कमलनाथ सरकार की एकमात्र उम्मीद-भाजपा की बगावत

3/20/2020 11:53:11 AM

भोपाल: मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पूर्व नेता सिंधिया समर्थक 22 विधायकों और मंत्रियों की बगावत के बाद अल्पमत में आई कमलनाथ सरकार की आज अग्निपरीक्षा है। इस संकट की घड़ी में कमलनाथ सरकार की डूबते नैया को एकमात्र सहारा बन सकती है भाजपा नेताओं की बगावत। जी हां सरकार के बचने का अब एक ही तरीका है कि भाजपा में टूट - फूट हो। इसके बिना सरकार नहीं बच सकती। वहीं सियासी गलियारों से खबर है कि कांग्रेस के प्रबंधक इस पर काम शुरू कर चुके हैं। भाजपा में बगावत को हवा दी जा रही है। कमलनाथ के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें समर्थन दे रहे सपा, बसपा और निर्दलीय कुल सात विधायकों ने अब तक उनका साथ नहीं छोड़ा। करो या मरो की ऐसी स्थिति में जोड़तोड़ की हर चाल चलाई जा रही है। कमलनाथ ससरकार को कैसे बचाया जाए, इसके लिए कितने विधायकों की जरूरत होगी और उनकी व्यवस्था कैसे की जाए। इसी घटनाक्रम में कमलनाथ ने शुक्रवार को दोपहर 12 बजे मुख्यमंत्री निवास में प्रेस कांफ्रेस बुलाई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि बहुमत जुटा न पाने की स्थिति में वे अपने इस्तीफे का ऐलान भी कर सकते हैं।

कर्नाटक की राह पर मध्य प्रदेश की राजनीति
कहते हैं न खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है ठीक वैसे ही मध्य प्रदेश में हुआ। बेंगलुरु बैठे 22 बागियों का हौसला कर्नाटक मामले ने बढ़ा रखा है। वहां भी कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा देकर सरकार को अल्पमत में ला दिया था। स्पीकर ने उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं किए थे और पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने के आरोप में अयोग्य ठहरा दिया था। बाद में ये सभी सुप्रीम कोर्ट गए और उन्हें उप चुनाव लड़ने की अनुमति मिल गई। इसीलिए बेंगलुरु में डेरा डाले कांग्रेस के बागियों को भरोसा था, स्पीकर ने उनके इस्तीफे स्वीकार न कर अयोग्य भी ठहरा दिया तब भी उन्हें उप चुनाव लड़ने की अनुमति मिल जाएगी। इस्तीफे स्वीकार होने के बाद यह संकट भी ख़तम हो गया। अब वे आराम से उप चुनाव लड़ सकेंगे। कर्नाटक के उदाहरण के कारण ही बागी न स्पीकर से मिलने को तैयार थे, न कांग्रेस के किसी नेता से मिल रहे थे और न ही अयोग्य होने को लेकर उनमें कोई डर था। कमलनाथ सरकार के संकट की मूल वजह ही यह है।



भाजपा के ‘नारायण’ जैसे विधायकों की कमलनाथ को है जरुरत
एक बात तो साफ है कि फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करना कांग्रेस के लिए नामुमकिन सा लग रहा है। कांग्रेस के दिग्गी ने भी यह कबूल कर लिया है। ऐसे हालात में कमलनाथ सरकार का बचना भाजपा में बगावत पर निर्भर है। एक बार विधानसभा में भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी एवं शरद कौल पाला बदल कर कांग्रेस के खेमे में खड़े हो गए थे। लंबे समय तक दोनों कमलनाथ के साथ होने की बात कहते रहे हैं। नारायण त्रिपाठी अपने पुराने रुख पर अब भी कायम हैं। सरकार ने मैहर को जिला बनाकर उनकी मांग पूरी कर दी है जबकि शरद कौल वापस भाजपा में लौट गए हैं। कांग्रेस की नजर नारायण त्रिपाठी सहित भाजपा के 5 - 6 विधायकों पर है। नारायण लगातार कह रहे हैं कि कमलनाथ सरकार को कोई खतरा नहीं है।




ऐसे में भाजपा के कम से कम 5 विधायक या तो पार्टी के खिलाफ कांग्रेस के पक्ष में वोट करें या 9 विधायक मतदान में हिस्सा न लें, तब ही कांग्रेस सरकार फ्लोर टेस्ट पास कर सकती है। लेकिन यह सब उतना ही मुश्किल है जितना कहने में आसान है। प्रबंधन में कांग्रेस से काफी आगे है भाजपा कमलनाथ सरकार के फ्लोर टेस्ट पास करने की जितनी संभावनाएं हैं, उनका सिर चढ़ना मुश्किल है। इसकी वजह है, कांग्रेस और भाजपा के प्रबंधन में फर्क। इसमें कांग्रेस की तुलना में भाजपा बहुत आगे है। कांग्रेस के बागी कर्नाटक में भाजपा सरकार के संरक्षण में हैं। उनके साथ प्रदेश भाजपा के नेता व विधायक भी हैं। वहीं नारायण त्रिपाठी को छोड़कर भाजपा के सभी विधायक एक साथ सीहोर के एक रिसॉर्ट में हैं। जिनकी निगरानी पार्टी के बड़े नेता कर रहे हैं। इसकी वजह से कांग्रेस नेताओं का कांग्रेस के बागी एवं भाजपा विधायकों से संपर्क नहीं हो सका। अब जब लगभग तय हो गया है कि कांग्रेस सरकार जाने वाली है, ऐसे में भाजपा विधायकों को तोड़ना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर है। लिहाजा, अधिकांश विश्लेषक कमलनाथ सरकार को सत्ता से बाहर होता मान रहे हैं।

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