वीडी ने यह साबित कर दिया, कि वह अपनी लकीर खींचने में यकीन रखते हैं!

7/30/2021 4:19:04 PM

भोपाल (हेमंत चतुर्वेदी): लगभग डेढ़ साल पहले जब विष्णु दत्त शर्मा का नाम बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष लोगों के सामने आया, तो हर कोई अचंभित था। पार्टी हाईकमान के इस चयन ने जहां तमाम खबरनवीसों के सूत्रों को धता साबित कर दिया था, तो वहीं भाजपा के ही कई लोग इस फैसले से हैरान थे, लेकिन इन सबके बावजूद कोई भी वीडी शर्मा को लेकर लिए गए इस फैसले पर उंगली नहीं उठा सका। शायद शर्मा के बारे में लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते थे, कि वो भले ही लो प्रोफाइल हैं, लेकिन उनके भीतर की सियासी संभावनाएं असाधारण हैं, जिसका उन्होंने बहुत जल्द लोहा भी मनवा दिया।

शर्मा द्वारा प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद प्रदेश में सत्ता पलट होने के मसले ने एक बार के लिए तो उन्हें भाजपा के लिए शुभंकर साबित कर दिया। लेकिन यहां से उनकी असल चुनौती शुरू होने वाली थी। इस वक्त जहां एक तरफ प्रदेश कोरोना के मुहाने पर खड़ा था, तो दूसरी तरफ भाजपा को प्रदेश के इतिहास के सबसे बड़े उपचुनाव का सामना भी करना था, जिसका सीधा असर सरकार पर पड़ने वाला था। इस दौरान वीडी के नेतृत्व में जहां भाजपा का संगठन कोरोना से लड़ने के लिए सड़क पर खड़ा नजर आया, तो वहीं उपचुनाव में पार्टी किसी भी स्तर पर कमजोर नहीं पड़ी, और न ही खुद वीडी शर्मा दिग्गजों से लैस भाजपा में कहीं भी बौने नजर आए। बात चाहे आक्रामक चुनाव प्रचार की करें, या उपचुनाव में बिछाई की सियासी चौसर की। शर्मा ने हर मोर्चे पर खुद को साबित करते हुए भाजपा हाईकमान के फैसले को सही साबित कर दिया, और नतीजों में भाजपा के एकतरफा प्रदर्शन ने इस पर मोहर लगा दी।



सिंधिया खेमे के साथ बेहतर तालमेल

एक तरह से देखा जाए, तो प्रदेशाध्यक्ष पद संभालने के बाद वीडी शर्मा और चुनौतियों का चोली दामन का साथ रहा है। जिनमें बाहरी चुनौतियों पर तो चर्चा की जा सकती है, लेकिन कई मोर्चों पर आंतरिक मसले ही उनके लिए परेशानी का सबब बने रहे। जिनमें प्रमुख था, संगठन में सिंधिया समर्थकों को सम्मान देकर भाजपा का वादा निभाना। अपनी टीम में वीडी ने जहां भाजपा के परंपरागत नेताओं को तवज्जो दी, तो उसमें किसी भी स्तर पर सिंधिया समर्थकों को भी नाराज नहीं किया। सही मायनों में इस तरह के हालात को संभालना किसी भी राजनेता के लिए संभव नहीं होता, लेकिन इस मसले को कमरे के भीतर ही सुलझाकर वीडी ने एक बार फिर अपनी संगठनात्मक क्षमता का परिचय दे दिया। 

गुटबाजी और खेमेबंदी से काफी ऊपर…  
वीडी शर्मा को प्रदेशाध्यक्ष बने लगभग डेढ़ साल का वक्त हो गया है, लेकिन अब तक उनका नाम किसी भी तरह की खेमेबंदी या गुटबाजी ने नहीं जुड़ा और न ही उन्होंने अलग अलग स्तर पर अपने पुराने समर्थकों को उपकृत करने की कोशिश की, ये शायद शर्मा की संघ से जुड़ी सोच का ही नतीजा है, कि उन्होंने भविष्य के लिए खुद के हाथ मजबूत करने की बजाए पूरी तरह पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर फोकस करके रखा है, ये खूबी आमतौर पर बहुत कम राजनेताओं में ही नजर आती है।

अपनी खुद की लकीर खीचीं
पिछले लगभग दो दशक की राजनीति में मध्यप्रदेश में भाजपा का नेतृत्व तो काफी मजबूत रहा है, लेकिन वह सिर्फ सत्ता के स्तर तक ही सीमित रहा। अमूमन संगठन स्तर पर नेतृत्व करने वाला नेता अक्सर किसी न किसी लिहाज से सिर्फ एक मोहर ही साबित हुआ है। लेकिन वीडी शर्मा के सिर्फ डेढ़ साल के कार्यकाल में इस सिलसिले के तोड़कर अपनी खुद की लकीर खीचीं है। वो भी उस स्थिति में जब भाजपा में तमाम दिग्गज पूरी तरह से सक्रिय हैं। लेकिन अपने पीछे बिना किसी लॉबी के वीडी शर्मा प्रदेश और भाजपा की सियासत में अपनी एक अलग पहचान छोड़ने में सफल साबित हो रहे हैं, वो भी सबको साथ लेकर।

Vikas Tiwari

This news is Content Writer Vikas Tiwari