MP में लोकसभा चुनाव में बीजेपी का पलड़ा रहा है भारी, क्या इस बार बदलेगा समीकरण ?

2/17/2019 4:29:16 PM

भोपाल: मध्यप्रदेश में 2003 से लेकर 2018 तक बीजेपी की सरकार रही, इस बीच लोकसभा चुनावों में इसका असर भी देखने को मिलता रहा है और बीजेपी लोकसभा चुनाव में बढ़त बनाती रही है। लेकिन 15 वर्षों के बाद बीजेपी को प्रदेश की सत्ता से हाथ धोना पड़ गया। जिसके कारण अब 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस नए जोश के साथ तैयारी में जुटी हुई है। पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में 29 में महज दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार 20 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही है। वहीं बीजेपी इस बार भी 29 में से 27 सीटें जीतने की बात कह रही है। लोकसभा चुनावों के लिए दोनों दलों ने चुनाव अभियान भी शुरू कर दिए हैं। 


1984 के बाद से लोकसभा चुनाव में MP में बीजेपी का पलड़ा रहा है भारी

इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो एक बड़ी बात सामने निकलकर आती है, मध्यप्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर हुए चुनावों में हमेशा से भाजपा का पलड़ा कांग्रेस से भारी रहा है। यहां तक की दस साल की दिग्विजय सरकार के दौरान भी बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल की थीं। वर्ष 1991 में जरूर कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए बीजेपी को मीलों पीछे छोड़ दिया था। उस समय मध्यप्रदेश का बंटवारा नहीं हुआ था। 
 


वर्ष 1984 कांग्रेस के लिए सबसे सफल रहा 

इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में सहानुभूति के दम पर कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी के गठन के बाद उसकी यह सबसे बड़ी हार थी। 1984 में कांग्रेस की लहर इस कदर थी की अटल बिहारी वाजपेयी भी ग्वालियर लोकसभा सीट से हार गए थे। इस सीट पर माधवराव सिंधिया ने बड़ी जीत दर्ज की थी, जिसकी पूरी देश में चर्चा हुई थी।  
 




1989 में बोफोर्स घोटाला कांग्रेस को ले डूबा

वर्ष 1989 में देश में बोफोर्स तोप घोटाला उजागर हुआ। बीजेपी ने इस मुद्दे को ऐसा उठाया कि उसकी लॉटरी ही लग गई। इसके बाद से बीजेपी लय में आने लगी और इस वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 40 में से 27 सीटों पर जीत दर्ज की। 



लोकसभा चुनाव 1991 में कांग्रेस ने फिर की वापसी

1991 में मध्यप्रदेश में कुल 40 लोकसभा सीटें थीं। तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी, और सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे। लेकिन वर्ष 1991 में ही हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी करते हुए 40 सीटों में से 27 तो बीजेपी ने महज 12 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि एक सीट बीएसपी के खाते में गई। यही वो लोकसभा चुनाव था जिसके बाद से कांग्रेस मध्यप्रदेश में बीजेपी से आगे नहीं निकल पाई।  


 

लोकसभा चुनाव 1996 कांग्रेस का पतन शुरू

1991 के पांच वर्षों बाद यानी 1996 के लोकसभा चुनाव में एक बड़ा फेरबदल देखने को मिला। बीजेपी ने इस लोकसभा चुनाव में 40 में से 27 सीटें जीती, तो 1991 में 27 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज 8 सीटों पर सिमट गई। जबकि 1 सीट पर मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस, 1 सीट तिवारी कांग्रेस, 1 सीट बीएसपी और एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। लेकिन 1998 में अटल सरकार बहुमत न होने के कारण गिर गई और जिसके बाद पुन: चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी ने अपना दबदबा कायम रखा। भाजपा ने अपनी जीत को और भी बड़ा करते हुए 40 सीटों वाले मध्यप्रदेश में 30 सीटें जीती तो कांग्रेस ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29 तो कांग्रेस को 11 सीटों पर जीत मिली। इस दौरान हैरान करने वाली बात ये थी कि 1999 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दिग्विजय सिहं मुख्यमंत्री थे। 



 

1 नवंबर 2000 मध्यप्रदेश का पुनर्गठन

वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य छत्तीसगढ़ बना। जिसके बाद एमपी में कुल 29 लोकसभा सीटें रह गईं। मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के बाद हुए 2004 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की वाजपेयी सरकार की तो हार हुई। लेकिन मध्यप्रदेश में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला और इस बार भाजपा ने 29 लोकसभा सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की और सिर्फ 4 सीटों पर कांग्रेस को संतोष करना पड़ा। लेकिन इसके पांच वर्षों के बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुछ बढ़त बनाई और 29 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की। इस वर्ष बीजेपी को 16 सीटों पर जीत मिली थी और एक सीट बसपा के खाते में गई थी। 
 


2014 में मोदी लहर में फिर फेल हुई कांग्रेस

2009 लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की कुछ हद तक वापसी करने वाली कांग्रेस की हालत सबसे ज्यादा 2014 में खराब हुई। मोदी लहर में कांग्रेस को 29 लोकसभा सीटों पर कुल 2 सीटों पर ही जीत मिली। जिसमें छिंदवाड़ा से कमलनाथ जीते तो गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया। 


 

सभी परिणामों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात यह सामने आती है कि 1984 के बाद से मध्यप्रदेश में बीजेपी का पलड़ा कांग्रेस से भारी ही रहा है। लेकिन वर्तमान में एमपी में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार है तो देखना यह होगा कि बीजेपी लोकसभा चुनावों में अपनी लय बरकरार रख पाती है या इस बार कांग्रेस की वापसी होगी। 

 

Vikas kumar

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