1 लड़की का तन ढकने के लिए जिसने उतार दी अपनी पगड़ी, नहीं रहे गरीब और मजबूरों के वो ''पापाजी''

10/6/2020 6:24:00 PM

इंदौर: किसी अंजान लड़की के लिए अपनी पगड़ी उतार कर समाज के रोष का सामना करने वाले, गरीबों व बेसहारों का मसीहा बनने वाले इंदौर शहर के पापा जी अब इस दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह गए। जी हां हम बात कर रहे हैं, इंदौर के समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन जो दूर दूर तक पापा जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद उन्होंने निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। सूदन ने करीब 50 सालों तक सामाजिक कार्य करते हुए कई लोगों को नया जीवन दिया तो कई का अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया। कई के कीड़े लगे घावों को खुद साफ किया। 
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मानवता की मिसाल बने अमरजीत सिंह
अमरजीत सिंह इंदौर के वो शख्स थे जो इंसानियत की जीती जागती मिसाल थे। जिसका उदाहरण 2006 में देखने को मिला जब बिलावली तालाब में डूबी लड़की का तन ढंकने के लिए कपड़ा नहीं मिलने पर अपनी पगड़ी उतार दी थी। इसके लिए उन्हें समाज के रोष का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कहा था कि ऐसे काम के लिए वे बार-बार ऐसा करेंगे।

मानवता की जीती जागती मिसाल थे सूदन
पुलिस कंट्रोल रूम पर यदि कोई व्यक्ति फोन कर ये सूचना देता है कि शहर की किसी सड़क, गली या मोहल्ले में कोई बीमार व्यक्ति पड़ा है, जिसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं, दुर्गन्ध आ रही है तो वहां से उसे दो नंबर दिए जाते थे और कहा जाता था कि इन पर संपर्क कीजिए। आप यह जानकर हैरान होंगे कि ये नंबर किसी अस्पताल या एम्बुलेंस के नहीं, बल्कि इंदौर में रहने वाले समाजसेवी अमरजीत सिंह सूदन के थे। यदि कोई मजबूर या बेसहारा इन्हें फोन करता तो ये बिना देरी के अपनी बाइक उठाकर उसके पास पहुंच जाते और फिर अपनी बाइक पर या रिक्शा से या फिर एम्बुलेंस बुलाकर उसे ज्योति निवास या किसी ऐसे आश्रम ले जाते थे। वे उसके घाव को अच्छे से साफ करते और फिर किसी वृद्धाश्रम या अनाथ आश्रम में पहुंचा देते थे। 
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बने मदद की मिसाल 
समाजसेवर अमरसिंह खंडवा के रहने वाले थे। पीड़ितों की सेवा करने की सीख उन्हें अपने पिता से मिली थी। बचपन से पहली दफा उन्होंने 14 साल की उम्र में ही दिल को छू लेने वाला मामला सामने आया था। दरअसल वे  स्कूल जा रहे थे तो रास्ते में एक बुजुर्ग महिला रो रही थी और उसके पास एक व्यक्ति लेटे हुए थे। जब सूदन ने उनसे पूछा कि आप ऐसे क्यों रो रही हैं। इस पर बुजुर्ग ने बताया कि लेटे हुए व्यक्ति उनके पति हैं और उनकी मृत्यु हो चुकी है। लेकिन मेरे पास इतने रुपए नहीं हैं कि मैं उन्हें घर तक लेकर जा सकूं या फिर उनका अंतिम संस्कार कर सकूं। इस पर अमरसिंह दौड़कर अपने घर गए और अपना गुल्लक तोड़ दिया। उसमें 12-15 रुपए थे, उससे उनका अंतिम संस्कार किया। जब घर लौटा तो पिता ने कहा कि बेटा आज बहुत लेट हो गए। इस पर अमरसिंह ने पूरा वाक्या सुनाया तो उन्होंने अपने बेटे को गले से लगा लिया और बोले इतनी सी उम्र में तुमने बहुत बड़ा काम किया है।


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नौजवान लड़के के शरीर में रेंग रहे थे कीड़े
सूदन के जीवन का एक और वाक्य हमेशा हमेशा के लिए लोगों के लिए उदाहरण बन गया जब एमवाय अस्पताल की बिल्डिंग के बाहर एक 24-25 साल का लड़का दिखा, उसकी पीठ में एक बड़ा घाव था, जिसमें कीड़े लगे हुए थे। पूरा शरीर बदबू मार रहा था, उसे देखकर उन्हें लगा कि इसके लिए कुछ करना चाहिए। इस पर वे उसे एमवाय लेकर गए, लेकिन मरीज की हालत देखकर कोई उसे रखने को तैयार नहीं हुआ। इस पर वे उसे लेकर मदर टेरेसा के ज्योति निवास लेकर पहुंचे। वहां अपने हाथों से पहले उसके घाव को धोया और फिर कीड़े निकाले और उसका इलाज कराया। ठीक होने के बाद मरीज का पता ठिकाना मालूम किया। पता चला कि वो झारखंड का रहने वाला था। उसके घरवालों को इंदौर बुलाया और वो उसे लेकर वापस अपने गांव चले गए।
85 वर्षीय बुजुर्ग को उठाकर ले गए थे गुरुद्वारा 
सूदन जब महज 14-15 साल के थे तो एक घटना उनके जीवन भर के लिए यादगार बन गई। दरअसल, सड़क किनारे बैठी एक 85 साल की महिला बारिश में भीग रही थी। महिला के पैर में घाव था, जिसमें कीड़े रेंग रहे थे। शरीर से बदबू भी आ रही थी। सुदन ने उस बुजुर्ग को अपनी पीठ पर उठाया और गुरुद्वारे ले गए। यहां पर ज्ञानी जी से कहकर उन्हें रहने की जगह दिलवाई। लंगर से खाना खिलाया। अस्पताल में महीनों इलाज कराया और बुजुर्ग स्वस्थ हो गई।
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पगड़ी उतारने पर झेलना पड़ा था आक्रोश
ये वाक्य 2006-7 का है जब अमरजी को पुलिस द्वारा उन्हें जानकारी मिली कि बिलावली तालाब में एक युवती की लाश मिली है। मौके पर पहुंचे तो पता चला कि वह पन्नी बिनने वाली 12-13 साल की नाबालिग बच्ची थी। वहां पर फायर टीम मौके पर थी। अंधेरा होने से फायर ब्रिगेड ने काम बंद करने को कहा। इस पर वे रोड पर गए और कुछ कार वालों से निवेदन किया कि मेरी बच्ची तालाब में डूब गई है। लाइट नहीं होने से उसे निकालने में परेशानी आ रही है। यह सुनकर पापाजी ने कार की लाइट जगाकर बच्ची को बाहर निकालने में मदद की। लेकिन बच्ची के शरीर पर कपड़े नहीं थे। पास में मौजूद झोपडी और बंगले वालों से चादर या कोई कपड़ा मांगा तो उन्होंने नहीं दिया। ऐसे में नग्न बच्ची को हजारों लोग घूर रहे थे। इस पर उन्होंने पगड़ी उतारी और उसे ऑटो से लेकर अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टरों से तत्काल इलाज के लिए कह दिया कि मेरी बच्ची है। पगड़ी उतारने पर समाज के लोगों ने पापाजी का जमकर विरोध किया लेकिन उन्होंने बेबाकी से कहा-ऐसी परिस्थिति में हर बार वे ऐसी गलती करेंगे।

मरने के लिए अस्पताल के बाहर मां को छोड़ गए थे बच्चे 
एडिशनल एसपी प्रशांत चौबे सूदन के अनुसार, वे बिना किसी शुल्क के दिनभर यह काम करते थे। अपने स्वयं के खर्च से उन्होंने लोगों की मदद की। हमारे पास एक बुजुर्ग महिला की खबर आई थी। वह बोल नहीं पा रही थी। उनके बच्चे उन्हें एमवाय अस्पताल के सामने रखकर चले गए थे। इसकी जानकारी सूदन को मिली तो वे खुद वहां पहुंचे, महिला की सफाई करवाई। इसके बाद इलाज करवाया। ठीक होने पर उन्होंने अपना नाम पता बताया। इसके बाद सागर जिले से उनके बच्चों को बुलाया गया। पुलिस की समझाइश के बाद वे उन्हें घर लेकर गए। संक्रमण काल में भी सूदन ने अपनी मां की तरह उनका लालन-पालन किया था।
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संस्था के बिना ही की समाजसेवा
सूदन लगातार लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहते थे कई बार लोगों ने उन्हें संस्था बनाकर उसके माध्यम से सेवा करने की सलाह दी, लेकिन वे कभी कोई संस्था बनाना नहीं चाहते थे। उनका मानना था कि वे कहते थे कि मैं अपने मन की तसल्ली के लिए ये काम करता हूं। मैं संस्था बनाकर सुर्खियां बटोरने नहीं चाहता। एम्बुलेंस, रिक्शा, दवाई, इलाज आदि के खर्च की व्यवस्था कैसे होती है ये पूछने पर वो बताते थे कि मेरे कुछ मित्र हैं, जिन्हें मुझ पर पूरा भरोसा है। वो हर नेक काम के लिए मेरी मदद करते हैं। वे बताते थे मेरे पिताजी मुझसे कहते थे कि अगर कोई अमीर बीमार पड़ता है तो लोग हाज़री लगाने पहुंच जाते हैं, लेकिन जो लोग सड़कों पर घूम रहे हैं, उनके लिए कोई नहीं सोचता है। अगर तू इनके लिए कुछ कर सकता है, तो ज़रूर करना।


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meena

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