भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का मध्यप्रदेश से था खास नाता

8/16/2018 6:32:52 PM

भोपाल : मध्यप्रदेश में जन्में देश के लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे और इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती थे। गुरुवार शाम 5 बजकर 5 मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली। वाजपेयी मधुमेह, किडनी ट्रैक्ट इंफेक्शन, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, पेशाब आने में दिक्कत और सीने में जकड़न की सम्सया से जूझ रहे थे।

सुबह साढ़े 10 बजे डॉक्टरों ने पूर्व पीएम का मेडिकल बुलेटिन जारी किया था। जिसके अनुसार उनकी हालत में कोई सुधार नहीं था। इससे पहले एम्स ने 15 अगस्त की रात एक बयान में कहा, ‘दुर्भाग्यवश, उनकी हालत बिगड़ गई है। उनकी हालत गंभीर है और उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है।’



मधुमेह से ग्रस्त वाजपेयी की एक ही किडनी काम करती है। साल 2009 में उन्हें आघात आया था, जिसके बाद उन्हें लोगों को जानने-पहचानने की समस्याएं होने लगीं। बाद में उन्हें डिमेशिया की दिक्कत हो गई। अटल बिहारी वाजपेयी काफी समय से बीमार थे और 9 हफ्ते से AIIMS में ए़डमिट थे। दो दिन से उनकी हालत बेहद नाज़ुक बनी हुई थी। वो लगातार लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। उनकी सेहत में लगातार गिरावट आ रही थी। हालत गंभीर होने की खबर आते ही दो दिन से एम्स में नेताओं का पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था।


मध्यप्रदेश में हुआ था वाजपेयी का जन्म
मध्‍य प्रदेश के ग्‍वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्‍में अटल बिहारी वाजपेयी का एक लंबा समय इस शहर में गुजरा है। पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश के बटेश्वर से मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में बतौर टीचर नौकरी लगने के बाद यहीं शिफ्ट हो गए थे। माता-पिता की सातवीं संतान अटल की तीन बहनें और तीन भाई थे। वाजपेयी 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री थे। उनका स्वास्थ्य खराब होने के साथ ही धीरे-धीरे वह सार्वजनिक जीवन से दूर होते चले गए और कई साल से अपने आवास तक सीमित हैं।



विक्‍टोरिया कॉलेज की यादें
ग्‍वालियर का वो विक्‍टोरिया कॉलेज जिसे अब महारानी लक्ष्‍मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है, उसमें वाजपेयी की पढ़ाई हुई। यहीं से बीए करने के साथ ही अटल ने वाद विवाद की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया। कॉलेज में उनके भाषणों ने उन्‍हें हीरो बना दिया और बाद में वो पूरे देश में एक हीरो के तौर पर जाने गए।

अपने भाषण से दिल जीत लेते थे वाजपेयी
वाजपेयी देश के जननेता थे। वे उन चंद नेताओं में से एक थे, जिन्हें सुनने के लिए जनता की भारी भीड़ उमड़ जाती थी। हिन्दी पर जबरदस्त पकड़ होने के चलते वे भाषणों में ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करते जिसपर जनता दीवानी हो जाती थी।



लड़ी आजादी की लड़ाई 
सिर्फ एक राजनेता ही नहीं हैं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका भी निभाई थी। वे पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए. साल 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्हें 23 दिन के लिए जेल भी गए।

12 बार सांसद बने
वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने। 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले अटल बिहारी बाजपेयी इस चुनाव में हार गए थे। लेकिन साल 1957 में वह सासंद बने। अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे और इसी दौरान 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहे।



पोखरण परीक्षण
पोखरण परीक्षण में अटल जी ने अपनी अहम भूमिका निभाई। कई देशों के विरोध के बावजूद साल 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण करवाने के बाद अटल जी ने दुनिया को बता दिया कि भारत अब किसी से डरने वाला नहीं है। इस परीक्षण का अमेरिका ने जोरदार विरोध किया था लेकिन अटल जी ने किसी एक नहीं सुनी और दुनिया में भारत को एक सशक्‍त देश के रूप में सबित किया।



भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी’
वाजपेयी देश के भारत रत्न प्रधानमंत्रियों में से एक थे। उन्हें 27 मार्च, 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह कार्यक्रम कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर ही हुआ था। जिसमें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।



विपक्ष भी गाता है वाजपेयी के गीत
हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी का नाता बीजेपी से रहा है। लेकिन वे ऐसे नेता थे जिनके प्रशंसक विपक्ष में भी हैं। विपक्षी दलों के नेता भी उनके दीवाने थे। भले ही विपक्ष बीजेपी की आलोचना करेगा लेकिन कोई भी वाजपेयी के खिलाफ बोलता नजर नहीं आया। साल 1991 की बात है जब वाजपेयी की आलोचना से आहत होकर मनमोहन सिंह तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को इस्तीफा देने जा रहे थे।



अटल बिहारी वाजपेयी के लंबे राजनीतिक करियर से जुड़ी कई बातें हैं। जो कि अपने आप में एक मिशाल हैं। हालांकि देशभर में वाजपेयी की स्वास्थ्य कामना के लिए सभी राजनीतिक दल और उनके प्रशसंकों ने हवन और यज्ञ भी किए। लेकिन कहा जाता है कि ‘होनी को कौन टाल सकता है’। खैर 93 साल के वो दिग्गज जिनके विरोधी भी उनके फैन हैं वो आज हमारे बीच नहीं रहे। पंजाब केसरी उन्हें श्रद्धांजलि देता है और उनकी आत्मा शांति की कामना करता है।

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