आखिर Madhya pradesh को Shivraj की कमी महसूस क्यों नहीं हो रही? जानिए Mohan ने ऐसा क्या कर दिया...

2/6/2024 4:24:28 PM

भोपाल: Madhya pradesh की पिछली दो दशकों की राजनीति में Shivraj singh के बारे में एक धारणा निर्विवाद रूप से कायम रही, कि प्रदेश की सियासत में वो एक अकल्पनीय चेहरा बन गए हैं। उनके मुकाबले में विपक्ष में तो दूर, बल्कि भाजपा के खेमे में भी कोई नेता नजर नहीं आता था, इस दफा भी भाजपा की बड़ी जीत के बाद जब उनके विकल्प को लेकर कयासों का दौर शुरू हुआ, तो अपने जैसे वो अकेले ही नजर आ रहे थे और जब हाईकमान ने यहां पर डॉ. मोहन यादव का चयन मुख्यमंत्री के तौर पर किया, तो न चाहते हुए भी सूबे के सियासी गलियारों में ये सवाल उठने लगे, कि क्या मोहन यादव शिवराज सिंह के बेहतर विकल्प साबित होंगे?

शिवराज सिंह ने जो हासिल किया, उसके लिए प्रदेश ने उन्हें 18 साल का समय दिया था, लेकिन यहां पर यादव के सामने बहुत कम समय में खुद को उस स्तर पर पहुंचाने की चुनौती थी, जहां पर प्रदेश और प्रदेश की जनता एक मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें शिवराज से ज्यादा तवज्जो दे सके। भले ही शिवराज किसी भी स्तर पर मोहन के प्रतिस्पर्धी नहीं थे, लेकिन राजनीतिक पंडितों ने उनके बीच तुलनात्मक अध्ययन शुरू कर दिया था, साथ ही ये सवाल भी हर किसी के जहन में था, क्या मोहन यादव बतौर सीएम प्रदेश में शिवराज की कमी महसूस होने से रोक सकेंगे? और इसका जवाब चौकाने वाला साबित हुआ, सिर्फ 50 दिन के कार्यकाल में ही मोहन ने कुछ ऐसा कर दिखाया, कि वाकई प्रदेश को शिवराज की कमी महसूस नहीं हो रही। आखिर ऐसा मोहन ने क्या जादू चलाया, इस विषय को कुछ बिंदुओं से समझते हैं...

जो कोई नहीं कर सका, वो किया!

मुख्यमंत्री रहते भले ही मोहन को अभी दो महीने का वक्त नहीं बीता, लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में उनके फैसले एक नजीर के तौर पर उभरकर सामने आए। इसमें सबसे पहले उन्होंने जहां धार्मिक स्थलों से तेज आवाज के लाउडस्पीकर और खुले में मांस बिक्री पर पाबंदी लगाकर वो काम कर दिखाया, जिससे इससे पहले कोई राजनेता करने की जहमत नहीं उठा पा रहा था, तो वहीं 3 दशक से परेशान हुकुमचंद मिल के मजदूरों को उनका पैसा दिलवाकर और रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण का फैसला लेकर उन्होंने ये साबित कर दिया, कि प्रदेश की मुखिया के पद पर उनकी मौजूदगी आम जन के लिए कितनी फायदमेंद है।

लालफीताशाही पर लगाम कसके दिया सख्त संदेश

बतौर मुख्यमंत्री शिवराज की सहजता भले ही कितनी भी लोकप्रिय हो, लेकिन एक प्रशासक के तौर पर लालफीताशाही पर उनकी ढीली लगाम हमेशा से ही उनके विरोधियों को उन पर सवाल उठाने का मौका देती रही, शुरूआती समय में लगा, कि सीएम पद की कुर्सी संभालने वाले मोहन अफसरशाही को लेकर थोड़े दबाव में नजर आएंगे, लेकिन ऐसा न करते हुए वो अपनी पिच पर खुलकर खेले, और सबसे पहले अपने किचन कैबिनेट में बड़ी सर्जरी करके और फिर लापरवाह अफसरों पर डंडा चलाकर वो लालफीताशाही पर लगाम कसने के मसले में शिवराज से एक कदम आगे निकल गए।

आम आदमी से सीधे जुड़े

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की अलग छवि उनकी उस शैली के कारण तैयार हुई थी, जिसमें वो हमेशा खुद को आम जनता के नजदीक पेश करते थे, मुख्यमंत्री पद संभालने के साथ मोहन ने सबसे पहले उसी दिशा में कदम बढ़ाए फिर बात चाहे भरी ठंड में सड़क किनारे सो रहे बेघरों को कंबल बांटने और रेन बसेरों के निरीक्षण की बात करें, या फिर उनके उन फैसलों की जिनसे आम जनता की जिंदगी सीधे तौर पर प्रभावित हुई। बतौर मुख्यमंत्री मोहन यादव की इन कवायदों ने काफी हद तक प्रदेश और प्रदेश की जनता को शिवराज की कमी महसूस नहीं होने दी।

मोदी की गारंटी पूरा करके मोहन ने मोहा मन!

तेंदुपत्ता संग्रहण की दर 3 हजार से बढ़ाकर 4 हजार करना हो, या फिर आयुष्मान के लाभार्थियों के लिए सरकारी खजाना खोलने की। उद्योगों के लिए रेड कारपेट बिछाने की बात करें, या फिर सुशासन के लिए ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की। ये गारंटी भले ही पीएम मोदी ने प्रदेश की जनता को दी थी, लेकिन इन्हें पूरा करके मोहन ने प्रदेश की जनता का मन मोह लिया। इसके साथ ही लाडली बहना योजना को जारी रखके सीएम ने खुद की स्वीकार्यता पर और मोहर लगा दी।

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This news is Content Writer meena