सिंधिया का बीजेपी में पहला बर्थडे, जब...एक इशारे पर 19 विधायकों ने दिया था इस्तीफा

1/1/2021 4:19:11 PM

ग्वालियर: राज्यसभा सासंद व मध्य प्रदेश के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के जन्मदिन पर बीजेपी नेताओं ने बधाई दी। 50 के हुए सिंधिया को सीएम शिवराज सिंह चौहान, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला , केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन समेत कई भाजपा नेताओं ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। अपने जन्मदिन के अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में हैं।

जन्म व शिक्षा...
ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को बॉम्बे वर्तमान में मुम्बई स्थित कुर्मि मराठा परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता पूर्व शासक माधवराव सिंधिया और माधवी राजे सिंधिया थे, जो एक मराठा की राजा रियासत थी। उन्होंने अपनी पढ़ाई शहर के कैंपियन स्कूल और दून स्कूल देहरादून से की। 1993 में उन्होंने हार्वर्ड कॉलेज, हावार्ड विश्वविद्यालय के स्नातक, उदार कला कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए की डिग्री के साथ स्नातक और 2001 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की। 



विवाहिक जीवन...
ज्योतिरादित्य का विवाह मराठा रियासत के ही बड़ौदा के गायकवाड़ परिवार की प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया से हुआ। सिंधिया के पुत्र का नाम महाआर्यमान सिंधिया है और कभी कभी राजनीतिक पोस्टर्ज में उनका चेहरा दिखता है वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया की बेटी अनन्या राजे सिंधिया लाइमलाइट से दूर रहती हैं। उनकी दादी विजयराजे सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से थीं, उनकी बुआ वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भी राजनीति में सक्रीय हैं।



राजनीतिक सफर...
30 सितम्बर 2001 को सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का एक हवाई जहाज हादसे में निधन हो गया। इसके बाद 18 दिसम्बर को ज्योतिरादित्य राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड गये और उन्होंने अपने पिता की सीट गुना  से पहला चुनाव लड़ा और बड़ी जीत के साथ वे सांसद बने।



इसके बाद मई 2004 में फिर से चुना गया, और 2007 में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया। उन्हें 2009 में लगातार तीसरी बार फिर से चुना गया और इस बार उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया। 2014 में सिंधिया ने गुना सीट से फिर से जीत का परचम लहराया सासंद बने। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें केपी यादव से हार का सामना करना पड़ा।



इसके बाद धीरे धीरे वे कमलनाथ सरकार के राज में राजनीति से गायब रहने लगे और 10 मार्च 2020 में कांग्रेस पर वादाखिलाफी और उपेक्षा का आरोप लगाकर बीजेपी ज्वाइन की। कमलनाथ को मध्य प्रदेश की सत्ता से आउट करने और शिवराज सिंह को सीएम में इनका बड़ा योगदान रहा। इन्होंने 22 विधायकों जिनमें मंत्री भी शामिल थे के साथ इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार गिरा दी थी और बीजेपी को वापस सत्ता में पहुंचाया।

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