सौ की सीधी एक बात! शिवराज के सामने सब बच्चे हैं...सियासी मेल मुलाकात पर संघ की टेढ़ी नजर Exclusive

6/3/2021 7:34:19 PM

मध्यप्रदेश डेस्क (हेमंत चतुर्वेदी): चंद नेताओं की एक खोखली जिद के कारण इन दिनों मध्यप्रदेश में सियासी खलबली देखने को मिल रही है। सालों से दबे सुर में शिवराज विरोधी सियासत करते आ रहे भाजपा के इन दिग्गजों की मेल मुलाकात के बाद लोगों को समझने में देर नहीं लगी, कि इनका उद्देश्य क्या है। नतीजतन उत्तराखंड में तख्तापलट के बाद पहले उत्तर प्रदेश और फिर मध्यप्रदेश में इससे जुड़ी बहस छिड़ गई। लेकिन क्या वाकई ये सब इतना आसान है?

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- पंजाब केसरी पर पूरी कहानी 
अपने तमाम प्रयासों के बाद हाईकमान को अपनी सियासी कसरतों के लिए मनाने वाला शिवराज विरोधी खेमा अब किसी भी मोर्चे पर कमजोर साबित नहीं होने देना चाहता। बतौर ओबीसी मुख्यमंत्री के विकल्प के तौर पर इस खेमे ने एक दलित और एक ओबीसी चेहरे का नाम भी तय कर लिया था। और तो और इसके लिए उच्च वर्ग से जुड़े दिग्गज त्याग को तैयार हो गए। चूंकी इन कवायदों की इजाजत लेने वाले हाईकमान के बहुत करीबी थे, तो उसने हल्की फुल्की कवायदों का इशारा तो कर दिया था, लेकिन इस बात भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी अच्छी तरह से समझता है, कि मौजूदा दौर में मध्यप्रदेश भाजपा के पास शिवराज का कोई विकल्प है ही नहीं और अपनी इस धारणा को पुख्ता करने के लिए उसने संघ की मदद ली, जिसकी जिम्मेदारी भोपाल में रह रहे एक वरिष्ठ संघ पदाधिकारी को दी गई। 
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- संघ के सर्वे में क्या आया ?
हालांकि कुछेक स्तर पर संघ के कुछ दिग्गज शिवराज विरोधी खेमे की लाइन में है। लेकिन जब प्रदेश में जिला और जमीनी स्तर पर काम कर रहे संघ पदाधिकारियों से इस विषय में फीडबैक लिया गया, तो वह काफी हद तक हाईकमान की मंशा से मेल खा रहा था। कई जिलों के पदाधिकारियों ने तो यहां तक कह दिया, कि विरोधी गुट के कई लोग जो शिवराज को उनकी कुर्सी से हटाना चाहते हैं, वह पिछले चुनाव में अपनी सीट ही शिवराज के नाम पर जीते थे। ऐसे में भला उस खेमे से शिवराज का विकल्प कैसे खोजा जा सकता है। हालांकि संघ के सर्वे की प्रक्रिया अभी जारी है। लेकिन अब तक नतीजों के आधार पर यह मुश्किल लग रहा है, कि संघ मौजूदा स्थिति में प्रदेश में किसी भी तरह का बदलाव स्वीकार करेगा। 

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- शिवराज का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट
मध्यप्रदेश भाजपा में इस वक्त जितने भी नेता अप्रत्यक्ष तौर पर शिवराज के नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। उन सबके जनाधार और नाम का क्षेत्र सीमित है। कई तो ऐसे हैं, जो अपनी विधानसभा के बाहर की स्वीकार्य नहीं है। जबकि शिवराज विंध्य से लेकर मालवा तक और भोपाल से लेकर ग्वालियर चंबल तक अपनी पैठ रखते हैं। राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक कहना है, कि हर विधानसभा में शिवराज का अपना वोट बैंक है, जो भाजपा के काम आता है। उनके मुताबिक भले ही शिवराज 2018 में भाजपा को बहुमत नहीं दिला पाए, लेकिन अगर उनकी जगह कोई और होता, तो पार्टी की सीटों का आंकड़ा उस वक्त से भी काफी कम रहता।


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meena

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