कैद में भगवान श्री राम, माता जानकी एवं लक्ष्मण! 100 साल से कर रहे किसी हनुमान का इंतजार

10/15/2021 5:02:33 PM

जबलपुर(विवेक तिवारी): देशभर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम चंद्र  का अलग ही स्थान है, जिनका इतिहास लगभग हर धर्म के लोग भली भांति जानते है। यहीं वजह है कि अयोध्या में 2000 करोड़ से भी अधिक रुपयों की लागत से श्रीराम मंदिर का निर्माण जोर शोर से चल रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक ऐसी भी जगह है जहां कई वर्षों से श्रीराम, माता जानकी और लक्ष्मण जी आज भी कैद में बंद हैं, जो इस कलयुग में अपनी रिहाई के लिए वर्षों से हनुमान का इंतजार कर रहे हैं, जो उन्हें कैद से मुक्त कराए। वो जगह है जबलपुर के पनागर में जहां पंजाब केसरी ने 1 साल तक रिपोर्टिंग की और जगह को ढूंढ़ निकाला।

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विलक्षण अष्ठधातु से निर्मित श्रीराम दरबार का इतिहास 
जबलपुर जिले के पनागर क्षेत्र में मुख्य मार्ग पर कमानिया गेट से चंद दूरी पर सैंकड़ों वर्ष पुरानी वाबली निर्मित है, जो खुद अपना इतिहास बताती है, इसी मंदिर के बाजू से देवीदास बरसैयां जी की लगभग 40 हाथ सामने और 60 हाथ गहराई जो आज लगभग 60"×80" वर्गफुट भूमि होती है, इस भूमि पर बरसैयां जी ने साल  1904 उक्त भूमि को नायक परिवार से रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से खरीद कर उक्त स्थल पर श्रीराम माता जानकी ओर लक्ष्मण जी के भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, जो कई वर्षों तक श्रीराम जानकी दरबार के नाम से प्रसिद्ध हो चुका था, बरसैयां जी ने मंदिर के पास ही लगभग 20"×20" वर्ग फुट का चबूतरा भी बनवाया था, जिस पर रामलीला, सहित अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते रहते थे, मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण इस दरबार में नगर सहित दूर दराज के लोगों का पूजा अर्चना करने श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता था।

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एक समय उक्त श्रीराम दरबार अपने आप मे श्रीराम भक्तों के लिए एक श्रद्धा का केंद्र बन चुका था, जिसकी ख्याति नगर सहित दूर दूर तक फैल चुकी थी। यहां दूर दराज से श्रद्धालु इस मंदिर में विराजी अष्ठधातु की विलक्षण श्रीराम, माता जानकी एवं लक्ष्मण जी के दर्शनों का पुण्यलाभ लेने आते थे, उस समय मंदिर परिसर में पर्याप्त जगह थी, उक्त विलक्षण प्रतिमा सोने जैसी चमकती हैं, जो नगर का गौरव कहलाये जाने लगी थी। इसी मंदिर के बाजू से बनी सैंकड़ों वर्ष पुरानी विहंगम वाबली से इस मंदिर स्थल का स्वरूप अत्यंत मनमोहक, सुंदर और रमणीय दिखाई देता था, जिससे यह मंदिर स्थल श्रीराम दरबार के नाम से पनागर नगर की शान कहलाया जाने लगा था। 

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उक्त भूमि/मंदिर के मूल मालिक देवीदास बरसैयां जी की एक मात्र संतान उनकी पुत्री ही थी, जिसका विवाह जबलपुर में जानेमाने सुहाने परिवार में हुआ, समय बीतते बरसैयां जी की पत्नी के देहांत होने के बाद सन 1940 के आसपास में बरसैयां जी की बेटी ने अपने पिता देवीदास बरसैयां को उनके स्वास्थ्य और देखभाल के लिए अपने यहां जबलपुर बुला लिया। उनके पनागर से जाने के उपरांत नगर के स्थानीय लोगों ने सन 1967 - 68 में बरसैयां जी से उनकी अनुपस्थिति में उक्त मंदिर की देखरेख और पूजा अर्चना के लिये एक समिति बनाकर उक्त मंदिर की देखरेख का दायित्व सौंपें जाने का निवेदन किया, जिससे श्रीराम जानकी मंदिर की देखरेख होती रहे और सभी श्रद्धालुओं को श्रीराम जानकी जी के दर्शनों का लाभ भी मिलता रहे। क्षेत्रीय लोगों की मांग और उनकी भक्तिभाव को देखकर  देवीदास बरसैयां ने लगभग 11 लोगों की समिति बनाकर उस मंदिर को समिति के हवाले सौंप दिया, जिसमें पनागर के उस समय के जानेमाने मशहूर कालू राम मिश्र को उक्त समिति का अध्यक्ष बनाया गया, उनकी अध्यक्षता में कुछ वर्षों तक मंदिर में लगातार कार्यक्रम और पूजा अर्चना होती रही।

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लेकिन सन 1972 में समिति के अध्यक्ष ने उक्त भूमि की फर्जी वसीयत बनाकर उक्त भूमि का लगभग आधा हिस्सा बेच दिया, और मंदिर स्थल पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था,  जिसका स्थानीय नगर वासियों ने पुरजोर विरोध भी किया था। स्थानीय लोगों ने उस समय सन 1975 में कोर्ट में आपत्ति भी लगाई। कोर्ट ने बरसैयां जी के मूल दस्तावेजों के आधार पर जनहित आधार में स्थगन आदेश भी जारी कर दिया था। तब से आज तक मामला कोर्ट में विचाराधीन है, कोर्ट में  मामले में दिए गए फैसले के अनुसार अतिक्रमणकारी की वसीयत शून्य घोषित कर दी थी, इसके बाद अपना स्वामित्व हक प्राप्त करने देवीदास बरसैयां की पुत्री के वरसान पंचम लाल सुहाने और उनकी मृत्यु उपरांत उनके पुत्र हरिशंकर सुहाने जी ने पुनः समस्त विभागों में मंदिर को कब्जा मुक्त कराने आवेदन दिए। 

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अनुविभागीय अधिकारी ने विवादित स्थल का स्वामित्व हक सौंपा
नगर पालिका को सन् 2005 में अनुविभागीय अधिकारी ने उक्त मंदिर को नगर पालिका की देखरेख और पूजा अर्चना के लिए  सौंपा था, तत्कालीन तहसीलदार जबलपुर द्वारा सन 2006 में दिए आदेश उपरांत उक्त मंदिर पर किये गए बेजा कब्जे को हटाने के लिए आदेशित किये जाने के उपरांत थाना प्रभारी और अधिकारियों ने मंदिर को अतिक्रमणमुक्त कर नगर पालिका को कोर्ट के अंतिम फैसले तक मंदिर में पुजारी नियुक्त कर देखरेख का प्रभार सौंप दिया था, लेकिन नगर पालिका में बैठे कर्मचारियों और अधिकारियों की अनदेखी और लापरवाही के चलते उक्त मंदिर पर पुनः अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो गया, जिसकी वजह से आज मंदिर स्थल का आलम यह है कि मंदिर की भूमि पर आज प्रवेश का रास्ता भी नहीं बचा है।

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अतिक्रमणकारियों ने मंदिर का अस्तित्व समाप्त कर दिया। हमारे सहयोगी पत्रकार प्रकाश प्यासी ने यहां के हालातों का जायजा लिया तो पाया कि आज भगवान श्रीराम माता जानकी को मंदिर स्थल से हटाकर एक कमरे में छोटा सा चबूतरा बनाकर उनकी स्थापना कर दी, आसपास के लोगों ने भी मंदिर स्थल की भूमि पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया और धीरे धीरे श्रीराम जानकी मंदिर का अस्तित्व समाप्त करते हुए सामने से आने जाने वाले रास्ते में अपनी दुकान का निर्माण करा लिया। वर्तमान में उक्त मंदिर में पूजार्चना के लिए अब सिर्फ एक दर्शनार्थी को ही सप्ताह में सिर्फ दो दिन मंगलवार और शनिवार को अंदर पंडिर परिसर में जाने की अनुमति दी जाती है, जो मंदिर में श्रीराम, माता जानकी जी की कई वर्षों से लगातार पूजाअर्चना करते आ रहे हैं। अब देखना यह है कि इस कलयुग में पुनः कोई हनुमान आये और सालों से कैद श्रीराम जानकी जी को अतिक्रमण कारियों की कैद से आज़ाद कराकर नगर में रामदरबार की पुनः स्थापना करा सके।


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Content Writer

meena

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