फुटपाथ पर पकौड़े बेच रहा है इंग्लिश का प्रोफेसर, जानिए कुर्सी से सड़क तक आने की कहानी

12/3/2020 7:15:04 PM

खंडवा(निशात सिद्दीकी): लॉक डाउन में लाखों लोग बेरोजगर हो गए। हालांकि अनलॉक होने के बाद कुछ की जिंदगी तो पटरी पर आ गई लेकिन कब ऐसे भी लोग हैं कि उन्हें अच्छा पेशा छोड़ कर पानी पूरी बेचने पर मजबूर होना पड़ा। उन्हीं में से एक है नेपानगर के रहने वाले विजय बावस्कर। दरअसल विजय बावस्कर लॉक डाउन से पहले अंग्रेजी के शिक्षक हुआ करते थे। लेकिन लॉक डाउन के चलते उनकी यह नौकरी चली गई।



विजय बावस्कर ने इंग्लिश में एमए और बीएड कर रखा है। साथ ही उन्होंने एमपीटीईटी ग्रेड 2 की परीक्षा में वर्ष 2018 में प्रदेश में 551वां स्थान भी प्राप्त किया था, लेकिन इस भर्ती पर ओबीसी आरक्षण में संशोधन को लेकर स्टे आने की वजह से मामला अभी न्यायालय में लंबित है। ऊपर से लॉक डाउन के चलते निजी स्कूल कोचिंग भी बंद हो गए। विजय ने अपनी नौकरी गंवाई तो अपने 11 लोगों के परिवार को पालने के लिए उसे खुद हलवाई का काम करना पड़ रहा है और वो फुटपाथ पर ठेला लगाकर पानीपूरी और पकौड़े बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है। विजय को सरकार से अभी भी उम्मीद है कि सरकार जल्द ही शिक्षकों के हक़ में फैसला करेगी ताकि वे फिर से लोगों को शिक्षित करने का काम कर सकें।



विजय का कहना है कि मैं 2012 से प्राइवेट स्कूल में तथा कोचिंग से अपनी सेवाएं दे रहा था, लेकिन मार्च 2019 के बाद से कोरोना के कारण मेरी नौकरी चली गई तथा मेरे जैसे कई शिक्षक आज बेरोजगार घूम रहे हैं। इसी के कारण मैंने मजबूरी में चाट पानी पूरी तथा भेल की दुकान चालू की। एमपीटीईटी मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती में चयनित हूं। सरकार इस भर्ती के लिए कोई ध्यान नहीं दे रही प्रदेश में मेरे जैसे 30 हजार से अधिक अभ्यार्थी पास हो चुके हैं तथा मेरिट लिस्ट में उनके नाम हैं।



इधर रोजगार से जूझते शिक्षक के परिवार वाले भी उनके पानी पूरी के व्यपार में मदद करते हैं। सुबह से ही परिवार से 11 लोग पानी पूरी और चाट बनाने की तैयारी में जुट जाते है। उन्हें यह काम पहले नहीं आता था लेकिन मजबूरी के चलते उन्होंने क्षेत्र के कुछ युवाओं से चाट ओर पानी पूरी बनाने की विधि सीखी। विजय की मां केसर बाई बताती है कि उन्होंने बहुत संघर्ष कर विजय को पढ़ाया उनका और विजय का सपना है कि वे शिक्षक बने।



विजय ने परीक्षा भी दी पास भी हो गया लेकिन सरकार ने अभी तक रोजगार नहीं दिया। ऊपर से निजी संस्थान भी कोरोना महामारी ओर लॉक डाउन के चलते बंद है। ऐसे में उनके सामने परिवार के पालन पोषण का संकट खड़ा हो गया। इसलिए अब वह भी अपने शिक्षक बेटे के चाट पकौड़ी के ठेले के लिए समान तैयार करने में मदद करती हैं। ताकि घर की जरूरतों के साथ परिवार का पालन पोषण किया जा सकें।



विजय ही नहीं विजय जैसे न जाने कितने युवा सक्षम होने के बाद भी रोजगार के लिए सरकारों की राह ताक रहे है। देखना यह है कि क्या सरकारें इन जैसे युवाओं को रोजगार दे पाती है या आत्मनिर्भर होकर उन्हें भी चाट पकौड़े ही बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा?

 

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