अमरकंटक में साल बोरर का कहर, हजारों साल वृक्ष सूखे, पर्यावरणीय संतुलन पर गहरा संकट, अमरकंटक की हरित ढाल है साल पेड़
Wednesday, Nov 05, 2025-04:30 PM (IST)
अनूपपुर (प्रकाश तिवारी) :अमरकंटक में माँ नर्मदा की पवित्र उद्गम स्थली अमरकंटक में साल वनों पर मंडराया खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। साल बोरर नाम के कीट संक्रमण ने पूरे क्षेत्र में हजारों साल के वृक्षों को सुखाकर गिरा दिया है। विशेषज्ञ इसे एक गंभीर पर्यावरणीय संकट मानते हुए तत्काल नियंत्रण की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।
क्या है साल बोरर रोग?

वन विभाग सूत्रों के अनुसार, साल बोरर एक घातक लकड़ी भेदक कीट है जो साल वृक्षों के तनों में सुरंग बनाकर अंडे देता है। कीट वृक्ष की भीतरी परत को नष्ट कर उसे अंदर से खोखला बना देता है। कुछ ही सप्ताह में संक्रमित पेड़ सूखकर गिरने लगता है और संक्रमण तेजी से आसपास के पेड़ों में फैलता है।
साल वृक्ष है अमरकंटक की हरित ढाल
अमरकंटक क्षेत्र में साल वृक्षों की संख्या लाखों में है। ये वृक्ष क्षेत्र की नमी, शीतलता और मिट्टी की रक्षा के साथ वर्षाजल को धरातल में समाहित कर भूजल बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि साल वनों की हरियाली ही नर्मदा, सोन और जोहिला जैसे नदी उद्गम क्षेत्रों की जलधारा को संजीवनी देती है।
अतीत का अनुभव, फिर लौटता खतरा
करीब दो दशक पूर्व भी अमरकंटक क्षेत्र में इसी रोग का भीषण प्रकोप सामने आया था। तब वन विभाग को लाखों संक्रमित पेड़ों की कटाई करनी पड़ी थी, जिसके बाद कई इलाकों में जलस्रोत सूखने लगे और नमी में भारी गिरावट दर्ज हुई। अब वही हालात दोहराने लगे हैं।
इसको लेकर संत समाज की चिंतित

शांति कुटी आश्रम प्रमुख एवं संत मंडल अमरकंटक अध्यक्ष रामभूषण दास महाराज ने हाल ही में कपिलधारा मार्ग, कबीर चबूतरा, खुरखुरी और मैकल पर्वत श्रंखला के कई हिस्सों का निरीक्षण कर स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
स्वामी जी ने कहा कि यह केवल वन रोग नहीं, अमरकंटक के भविष्य का गंभीर प्रश्न है। समय रहते रोकथाम नहीं हुई तो ‘हरित तीर्थ’ सूखे क्षेत्र में बदल सकता है।” उन्होंने कहा है कि वे इस संबंध में कलेक्टर हर्षल पंचोली और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं। वहीं इसको लेकर स्थानीय नागरिकों ने भी जिला प्रशासन से व्यापक अभियान चलाने की मांग की है।
अमरकंटक केवल एक तीर्थस्थान नहीं, बल्कि भारत की जल एवं पर्यावरणीय धरोहर है। साल वृक्ष यहाँ की नमी, हरियाली, और जलस्रोतों की जीवनरेखा हैं। समय रहते रोकथाम नहीं हुई तो इसका दुष्प्रभाव पूरे मध्य भारत के पारिस्थितिक संतुलन पर पड़ेगा।

