पति की मौत के बाद इस महिला ने जो किया वो अजूबा तो नहीं लेकिन लाखों के लिए उदाहरण जरुर है...

3/8/2021 12:47:17 PM

देवास(एहतेशाम कुरैशी): आज पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है। महिलाओं के साहस और पराक्रम की यूं तो कई खबरे आपने पढ़ी और सुनी होगी, लेकिन हम आज आपको एक ऐसी किसान महिला से रूबरू करायेगे जिसने अपने पति के निधन के बाद विपरीत परिस्थितियों में ना सिर्फ अपने बच्चों का पालन पोषण किया, बल्कि खेती को अपना रोज़गार बनाते हुए जैविक व मॉडल खेती करते हुए ऐसी उपलब्धियां हासिल की, कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सहित कई लोगों ने इस महिला को सम्मानित किया । 

देवास के जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर स्थित छोटी चुरलाय गांव में मानकुंवर बाई उन हजारों लाखों महिलाओं के लिए उदाहरण है जो पति की मौत को अपनी जीवन का अंत मानने लगती हैं। मानकुंवर बाई के दो बेटे धर्मेन्द्र और अर्जुन ही उसकी जिंदगी का सहारा है। हंसती मुस्कुराती मानकुंवर को देखकर लगता है कि वह बहुत खुश है लेकिन जो भी उसके संघर्ष की कहानी सुनता है,तो आंखें नम करे बगैर रह नहीं सकता। 



करीब 25 साल पहले मानकुंवर बाई के पति भारत सिंह राजपूत का निधन हो गया था। पति करीब 7 बीघा जमीन छोड़कर गए थे, लेकिन सवाल यह था,कि खेती करेगा कौन....अकेली महिला और ऊपर से 2 छोटे छोटे बेटो की परवरिश भी करना थी।



लेकिन कहते है ना कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। बस ऐसे ही मानकुंवर बाई ने जो किया वो कोई अजूबा तो नहीं था, लेकिन अजूबे से कम भी नहीं था। मानकुंवर बाई ने हल उठाया और शुरू कर दी खेती। बेतहाशा मेहनत करके ना सिर्फ आधुनिक तरीके से अलग अलग अनाज के बीज बोये बल्कि जैविक और मॉडल तरीके से खेती करके इतनी उपलब्धियां हासिल की,कि देवास जिले में ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में मानकुंवर बाई का सम्मान हुआ । 



अपने संघर्ष की कहानी बयां करते करते भावुक हुई मानकुंवर बाई ने अपने आंखो के आंसू पोछते हुए कहा कि खेती करने के नए-नए तरीके मैंने सीखे और उन तरीको से खेती करके उपलब्धियां हासिल की। मानकुंवर का कहना है कि खेती तो मेरी मां है। मेरी जीवनसाथी बन गई है। खेती करते करते ही मेरी ज़िन्दगी निकलनी है

मानकुंवर बाई के बड़े बेटे धर्मेन्द्र सिंह राजपूत अपनी मां की संघर्ष की कहानी सुनाते हुए कहते है,कि मैं 6 साल का था,तब मेरे पिताजी इस दुनिया से चले गए थे। तबसे मां को खेती करते हुए देख रहा हूं। किसान एक खेती पर निर्भर रहते हैं, लेकिन मेरी माताजी ने थोड़े थोड़े रकबे में अलग-अलग फसल आलू, लहसन,प्याज, गेंहू और चना बोया...और हिम्मत नहीं हारी और खेतों में खुद मज़दूरों की तरह काम किया । 

खेती को मॉडल और मिश्रित दोनों रूप में किया
इतना ही नहीं मानकुंवर बाई को पुरस्कार के साथ मिली 50 हजार रूपये की पूरी राशि सामाजिक और धार्मिक कार्यो में खर्च कर डाली। धर्मेन्द्र राजपूत ने बताया कि ज़रूरतमंद बच्चों को स्कूल ड्रेस और माताजी टेकरी के अन्न क्षेत्र में नगद राशि देकर और रमज़ान के माह में रोज़ा इफ्तियार में...इन तमाम कार्यो में ये राशि खर्च कर डाली। बेटे धर्मेन्द्र ने यह भी बताया कि हमारी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी लेकिन आज मां की मेहनत से हमारे पास सब कुछ है और हमारी गिनती समृद्ध किसानो में होती है। 

बड़े बेटे को किसान बनाने के साथ ही छोटे बेटे अर्जनु को भी मानकुंवर बाई सम्भाल रही है। छोटे बेटे अर्जुन का दिमागी हालत ठीक नहीं है। इसलिए उसका भी मां ख़ास तौर पर ध्यान रखती है और फिर मां तो मां ही होती है। उसके दिल में कभी भी अपने बच्चों के लिए प्यार/दुलार कम नहीं होता है। 

 

 

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