मध्य प्रदेश के इस गांव में नहीं है श्मशान घाट...राजस्थान में करना पड़ता है अपनों का अंतिम संस्कार
Wednesday, Aug 07, 2024-08:27 PM (IST)
गुना (मिस्बाह नूर) : मध्य प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है जहां श्मशान घाट न होने के कारण राजस्थान में अंतिम संस्कार करना पड़ता है। जी हां हम बात कर रहे हैं गुना जिले के बमौरी ब्लॉक के भोटीपुरा गांव की। जहां श्मशान घाट नहीं होने की वजह से लोगों को अपने दिवंगत परिजनों का अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश की सीमा के बाहर राजस्थान जाकर करना पड़ता है। राजस्थान सीमा से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित भोटीपुरा गांव का यह घटनाक्रम भले ही चौंकाने वाला नजर आता हो लेकिन स्थानीय ग्रामीण इसके आदी हो चुके हैं।
दरअसल, भोटीपुरा में कोई श्मशान घाट या मुक्तिधाम नहीं है। इसके चलते लोगों को पड़ोसी राज्य राजस्थान के बांसखेड़ा में मुर्दों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है। बांसखेड़ा गांव भोटीपुरा से करीब एक किलोमीटर दूर है, लेकिन इन दोनों गांवों को एक नदी विभाजित करती है, जिसे बारिश के दौरान पार करना बेहद मुश्किल होता है। ऐसा ही मामला मंगलवार को सामने आया जब भोटीपुरा निवासी 85 वर्षीय बुजुर्ग मूलचंद प्रजापति की मौत हो गई। उनका अंतिम संस्कार करने के लिए दर्जनों लोग नदी पार करने के लिए मशक्कत करते देखे गए। अंतिम संस्कार के लिए ढोल बुलवाए गए थे, जिन्हें बजाने वालों को भी नदी के बीचों-बीच से गुजरना पड़ा। कई लोग हाथ में लकड़ी और गोबर के उपले लेकर नदी पार करते देखे गए तो कुछ लोगों की हिम्मत जवाब दे गई और वे बीच से लौट गए।
बुजुर्ग मूलचंद के शव को 4 से 5 लोग नदी के बीचों-बीच लेकर निकले तो दूसरी ओर खड़े ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं जो मूलचंद को जानते तक नहीं थे। ग्रामीणों ने बताया कि इस बार नदी में पानी इतना था कि वे किसी तरह पार गए, लेकिन कई बार नदी ओवर फ्लो हो जाती है। ऐसे में मुर्दे को तब तक घर पर ही रखना पड़ता है, जब तक की नदी का पानी उतर न जाए। ग्रामीणों ने दावा किया है कि उन्होंने पंचायत सचिव और सरपंच को कोई आवेदन दिए हैं, लेकिन गांव में मुक्तिधाम बनवाने को लेकर कार्रवाई नहीं हो सके।
ग्रामीणों के मुताबिक पंचायत अगर गांव में ही जगह निर्धारित करती है तो उन्हें खुले आसमान के नीचे अंतिम संस्कार करने में भी कोई परेशानी नहीं है। लेकिन इस तरह मुर्दों को नदी के दूसरी तरफ ले जाना मुश्किल होने के साथ-साथ सनातन संस्कृति के विपरीत भी बताया गया है। कुल मिलाकर भोटीपुरा गांव का यह मामला न केवल पंचायत की उदासीनता को उजागर करता है बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी बेहद भयावह नजर आता है।