मुरैना की गजक का ऐसा स्वाद कि विदेशों में भी बढ़ी डिमांड, आखिर क्या है इसका टॉप सीक्रेट? खुल गया राज..

Friday, Nov 07, 2025-10:52 PM (IST)

मुरैना। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बाजारों में कई दुकानें ऐसी हैं जो 80 से 100 साल पुरानी हैं। पुराने ज़माने में गजक की दुकानें नहीं थीं — बुज़ुर्ग सिर पर टोकरी रखकर गलियों में घूम-घूमकर गजक बेचते थे। तब गजक सिर्फ़ गुड़ और तिल से बनती थी। जौरा से गुड़ मंगाकर उसमें तिल मिलाकर बनाई जाती थी ‘पपड़ी वाली गजक’, जो आज भी लोगों की पहली पसंद है।

समय के साथ बदला स्वाद और पैकिंग

जैसे-जैसे मांग बढ़ी, कारोबारियों ने पैकिंग पर ध्यान देना शुरू किया। 1970 के दशक में गजक को पॉलीथीन में पैक किया जाने लगा और 1973-74 में डिब्बों में पैकिंग शुरू हुई। अब यह महीनेभर तक खस्ता रहती है और देश-विदेश तक भेजी जाती है।

मुरैना की गजक के खस्तेपन का ‘राज’

उत्तर भारत के कई इलाकों में गजक बनती है, लेकिन मुरैना-ग्वालियर की गजक का मुकाबला कोई नहीं कर पाता। कारीगर बताते हैं — इसका राज चंबल नदी के मीठे पानी में छिपा है। यही पानी गजक को खास खस्तापन देता है। इसके अलावा उच्च गुणवत्ता वाले तिल का इस्तेमाल भी स्वाद और कुरकुरेपन में बड़ा रोल निभाता है।

करोड़ों का कारोबार, हजारों को रोजगार

मुरैना और ग्वालियर में करीब 350 से 400 गजक कारोबारी सक्रिय हैं। सालाना कारोबार 150 से 200 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है। करीब 5 से 6 हजार लोगों को रोज़गार भी मिलता है।
हालांकि तिल के बढ़ते दामों ने कीमतों को बढ़ा दिया है।

 देश-विदेश में ‘मुरैना की मिठास’

अब मुरैना की गजक सिर्फ़ स्वाद नहीं, बल्कि ब्रांड बन चुकी है। NRI भी विदेशों में अपने रिश्तेदारों से मुरैना की गजक मंगवाते हैं। यह मिठास अब चंबल के इतिहास की नई पहचान बन गई है।


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Content Editor

Himansh sharma

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