सारिका घारू ने AIIMS डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया को भेंट की वीडियो एल्बम, सिकलसेल जागरूकता के लिए कर रही है काम

5/29/2022 5:36:41 PM

भोपाल: आमतौर पर हिन्दू परिवारों में शादी से पहले जन्म कुंडली मिलाने की परंपरा है। लेकिन अब नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू मध्यप्रदेश के जनजातीय टोलो में जाकर विवाह से पहले सिकलसेल वैज्ञानिक कुंडली मिलाना (Sicklecell Scientific Horoscope Matching) सिखाने जा रही है, वो भी बिना दक्षिणा के, खुद खर्चे पर। इन्ही प्रयासों के पहले चरण में सारिका घारू ने 7 गीतों का वीडियो एल्बम बनाकर तैयार है। इस एल्बम एवं जागरूकता गतिविधियों का जानकारी सारिका ने ऑल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) नई दिल्ली के डायरेक्टर पद्मश्री प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया को भेंट की है। 

अनुवांशिक है बीमारी 

एमीनेंट मेडिकल पर्सन का बीसी रॉय नेशनल अवार्ड प्राप्त डॉ. रणदीप गुलेरिया ने सारिका के गीतों के अवलोकन के बाद बताया कि ये वीडियो गीत आम लोगों में सिकलसेल (Sicklecell Scientific Horoscope Matching) के कारण, लक्षण एवं बचाव के उपायों को सरल तरीके से पहुंचा सकेंगे। वहीं सारिका ने कहा कि यह किसी वायरस, मच्छर या गंदगी से होने वाली संक्रामक बीमारी नहीं है। यह सिर्फ बीमार माता-पिता से बच्चों में अनुवांशिक रूप से जाती है। विवाह एवं बच्चे जन्म के पहले जागरूकता के द्वारा इस बीमारी की रोकथाम 100 प्रतिशत की जा सकती है।

जागरूकता अभियान चलाएगी सारिका घारू

सारिका घारू ने बताया कि आदिवासी बहुल जिलों में फैले इस जन्मजात रोग के फैलाव को कम करने के लिये किये जा रहे बड़े प्रयासों के साथ अपना एक स्वैच्छिक योगदान दे रही हैं। वे 1 जून से मध्यप्रदेश के 22 प्रभावित जिलों में अपने खर्च पर जाकर जागरूकता का कार्य करेंगी। ये वीडियो एल्बम भी उन्होनं अपने खर्च पर तैयार किया है। सारिका ने बताया कि सिकल सेल रोगी दो प्रकार के होते हैं – एक रोगी और दूसरा वाहक। यदि माता पिता दोनों सिकल सेल रोगी हैं तो उनके सभी बच्चे सिकल सेल रोगी होंगे। अगर माता पिता में से एक रोगी और दूसरा सामान्य है तो बच्चे रोग वाहक होंगे। सिकल सेल रोगी या वाहक किसी सामान्य पार्टनर से विवाह करेगा, तो इस रोग का फैलाव रोका जा सकता है।

क्या हैं लक्षण-

सारिका घारू ने बताया कि इस जन्मजात बीमारी में रेड ब्लड सेल कठोर और चिपचिपी हो जाती है और उनका आकार गोल न होकर हंसिया या सिकल की तरह हो जाता है। ये जल्दी नष्ट हो जाती है, कई बार धमनियों में जमकर रक्त प्रवाह में रूकावट करती है जोकि दर्द के साथ जानलेवा भी हो जाता है। बीमारी का पता जन्म के एक साल के अंदर ही लग जाता है। संक्रमण, सीने में दर्द, जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।

Devendra Singh

This news is News Editor Devendra Singh