डरा देगा यह खौफनाक सच! रात के अंधेरे में बिना किट पहने अस्पताल से बोरों में बाहर फैंके जा रहे शव

4/16/2021 2:40:00 PM

इंदौर(सचिन बहरानी): मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में कोरोना से बेहद नाजुक हालात है आलम यह है कि श्मशान घाटों पर जगह कम पड़ने लगी है। अब तो कोरोना मरीजों के शवों की अनदेखी की जाने लगी है और इधर उधर खुर्द-पुर्द किए जा रहे हैं। इंदौर से इंसानियत को तार तार करने वाली ऐसी ही जानकारी निकलकर सामने आई है जिसमें कोरोना मरीजों के शवों कों फैंका जा रहा है। बताया जा रहा है कि रात 1.30 पोस्टमॉर्टम रूम से शव बाहर लेकर जाने वालों को सिर्फ 100 रुपए मेहनताना देकर काम करवाया जा रहा है। एम्बुलेंस ड्राइवर के पास ना किट, ना ही मास्क और वे जान हथेली पर रख कर ये काम करते हैं।



जमीनी हकीकत बयां करता है स्टिंग ऑपरेशन...
रात 1.30 बजे सन्नाटे के बीच मैं एमवाय पोस्टमॉर्टम रूम पहुंचे, जहां कोविड के शव रखने की व्यवस्था है। एंबुलेंस में दो शव थे। ड्राइवर सूरज औऱ रेहान शव निकाल रहे थे। दोनों ने ना तो किट पहनी थी और ना ही उन्हें मास्क दिया गया था। यह देख मैं भीं हर कोई सहर जाए कि बगेर किट के कैसे काम कर रहे हो एक तरफ परिवार वालों को हाथ तक नहीं लगाने देते परिवार को पता बस इतना चलता है कि आपके परिजन का शव इस एम्बुलेंस में है ,पूछने पर बोले मालिक अफसर खान लोगों को दिखाने के लिए सुबह एक किट देता है।



एक किट को पहन दिनभर घूमते हैं। उसी किट के नाम पर वसूली होती है। एक शव महिला का बहुत भारी था, जो दोनों से उठ नहीं रहा था। बड़ी मुश्किल से दोनों से शव उठाकर बोरे जैसा फैंका। फिर स्ट्रेचर पर रख अंदर पटक दिया। सबकुछ ऐसा जैसे बोरों को फैंका जाता है। इधर, बाहर आकर देखा तो दो एंबुलेंस में चार घंटे तक शव लावारिसों की तरह पड़े हुए थे। इससे बुरा नजारा और क्या हो सकता है। जहां ड्राइवरों को भी मरने के लिए छोड़ दिया गया हो।



दोनों ने अपनी दोनों एंबुलेंसों से शव उतारे तब तक उन्हें फोन आ गया। वे दोनों तत्काल एंबुलेंस लेकर एमटीएच दौड़े। वहां फिर चार शव लेकर निकले। इस बीच रास्ते मे रविन्द्र नाट्य गृह के पास एम्बुलेंस वालों को रोक लिया गया। कई सवालों के जवाब दिए, तभी उनके मालिक का फोन आया। उसे पता चला कि कोई इंटरव्यू ले रहा तो बोला तत्काल भागो। मुसीबत में फंस जाओगे औऱ वे भाग निकले।



स्टिंगः ड्राइवर बोला तनख्वाह नहीं मिलती साहब, हर लाश का 100 रुपए

रिपोर्टरः- क्या नाम है आपका

ड्राइवरः- मेरा नाम सूरज हैं। मैं रेडियो कॉलोनी में रहता हूं।

रिपोर्टरः क्या करते हो

ड्राइवरः- मैं पहले एक मजिस्ट्रेट की गाड़ी चलाता था, अब अफसर भाई की एंबुलेसेंस।

रिपोर्टरः- अभी कौन से शव हैं आपकी गाड़ी में

ड्राइवरः- अभी मेरी गाडी में एमटीएच से दो महिलाओं की बाडी रखी है।

रिपोर्टरः- एक ले जाना चाहिए, दो क्यों ले जा रहे। मानवता नहीं है क्या।

ड्राइवरः- कौन देखने बैठा। अभी तो सिर्फ फैंकना है। मर ही इतने रहे हैं।

रिपोर्टरः- कोरोना की कितनी लाश रोजाना ले जा रहे हो।

ड्राइवरः- गिनती ही नहीं है,साहब, वैसे 15-20 से ज्यादा तो मैं ही ले जाता हूं।

रिपोर्टरः- कितनी तनख्वाह है तुम्हारी

ड्राइवरः-मेरी कोई तनख्वाह नहीं है। एक लाश के 50 मिलते हैं और कोरोना की लाश फेंकने के 100 रुपए।

रिपोर्टरः-आपने किट नहीं पहनी और ना मास्क

ड्राइवरः- साहब आदत हो गई। मजबूरी में करे क्या। सुबह मिल जाती है। उसी एक को पहनकर दिनभर घूमते हैं

रिपोर्टरः- कितने लोग जाते हो लाश छोड़ने

ड्राइवरः- हम दो लोग जाते हैं। हमें 200 रुपए मिलते हैं, लेकिन हमारे नाम पर मालिक 2000 हजार हमारे लिए वसूलता है।

लाशों के रजिस्टर पर कब्जा, इसलिए कोई औऱ नहीं ले जा सकता

रात से लेकर सुबह तक के स्टिंग में एक बात साफ दिखी कि एमवॉय और सुपर स्पेशलिटी में जब भी किसी की मौत हो, तो शव सिर्फ अफसर लाला की गैंग की एंबुलेंस ही ले जाती है। दोनों अस्पतालों से पहले सूचना एंबुलेंस वाले को दी जाती है, क्योंकि बताया जा रहा है कि एमवायएच अधीक्षक ने इनकी पक्की बात करवा रखी है। रात में जितने भी शव फ्रीजर में रखते हैं उसकी एंट्री सीएमएचओ के रजिस्टर में होती है। सुबह 5 बजते ही एंबुलेंस वाले रजिस्टर अपने कब्जे में कर लेते। फिर हर परिवार को फोन लगाते। एक आदमी निगमकर्मी बनकर बैठा रहता। उसके दो सौ अलग। रजिस्टर कब्जे में होने के कारण कोई और एंबुलेंस वाला सस्ते में भी शव नहीं ले जा सकता है।

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This news is Content Writer meena