ये हैं सेना के विकिपीडिया, इनके पास है 41 हजार जवानों का रिकॉर्ड

8/15/2020 4:52:43 PM

रतलाम(समीर खान): देश की आजादी के लिए जान गवाने वाले कुछ एक शहीदों का नाम तो सभी जानते होंगे लेकिन बहुत से ऐसे जवान है जिन्होंने देश के लिए प्राण तो त्यागे लेकिन उनका नाम इतिहास के पन्नों में गुम होकर रह गया। लेकिन मध्य प्रदेश के रतलाम में आज भी एक शख्स ऐसा है जिनके पास हैं 41 हजार से अधिक शहीद जवानों का रिकॉर्ड मौजूद है। ये हैं सेना के विकिपीडिया, जिन्हें एक शहीद के पिता के ये शब्द प्रेरित किए कि मेरा बेटा चला गया, लेकिन देश तो सुरक्षित है, फिर क्या था ये पंक्तियां इनके मन को ऐसी लगी कि बन गए सेना के विकिपीडिया।


जी हां जिन सेना के शहीद हुए जवानों का 1914 का रिकॉर्ड ना तो गूगल पर मिल सकता है ना विकिपीडिया पर लेकिन हम आपको आज एक शख्स से मिलाने जा रहे जिनका नाम है सिक्योरिटी गार्ड जितेंद्र सिंह।  इन्हें आप सेना का विकिपीडिया भी कह सकते हैं। इनके पास 41 हजार से अधिक शहीद जवानों का रिकॉर्ड मौजूद है। वहीं 5,000 से अधिक शहीद जवानों के परिवार का इनके सीधे संपर्क में हैं। यहां तक कि ये सेना में शहीद हुए जवान के हर एक परिवार को पोस्ट कार्ड लिख चुके हैं और ये सिलसिला पिछले 20 सालों से चल रहा है।



आमतौर पर जब भी सीमा पर किसी जवान के शहीद होने की खबर आती है, तो हम गुस्से और बेबसी में हाथ मलते रह जाते हैं। लेकिन रतलाम में रहने वाले इस सिक्योरिटी गार्ड जितेंद्र सिंह गुर्जन हर शहीद के परिजनों को खत लिखता है। यह शहीद के परिवार को उसकी सच्ची श्रद्धांजिल है, जिसने अपना बेटा, भाई, पिता या पति खोया है। यहीं वजह है कि अब तक ये 4,500 से ज्यादा पोस्टकार्ड शहीदों के परिजनों को भेज चुके हैं। जितेंद्र बताते हैं कि वे पिछले 20 सालों से ऐसा कर रहे हैं और इससे शहीदों को परिजन खुश होते हैं, यह सोचकर कि आज भी उन्हें कोई याद करता है।



गुर्जर एक रजिस्टर मेंटेन करते हैं, जिसमें देश के लिए कुर्बान हो जाने वाले हर उस शहीद का डेटा रिकॉर्ड होता है। जितेंद्र बताते हैं कि वह सेना में भर्ती होना चाहते थे, लेकिन एक सेंटीमीटर की हाइट कम होने की वजह से वह सेना में नहीं जा सके। इसके बाद से उन्होंने गार्ड की नौकरी कर ली क्योंकि इस वर्दी में उन्हें सेना के जवान होने का एहसास मिलता है। उनका कहना है कि जिस परिवार ने अपने बेटे, पति और पिता को भारत के लोगों की सेवा व सुरक्षा के लिए सेना में भेजा, इस कार्य के जरिए उनका उद्देश्य शहीद के परिजनों को आभार व्यक्त करना है। उन्होंने कहा कि मुझे ये शब्द प्रेरित करते हैं- मेरा बेटा चला गया, लेकिन देश तो सुरक्षित है।



जितेंद्र ने शहीदों के परिजनों को पत्र लिखने का सिलसिला 1999 के कारगिल युद्ध के बाद से शुरू किया। उन्हें लगता है कि सेना में होना कठिन काम है और शहीदों के सम्मान करना देश का कर्तव्य है, जिन्होंने हमारे लिए अपने जीवन को त्याग दिया। ऐसे कई लोग हैं जो अपनों को खो देने के बाद से दुखों के साये में जी रहे हैं। हमें उन परिवारों के प्रति हमारे नैतिक कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। इस महान शख्सियत पर फिल्म भी बनी और अभिनेता अक्षय कुमार ने इन्हे सम्मानित भी किया।



वर्तमान में सूरत में रहने वाले जितेंद्र सिंह की यह पहल न जाने कितने शहीदों के परिजनों के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान ले आती है।  ये अबतक 5 हजार से ज्यादा पोस्टकार्ड शहीदों के परिजनों को भेज चुके हैं।  जितेंद्र ने बताया कि जब वे शहीद जवानों के परिवारवालों से मिलते हैं, तब वे 'शहीद स्मारक' बनाने के लिए उनके घरों से थोड़ी मिट्टी इकट्ठा करते हैं। उनकी माने तो  सेना में होना कठिन काम है और शहीदों के सम्मान करना देश का कर्तव्य है, जिन्होंने हमारे लिए अपने जीवन को त्याग दिया।

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This news is Edited By meena