सरेंडर किए नक्सलियों की पहली रात रही बैचैन, सालों से घने जंगलों में रहने वालों को आरामदायक बिस्तर पर नहीं आई नींद,बदलाव देख हैरान

Sunday, Oct 19, 2025-04:46 PM (IST)

(रायपुर): छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे नक्सलवाद पर लगातार पुलिस और जवानों का प्रहार जारी है वैसे-वैसे आए दिन नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं। नक्सली अब मुख्यधारा में लौटकर साधारण और डर रहित जीवन जीना चाहते है। इसी सिलसिले में वो प्रशासन की कई योजनाओं जैसे लोन वर्राटू जैसी पहल को अपनाते हुए सामाजिक जीवन में वापसी करना चाहते हैं।

210 पूर्व नक्सलियों ने किया था आत्मसमर्पण

इसी कड़ी में बस्तर में 210 पूर्व नक्सलियों ने शुक्रवार को आत्मसमर्पण किया था। जवानों और अधिकारियों ने गुलदस्ते देकर उनका सामाजिक जीवन में लौटने का स्वागत किया, लेकिन सालों से जंगल में गोलियों के शोर में रहने वाले नक्सलियों के लिए शांति की पहली रात बेचैन करने वाली थी।

खुले जंगलों में रहने वालों को छत और पंखे लगे अजीब

खुले जंगलों में रहने वाले नक्सलियो के छतों के नीचे, घूमते पंखे कुछ अजीब ही लगे। अचानक मिली ऐसी तनावरहित आरामदायक ज़िंदगी से वो हैरान थे। शनिवार की सुबह उनके लिए कुछ ऐसी ही अजीब थी, क्योंकि ये सुबह उनकी हर सुबह से बहुत अलग थी।

अखबार पढ़ा और टीवी देखा

जगदलपुर पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में रुके इन लोगों ने अखबार पढ़ा और टीवी देखा,वो देख रहे थे कि कैसे उनके बारे में बाहर की दुनिया में देखा और पढ़ा जाता है, कैसे उनके बारे में सोच है। वो इस नई दुनिया को देखकर बड़े ही हैरान हो रहे थे। मुख्यधारा में वापिस लौटे ये लोग हैरान हो रहे थे कि जिन्होंने कभी सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाई थी वो आज इस  तरह से स्वागत करेंगें।

उनके चेहरे कुछ और ही बता रहे थे, उनके सामने वे जवान खड़े थे जिनसे वे सालों तक लड़े थे। जिन्होंने माओवादियों के हाथों अपने परिवार खोए थे, और जिनका रातों को खौफ देखते ही बनता था,  उनको इस तरह  दिन में देखना किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा था

वहीं इस मौके पर बस्तर रेंज के आईजी पी. सुंदरराज ने कहा, कि यह एक अलग तरह का पुनर्वास है। यह किसी स्कूल के बच्चे के हॉस्टल में पहले दिन जैसा ही है। पहला कदम उन्हें सहज महसूस कराना है। सालों तक जंगल में रहने के मनोवैज्ञानिक सदमे से बाहर निकलना आसान नहीं है। जिनका जीवन रात को जागकर और दिन को घातें लगाकर निकला वो, उनके लिए तनाव रहित सामाजिक जीवन जीना और सांचे में ढलने के लिए थोड़ा समय लगेगा।


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Content Editor

Desh sharma

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