CM कमलनाथ के इस कमेंट ने बदल दी MP की राजनीतिक तस्वीर, उतर जाएं सड़क पर

3/10/2020 5:59:05 PM

भोपाल: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक कमेंट ने मध्यप्रदेश की राजनीति की पूरी तस्वीर ही बदलकर रख दी। कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर पूछे गए एक सवाल पर लगभग खीज भरे अंदाज में पत्रकारों से कहा था कि तो उतार जाएं सड़क पर। मामला कांग्रेस के वचन पत्र के अनुसार अतिथि शिक्षकों को नौकरी में लेने का था। सिंधिया ने शिक्षकों से कहा था यदि सरकार अपना वचन पूरा नहीं करती तो वे उनके साथ सड़क पर उतरेंगे।

कमलनाथ और सिंधिया के बीच विधानसभा चुनाव के कुछ दिन बाद से ही दूरी बढ़ना शुरू हो गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इस दूरी को मिटाने की कोई पहल भी नहीं की। सिंधिया ने अपने ट्विटर प्रोफाइल को बदलकर भी अपनी नाराजगी का संदेश दिया था।

मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई। सरकार बनने के बाद आला अफसरों की पोस्टिंग में दिग्विजय सिंह का रोल महत्वपूर्ण रहा। दिग्विजय सिंह वर्ष 1993 से वर्ष 2003 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस कारण कई नौकरशाह उनके लगातार संपर्क में रहते थे। कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह की सलाह पर एसआर मोहंती को राज्य का मुख्य सचिव नियुक्त किया था, लेकिन, जब ग्वालियर का कलेक्टर बनाने की बारी आई तो भरत यादव को वहां कलेक्टर बना दिया.सिंधिया के विरोध के बाद कमलनाथ को भरत यादव को ग्वालियर से हटाना भी पड़ा था।

ग्वालियर के ही कांग्रेस नेता अशोक सिंह को मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैक का प्रशासक नियुक्त किए जाने से पूर्व भी कमलनाथ ने सिंधिया को भरोसे में नहीं लिया था। अशोक सिंह, दिग्विजय सिंह के करीबी हैं। इस नियुक्ति से पूर्व कमलनाथ ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को भी भरोसे में नहीं लिया था। सिंधिया ने इसकी शिकायत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से की थी. लेकिन श्रीमती गांधी ने इस पूरे मामले में चुप्पी साध ली। सिंधिया ने निगम, मंडलों में अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए अपने समर्थकों के जो नाम मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिए थे,उन पर ध्यान ही नहीं दिया गया। इस पर सिंधिया का आहत होना स्वाभाविक था। अशोकनगर के पुलिस अधीक्षक को लेकर भी सिंधिया और कमलनाथ के बीच दूरी दिखाई दी थी। कमलनाथ, सिंधिया की पसंद का एसपी पोस्ट नहीं करना चाहते थे।

दिल्ली में बंगला बचाने में भी कमलनाथ ने नहीं की मदद दिल्ली के जिस सफदरजंग इलाके में सांसद के नाते ज्योतिरादित्य सिंधिया को जो सरकारी बंगला मिला हुआ था, वह लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद उन्हें,खाली करना पड़ा। इस बंगले से सिंधिया परिवार को बेहद लगाव था। माधवराव सिंधिया भी इसी बंगले में रहते थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते थे कि दिल्ली में राज्यों के कोटे के जो बंगले हैं,उसमें उन्हें मध्यप्रदेश कोटे से बंगला रखने की अनुमति मिल जाए, लेकिन, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस मामले में भी सिंधिया की कोई मदद नहीं की। उन्होंने राज्य के कोटे से दिल्ली में अपना बंगला जरूर आवंटित करा लिया। इस घटना के कारण सिंधिया और कमलनाथ के बीच दूरी और ज्यादा बढ़ गई।

राज्य की राजनीति में ज्यादतर नेता सिंधिया के विरोध में गोलबंद हो जाते हैं। राज्य में दिग्विजय सिंह-कमलनाथ के अलावा सुरेश पचौरी और अजय सिंह के भी अपने-अपने गुट हैं, लेकिन,जब भी सिंधिया को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की बात आती है तो सारे गुट के नेता एक होकर उनका विरोध करने लगते थे। इस सामूहिक विरोध के कारण ही सिंधिया प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नहीं बन पाए। कमलनाथ पिछले सवा साल से मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष की दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश के प्रभारी दीपक बाबरिया को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नजदीकी भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से है। लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने जब प्रियंका गांधी को उत्तरप्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया तो उनके साथ सिंधिया को भी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन सिंधिया की कोई भूमिका उत्तरप्रदेश में नहीं थी। सिंधिया कांग्रेस कमेटी की हर बैठक में प्रियंका गांधी के साथ बैठे दिखाई देते थे, लेकिन, कभी प्रियंका गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी पर इस बात के लिए दबाव नहीं बनाया कि सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।

सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने भी सिंधिया के लिए दिक्कतें पैदा कीं। राज्य की राजनीति में दीपक बाबरिया लगातार सिंधिया का विरोध करते हुए दिखाई दिए। चुनाव के समय कई सिंधिया सर्मथकों के टिकट काटने में बाबरिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कांग्रेस से इस्तीफा देने का जो पत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा है,उसमें उनकी पीड़ा साफ दिखाई देती है। पार्टी में सिंधिया की उपेक्षा कई सालों से लगातार हो रही थी। राहुल गांधी के कारण ही वर्ष 2009 में डॉ. मनामोहन सिंह की सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले अरुण यादव को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली थी।

अरुण यादव को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी राहुल गांधी ने बनाया था। यादव लगभग चार साल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उनके पिता स्वर्गीय सुभाष यादव प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता थे। उन्हें दिग्विजय सिंह विरोधी माना जाता था, लेकिन, अरुण यादव को दिग्विजय सिंह का समर्थन मिल रहा था। राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया का विरोध करने के लिए कई युवा नेताओं को तैयार किया। इनमें जीतू पटवारी भी एक हैं.कमलनाथ मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के निर्णय को गद्दारी बताते हुए एक ट्वीट भी आज किया।

कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे को आगे रखकर लड़ा था। सिंधिया ने चुनाव में मेहनत भी काफी की, उनके चेहरे के कारण ही प्रदेश का वोटर कांग्रेस के साथ आया था। इससे पहले के दो चुनाव में कांग्रेस युवा वोटरों को अपने पक्ष में नहीं कर पाई थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में सुरेश पचौरी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। 2013 के चुनाव में कांतिलाल भूरिया पीसीसी चीफ थे। उस वक्त भी सिंधिया को अध्यक्ष की जिम्मेदारी नहीं दी गई। गांधी परिवार के भाव को सिंधिया समझ रहे थे,लेकिन खुलकर कुछ कहते नहीं थे।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता के बाद सिंधिया ने राहुल गांधी के समक्ष मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी खुलकर दावेदारी पेश की थी, लेकिन राहुल गांधी ने धैर्य रखने की सलाह सिंधिया को दी थी। उम्मीद की जा रही थी कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर राज्य की राजनीति में संतुलन बनाने की कोशिश होगी, लेकिन, पूरी राजनीति कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच केन्द्रित हो गई। सरकार बनने के बाद विदिशा के इंजीनियरिंग कॉलेज को अनुदान का मामला भी सिंधिया की नाराजगी की एक वजह बताया जा रहा है।

Jagdev Singh

This news is Edited By Jagdev Singh