकि आने वाले समय में यहां पर दूर-दूर से पर्यटक आए और धार्मिक पर्यटन सहित भारत की प्राचीन कला और अभियांत्रिकी से भी परिचित हों।

Vikas Tiwari

This news is Content Writer Vikas Tiwari