हबीब मियां ने दी थी स्टेशन के लिए जमीन, तो नाम पड़ा हबीबगंज! जानिए कौन है कमलापति

Saturday, Nov 13, 2021-06:15 PM (IST)

भोपाल: कई तरह की आधुनिक सुविधाओं से भरपूर दुनिया का नंबर वन हबीबगंज रेलवे स्टेशन लोकार्पण से पहले ही सुर्खियों में आ गया। इस स्टेशन को अब कमलापति रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाएगा। इस रेलवे स्टेशन के हबीबगंज नामकरण के पीछे बड़ी रोचक कहानी थी। दरअसल, इस रेलवे स्टेशन का नाम हबीब मियां के नाम पर रखा गया है। पहले इसका नाम शाहपुर हुआ करता था। साल 1979 में हबीब मियां ने रेलवे के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान पर दी थी, जिसके बाद इस रेलवे स्टेशन का नाम उनके नाम पर पड़ गया। वहीं एमपी नगर का नाम गंज हुआ करता था, जिसके बाद हबीब और गंज को मिलाकर हबीबगंज नाम कर दिया गया।

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कौन है कमलापति जिनके नाम से जाना जाएगा हबीबगंज
अब मध्य प्रदेश सरकार ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया। आइए आपको बताते हैं कि रानी कमलापति कौन हैं जिनके नाम से इस रेलवे स्टेशन का नाम रखा गया। रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के मुखिया निजाम शाह की विधवा गोंड शासक थीं। निजाम शाह गोंड राजा थे और उनकी सात पत्नियां थी। इनमें से एक रानी कमलापति थीं। रानी कमलापति बेहद खूबसूरत थी और राजा की सबसे प्रिय पत्नी थीं। उस समय निजाम शाह के भतीजे आलम शाह का बाड़ी पर शासन था। वह अपने चाचा निजाम शाह से बहुत ईर्ष्या करता था। यह ईर्ष्या न केवल धन शौहरत से ही नहीं बल्कि रानी कमलापति के सौंदर्य से भी थी। कहा जाता है कि आलम शाह रानी कमलापति की खूबसूरती पर मोहित था। उसने रानी से अपने प्यार का इजहार भी किया था, लेकिन रानी ने उसे ठुकरा दिया था।

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रानी को पाने के लिए निजाम शाह की हत्या कर दी गई
जैसे ही कमलापति ने आलम शाह के प्यार को ठुकराया उसकी नफरत अपने चाचा निजाम शाह के खिलाफ और ज्यादा बढ़ गई। आलम शाह ने चाचा को मारने के लिए षंडयंत्र रचा और उसके खाने में जहर मिलाकर उनकी हत्या कर दी। रानी कमलपति आलम शाह के इरादों को भांप गई और खुद को इन षडयंत्रों से बचाने के लिए वह अपने बेटे नवल शाह को गिन्नौरगढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल लेकर आ गईं। वह आलम शाह से अपने पति की मौत का बदला लेना चाहती थी लेकिन उसके पास न तो पास न तो फौज थी और न ही पैसे।

दोस्त मोहम्मद खान ने की रानी की मदद
इसी बीच कमलापति की मुलाकात दोस्त मोहम्मद खान से हुई। इतिहासकारों की मानें तो दोस्त मोहम्मद खान पहले मुगल सेना का हिस्सा था, लेकिन लूटी हुई संपत्तियों के हिसाब में गड़बड़ी के बाद उसे निकाल दिया गया था। इसके बाद उसने भोपाल के नजदीक जगदीशपुर पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। दोस्त मोहम्मद ने रानी की मदद करने की हामी भर दी लेकिन बदले में रानी से एक लाख रुपये मांगे। रानी ने दोस्त मोहम्मद की बात मान ली।

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दोस्त मोहम्मद ने आलम शाह को मार गिराया
वादे के मुताबिक दोस्त मोहम्मद ने बाड़ी के राजा आलम शाह पर हमला कर उसकी हत्या कर दी। इस काम से रानी खुश हो गईं, लेकिन उसके पास एक लाख रुपए नहीं थे इसलिए उसने बदले में दोस्त मोहम्मद को भोपाल का एक हिस्सा दे दिया। लेकिन दोस्त मोहम्मद इस टुकड़े से खुश नहीं हुआ वह रानी पर बुरी नियत रखने लगा। वक्त के साथ रानी कमलापति का बेटा नवल शाह बड़ा हो चुका था। अपनी मां के आबरू बचाने के लिए नवल शाह आगे आया। बताया जा रहा है कि नवल शाह को रास्ते से हटाने के लिए दोस्त मोहम्मद ने नवल शाह से लाल घाटी में युद्ध किया। इसमें दोस्त मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। बताया जाता है कि इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहां की जमीन लाल हो गई और इस कारण इसे लालघाटी कहा जाने लगा। इस युद्ध में 2 लड़के बच गए थे जो किसी तरह अपनी जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां काला धुआं कर रानी कमलापति को संकेत दिया कि वे युद्ध हार गए हैं और आपकी जान को खतरा है।

अपनी आबरू बचाने के लिए रानी ने ली जलसमाधि
रानी कमलापति समझ गई कि अब उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिसे छोटे तालाब के रूप में जाना जाता है। रानी कमलापति ने महल का सारा धन, दौलत, जेवरात, आभूषण आदि इसमें डालकर स्वयं जलसमाधि ले ली। दोस्त मोहम्मद खान ने महल की ओर रूख किया लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था दोस्त मोहम्मद को न तो धन मिला और न ही रानी कमलापति। इससे एक बात तो साबित हो गई कि रानी ने जीते जी अपनी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा की और जलसमाधि लेकर सदा सदा के लिए इतिहास में अपना अमिट स्थान बनाया। 


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Content Writer

meena

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