MP के इस गांव में रावण की नाक काटने की है अनोखी परंपरा, हिंदू-मुस्लिम मिलकर करते है आयोजन

4/1/2023 2:43:17 PM

रतलाम (समीर खान): मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में एक गांव ऐसा भी है। जहां रावण की नाक काटकर उसका अंत 6 महीने पहले किया जाता है। जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में रावण की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है। इस गांव में चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इस परपंरा को हिन्दू मुस्लिम दोनों मिलकर निभाते है।

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दरसअल गांव की इस अनोखी परंपरा में ग्रामीण चैत्र नवरात्रि के दसवें दिन भव्य समारोह आयोजित कर भाले से रावण की नाक काटकर उसका अंत करते हैं। यहां शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर रावण दहन नहीं होता है। इसके पहले गांव में भव्य चल समारोह का आयोजन होता है, जिसके बाद राम और रावण की सेना कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती है। यहां दोनों सेना के बीच वाक युद्ध भी होता है जिसके बाद रावण का अंत किया जाता है।

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यहां रहने वाले लोगों से जब इसके पीछे की वजह पूछी तो वे बताते हैं कि प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है बदनामी होना। लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा के पीछे यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिये उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। लोग ये भी बताते हैं कि रावण ने माता सीता का हरण किया था। इसी अपमान का बदला लेने के लिए अब यहां लोग रावण की नाक काट कर उसका अपमान करते हैं।

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चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा हमारे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है। इसलिए हम भी इसी का पालन कर रहे हैं। परंपरा के मुताबिक ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से पहले रावण के पुतले की नाक पर वार करता है, यानी सांकेतिक रूप से उसकी नाक काट दी जाती है। शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है।

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लोग बताते हैं कि परंपरा के तहत रावण दहन से पहले शोभायात्रा निकाली जाती है। ढोल बजते हैं। गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकलकर दशहरा मैदान तक जाता है। राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है। इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है। गांव के लोग बताते हैं कि पहले हमारे गांव को ये परंपरा औरों से अलग करती है। पहले हर साल रावण का पुतला बनाया जाता था, लेकिन पांच-छह साल पहले यहां 15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति बनवा दी है। गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है। यहीं हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है।


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meena

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