यहां होली त्योहार नहीं बल्कि श्राप है! क्यों इस गांव में सवा सौ साल से नहीं उड़ा गुलाल?

3/28/2021 1:35:58 PM

बैतूल(रामकिशोर पवार): राजस्थानी लोक गीत रे होलिया में उड़े रे गुलाल, कहीयो रे मंगेतर से... यह गाना इला अरूण ने बड़ी मस्ती के संग गाया है लेकिन राजस्थान से लगी राजा भोज की धारा नगरी से 13शताब्दी में बैतूल जिले के जंगलो में आ बसे क्षत्रिय पवार जाति बाहुल्य एक गांव डहुआ में बीते 128 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उस गांव की गलियों में गुलाल नहीं उड़ा है। 29 मार्च को जब पूरा देश होली का त्यौहार मना रहा होगा तब बैतूल जिले की मुलताई तहसील के एक गांव डहुआ में पूरी तरह सन्नाटा पसरा रहेगा।



इस गांव में होली का रंग बदरंग हो चुका है। गांव वालों को लगता है कि उनके  होली अभिशप्त है तभी तो गांव में बच्चे से लेकर बुढ़े तक होली के रंग और बदरंग चेहरे से कोसों दूर है। इस गांव की सालियां अपने जीजा के संग और भाभी अपने देवरों के संग बीते 128 से अधिक साल हो गए होली नहीं खेली है।



जी हां जब सारा देश होली के रंगों से सराबोर होगा मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में स्थित पवार जाति बाहुल्य इस गांव पिछले 129 सालों से होली नहीं मनाई गई है। जब आप यहां होली ना मनाने का कारण जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे। गांव के जागरूक नागरिक एवं पूर्व विधायक मनीराम बारंगे के पुत्र कांग्रेस नेता बलराम उर्फ बल्लू बारंगे के अनुसार उनकी जन्मभूमि डहुआ जो मुलताई से छिंदवाड़ा सड़क मार्ग पर बसा गांव है।



पूर्ण रूप से साक्षर एवं जागरूक इस गांव में बच्चो से लेकर बूढ़ों तक को सभी लोगो के लिए होली खेलने की मनाही है। ये किसी अंधविश्वास का नहीं बल्कि एक सदी से भी पहले हुए एक निर्णय के पालन के कारण हो रहा है। कहा जाता है कि होली के ही दिन गांव के प्रधान की एक बावड़ी में डूबने से हुई मौत हो गई थी। बस उस घटना के बाद से ही गांव के प्रमुख लोगों ने दिवंगत प्रधान को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए दोबारा कभी होली ना मनाने का निर्णय लिया जो आज तक जारी है।



इस गांव के ही रहने वाले पंच भीमराव बारंगे ने इस बारे में कहा कि गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अगर होली का पर्व दोबारा शुरू करना है तो पूरे गांव को एकमत होकर फैसला लेना होगा, क्योंकि इस गांव में होली ना मनाने का फैसला एक धार्मिक मान्यता जैसा बन चुका है जिसे बदलना इतना आसान नहीं है।



ग्राम डहुआ में 64 साल पहले इस गांव में बहू बनकर आईं लक्ष्मी बारंगे और बीते दो माह पहले गांव से बिहाई उर्मिला पंवार कहती है कि गांव की एकता और अखण्डता का प्रतिक है यह निर्णय बदलना बच्चों का खेल नहीं है। हालांकि हमारे बच्चों का हम पर काफी दबाव है लेकिन हमने इसे नियति का खेल मान लिया है।

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This news is Content Writer meena