'चला जाता हूं किसी की धुन में' दिलकश गायक का आज जन्मदिन, आभाष गांगुली है इनका असली नाम

8/4/2021 3:41:16 PM

खंडवा (निशात सिद्दीकी): भारतीय फ़िल्म जगत के हरफनमौला कलाकार स्व किशोर कुमार का 4 अगस्त को जन्म दिन है। इस दिन खंडवा में उनकी समाधि पर देश भर से हजारों की संख्या में उनके प्रशसंक माथा टेकने पहुंचते है। किशोर कुमार की अंतिम इच्छा के मुताबिक उनका पार्थिव शरीर मुम्बई से खंडवा लाया गया और खंडवा की जन्म भूमि पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके चाहने वालों ने उसी जगह उनकी समाधि बना दी जो आज तक पूजी जा रही है। 

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किशोर कुमार अक्सर फिल्मों में खंडवा का  जिक्र करते थे। कई बार तो उन्होंने फिल्मों में अपने घर का पता भी बताया हैं। लेकिन किशोर कुमार का पुश्तैनी मकान आज जर्जर हालत में है। घर के अंदर रखा सामान मानों आज भी उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। कुछ दिन पहले इसके बिकने की खबर आई थी लेकिन अमित कुमार ने समाचार पत्रों में नोटिस देकर इस पर विराम लगा  दिया। उनके प्रशसंक आज भी इस मकान में किशोर कुमार को तलाशते हैं। किशोर प्रेमियों का मानना हैं कि जब पाकिस्तान में राज कपूर और दिलीप कुमार साहब के पुस्तैनी मकानी को सहेजा जा सकता हैं तो फिर किशोर कुमार के इस जर्जर होते माकन को क्यों नहीं। पिछले 45 सालों से यह मकान एक चौकीदार के जिम्मे है। बुजुर्ग हो चुका यह चौकीदार भी इस मकान को एक स्मारक के रूप में देखना चाहता है। 

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किशोर कुमार का जन्म 04 अगस्त 1929 को खंडवा में हुआ था।  उनके पिता शहर के बड़े प्रतिष्टित वकील थे। अशोक कुमार और अनूप कुमार के बाद किशोर सबसे छोटे थे। किशोर की  स्कूली शिक्षा खंडवा में ही पूरी हुई उसके बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंदौर भेज दिया गया। उनके स्कूल के दोस्त बताते थे कि वह  शुरू से ही बड़े चुलबुले थे। स्कूल में डेस्क बजाना और उसपर खड़े होकर नाचना उनका सगल रहा था। पढाई में कमजोर किशोर कुमार टीचरो की नक़ल उतरने में भी माहिर थे। उनके दोस्त तो अब नहीं रहे लेकिन आज की युवा पीढ़ी में भी उनके प्रशसंकों की कमी नहीं है। कुछ तो ऐसे है जो किशोर कुमार को भगवान की तरह पूजते है और उन्ही की स्टाइल में जीवन जीते हैं। 

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किशोर दा को खंडवा से बड़ा लगाव था। वह जब भी खंडवा आते थे अपने दोस्तों के साथ शहर की गलियों चौपालों पर गप्पे लड़ाना नहीं भूलते थे। उन्हें जलेबी खाने का बड़ा शौक था। उनकी ज्यादातर महफ़िल जलेबी की दुकान पर ही सजती थी। वे जब भी खंडवा आते तो आम आदमी की तरह जीवन जीते उनमें कभी भी एक स्टार होने का घमंड नहीं था। यही वजह है कि उनकी समाधी पर जाने वाले उनके फेन दूध जलेबी का भोग लगाने के बाद ही श्रधांजलि अर्पित करते हैं। किशोर कुमार तो अब नही रहे लेकिन यह जलेबी की दुकान आज भी किशोर कुमार के नाम से चल रही है। दुकानदार किशोर कुमार की याद में रोज दूध जलेभी का भोग लगाते हैं। 

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किशोर ने 16 हजार फ़िल्मी गाने गाए और उन्हें 8 बार फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला। किशोर कुमार मुम्बई गए तो थे हीरो बनने, लेकिन वह हीरो के साथ ही महान गायक बन गए। जिद्दी फ़िल्म से उन्होंने गाना गाने का सफ़र शुरू किया था। आज भी किशोर दा के कई फेन दूर दूर से उनकी समाधि पर  साजो सामान के साथ आते हैं और उनकी समाधि पर सूरों की श्रद्धान्जलिं देते है।  यहां पहुंचे एक ऐसे ही किशोर फैन का कहना है कि किशोर कुमार की यह धरती उन के लिए जन्नत हैं। यहां आने के बाद वह अब वापस अपने शहर नहीं जाना चाहते। सुरों के बादशाह और अभिनय के महागुरु किशोर कुमार हमारे दिलों में आज भी नग्मे बन कर धड़कते हैं। उनकी यादें और उनके गीत हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं।


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Content Writer

Vikas Tiwari

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