ये रिश्ता क्या कहलाता है? अपनों ने ठुकराया तो रोजेदार मुस्लिमों ने दिया अर्थी को कंधा

Wednesday, Apr 28, 2021-07:30 PM (IST)

झाबुआ(जावेद खान): कोरोना महामारी ना केवल इंसानों के शरीर को संक्रमित कर रहा है बल्कि यह आपसी रिश्तों में भी डर का जहर फैला रहा है। इस वायरस के डर से प्रिय, खास, पड़ोसी, नजदीकी रिश्ते भी टूट रहे हैं। इसका एक उदाहरण मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के थांदला शहर में देखने को मिला जहां एक पिता का कोरोना से निधन हो जाने के बाद उनकी 2 बेटियों ने मुखाग्नि दी तो वही रोजेदार मुसलमानों ने एकता व भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए कोरोना पॉजिटिव 82 वर्षीय बुजुर्ग को कंधा देखकर अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम तक पहुंचाया।

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थांदला शहर के अस्पताल चौराहा से आई तस्वीरो में कोरोना वायरस के भय कि वजह से समाज पड़ोसी रिश्तों के धागे कमजोर होते हुए दिख रहे हैं। आलम यह है कि क्या आम क्या खास क्या रिस्तेदार। थांदला निवासी 82 वर्षीय कालु लालचंद बोथरा जिनका गुजरात के गोधरा के निजी अस्पताल में पिछले 14 दिन कोरोना का इलाज के दौरान मृत्यु हो गई।

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संक्रमण के भय से दो बेटियों के अलावा  उनका अंतिम संस्कार तक करने को कोई तैयार नहीं हैं। ऐसे में मृत पिता की पुत्री अभिभाषक कविता बोथरा ने मेघनगर के युवा मुसलमानों से अंतिम संस्कार में सहयोग की गुहार लगाई। तभी मेघनगर से अभिभाषक मोहम्मद निसार शेरानी, हाजी सिद्दीक बिल्ला, फारुख भाई, याकूब भाई मौलाना ताहिर हाफिज इमरान ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए निजी खर्च से एक लोडिंग वाहन को लेकर मृतक परिवार के घर पहुंचे।
 

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जहां उन्होंने इस्लाम का फर्ज अदा करते हुए रोजादार होते हुए भी मृतक की डेड बॉडी को मेघनगर से थांदला स्वयं के खर्च से लाए हुए वाहन में कोरोना संक्रमित डेड बॉडी को वाहन में रखा व अंतिम संस्कार के लिए पांचों मुसलमान भाइयों ने कंधा देते हुए अनेकता में एकता का संदेश दिया। थांदला मुक्तिधाम कविता व त्रप्ति दोनो बेटीयो ने पिता को मुखाग्नि दे कर अंतिम संस्कार किया।

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meena

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