रोचक है MP के 350 साल पुराने मोती महल का इतिहास, अंग्रेजी हुकूमत भी न हिला सकी इस महल की दीवार

6/1/2020 5:32:25 PM

मंडला(अरविंद सोनी): यूं तो मध्य प्रदेश में अनेकों धरोहर ऐसी है जिनका इतिहास काफी रोचक है लेकिन आज हम आपको ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो लगभग 350 साल पुराना है। इस महल की खास बात ये है कि इसकी दीवारों को कभी भी अंग्रेजी हुकूमत हिला नहीं पाई। इस महल का निर्माण 1667 में गौंड राजा हृदयशाह ने कराया था। वास्तुकला से सरोबार इस किले को मोती महल के नाम से भी जाना जाता है।



इसी महल में राजा हृदयशाह ने अपनी रानी के लिए रानी महल और मंत्रियों के लिए रायभगत कोठी का निर्माण कराया था। मंडला से 18 किलोमीटर दूर रामनगर में स्थित इस महल में अक्सर सैलानी आते रहते हैं। लेकिन कोरोना का कहर देश भर में ऐसा ढाया कि इससे खुद मोती महल भी न बच सका। आज ये महल लॉकडाउन के कारण सूना है।



मंडला से महज 18 किलोमीटर दूर गौड़ राजाओ की नगरी रामनगर है।1667 ईसवीं मे राजा हृदय शाह का शासन था। इस राजा ने मोती महल का निर्माण कराया था। केवल मोतीमहल ही नहीं बल्कि राय भगत की कोठी और रानी महल का निर्माण भी इसी राजा ने कराया था। प्राकृतिक नजारों के बीच स्थित ये मोतीमहल अपने आप में आकर्षक है, तो वहीं इस महल के समीप उत्तर दिशा में कल कल करती मां नर्मदा का अनुपम दृश्य भी इसकी शोभा बढ़ाता है।



इन सुंदर महलों के दीदार के लिऐ रोजाना देशी विदेशी पर्यटक हजारों की संख्या मे यहां पहुंचा करते थे। लेकिन कोरोना काल के बाद से ये महल सुने पड़े हैं। क्योंकि लॉक डाउन के बाद से इन्हें शासन प्रशासन ने नोटिस चस्पा कर दिया है। इन महलों के बंद होने पर स्थानीय लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट आन पड़ा है। लोग़ भूखमरी का शिकार हो रहे है। पर्यटकों के यहां आने से इनका व्यवसाय चलता था। लेकिन आज व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया है।



बता दें कि महल का इतिहास 360 साल पुराना है। तब मंडला गौंड राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। ह्यदयशाह के पुत्र रघुनाथ शाह और शंकरशाह अंग्रेजों से हुई जंग में शहीद हो गये थे। गौंड राजाओं की वीरता के चलते अंग्रेजी हुकूमत यहां से भाग खडा हुआ था। बताया यह भी जाता है कि गौंड राजा किले के अंदर से अंग्रेज सैनिकों को मार गिरा रहे थे। तो अंग्रेज सैनिकों द्वारा किले को ध्वस्त करने की तमाम कोशिशें की गई, लेकिन महल की एक ईंट भी नहीं गिरी। महल को लेकर आज भी यह कथा प्रचलित है कि इसका निर्माण ढाई दिन में हुआ था। महल से पांच किलोमीटर दूर अष्टफल पत्थरों का पहाड़ है। लोगों का मानना है कि काली पहाड़ी के अष्टफलक पत्थरों से ही महल का निर्माण किया गया है।

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