भोपाल गैस त्रासदी: मिनटों में हुई थी हजारों मौत, जानिए 2 दिसंबर की रात कैसे लीक हुई थी जहरीली गैस?

12/3/2021 12:33:55 PM

मध्यप्रदेश डेस्क (विकास तिवारी): आज विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड को 37 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुआ ये भयावह हादसा हजारों लोगों को निगल गया। 2-3 दिसंबर की रात को हजारों जिंदगियां काल के गाल में समा गईं। इस रात यूनियन कार्बाइड से निकलने वाली मौत ने हर दरवाजे पर दस्तक दी थी। हर शख्स सांस लेना चाहता था। लेकिन उस जहरीली गैस ने फेफड़ों फूलना बंद कर दिया था। हर कोई अस्पताल की ओर भाग रहा था। लेकिन आंखें भी दगा दे रही थीं। उनमें देखने की ताकत खत्म हो चली थी। लिहाजा, कई लोग रास्ते में ही गिर गये, और जो गिरा, वो फिर उठने लायक नहीं रहा। आलम यह था कि हमीदीया और जयप्रकाश (JP) जैसे बड़े अस्पताल भी सैकड़ों लोगों की पीड़ा से कराह उठे। धीरे धीरे अस्पताल मुर्दाघर बनने लगे। आलम यह था कि अस्पतालों के बाहर लाशों का अंबार लगने लगा। शुरूआती कुछ घंटे में ही करीब तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी कम पड़ गये। अस्पताल जाने वाले हर रास्ते में लाशों के ढेर दिख रहे थे। यह सिलसिला दो तीन दिनों तक चलता रहा, हालत यह थी कि श्मशान में लाशों की चिता जलाने के लिये लकड़ियां तो कब्रिस्तानों में कब्र के लिये जमीन कम पड़ने लगी।



1969 में स्थापित हुई यूनियन कार्बाइड...
भोपाल में जेपी नगर के ठीक सामने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट लगाया। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था, जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। इस घटना के लिए UCIL (यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड) द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं। जबकि यूसीआईएल ने मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का इस्तेमाल किया। MIC एक जहरीली गैस थी। चूंकि इसके इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था, इसलिए यूसीआईएल ने इस जहरीली गैस को अपनाया। उस वक्त राजकुमार केसवानी नाम के पत्रकार ने 1982 से 1984 के बीच इस पर चार आर्टिकल लिखे। हर आर्टिकल में यूसीआईएल प्लांट के खतरे से चेताया। उन्होंने बताया कि नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था लेकिन उनकी चेतावनी को अनदेखा कर दिया गया।



2 दिंसबर की रात 10:30 बजे शुरू हुई त्रासदी की शुरुआत...
दो दिसंबर की रात 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी। जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे। इसके ठीक एक घंटे बाद 9 बजे करीब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइपलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़े। रात 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। इस दौरान एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। गैस लीक होने का एक और प्रमुख कारण पाइपलाइन भी थी, जिसमें जंग लग गई थी। इस बीच अचानक टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया। जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया।



रात 10.30 पर शुरू हुई महा तबाही की कहानी...
रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और टैंक पर प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों को घुटन होने लगी। वाल्व बंद करने की लगातार कोशिश की गई लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा। जिसे सुनकर सभी कर्मचारी भागने लगे। इसके बाद टैंक से भारी मात्रा में निकली जहरीली गैस बादल की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई। इसके बाद अचानक लोगों को घुटन महसूस होने लगी, आंखों में जलन होने लगी, किसी को ये नहीं समझ आ रहा था कि ये आखिर हो क्या रहा है। जहरीली गैस के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण-पूर्वी इलाका आ चुका था। देखते ही देखते चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया।



सुबह लग चुका था लाशों का अंबार...
2 दिसंबर की रात शुरू हुए महाविनाश के बाद 3 दिसंबर की सुबह हजारों लोग मौत की नींद सो चुके थे। शवों को सामूहिक रूप से दफनाया जा रहा था। मरने वालों के अनुमान पर अलग-अलग एजेंसियों की राय भी अलग-अलग है। पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी। MP की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। वहीं कुछ रिपोर्ट्स में इस बात का भी दावा किया गया कि,  8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी, और लगभग अन्य 8000 से ज्यादा लोग गैस रिसाव से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। 2006 में सरकार के द्वारा कोर्ट में दिए हलफनामे में बताया गया कि गैस रिसाव में 5,58,125 लोग जख्मी हुए। उनमें से 38,478 आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हुए और 3,900 ऐसे मामले थे जिसमें स्थायी रूप से लोग विकलांग हो गए। इसके प्रभावितों की संख्या लाखों में होने का अनुमान है। इंसान ही नहीं, करीब 2000 हजार जानवर भी इस त्रासदी का शिकार हुए थे।

इस हादसे पर 2014 में 'भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन' फिल्म भी बनी। त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए और यह भयावह सिलसिला अभी भी जारी है। पंजाब केसरी हादसे में मृत लोगों को श्रद्धांजली अर्पित करता है।

 

 

Vikas Tiwari

This news is Content Writer Vikas Tiwari