जिसे लोग पागल कहते थे, किया ऐसा कमाल कि 18 महीने बाद उसी के लिए बजाई तालियां, जानिए बुंदेलखंड की ‘लेडी दशरथ मांझी’ की अनोखी कहानी

3/31/2023 7:45:21 PM

छतरपुर (राजेश चौरसिया): पहाड़ चीरकर रास्ता बनाने का जुनून जिसने दशरथ मांझी को अमर कर दिया, ठीक इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की 22 वर्षीय बबीता राजपूत ने भी एक मिसाल कायम की है। उसने भी अपने गांव को पानीदार बनाने के लिए सहेलियों के साथ मिलकर पहाड़ का सीना चीर कर 107 मीटर लंबी नहर बना दी। 18 महीने के इस अथक प्रयास में नारी शक्ति की मिसाल कायम करते हुए अगरौठा सहित आसपास के गांव को न सिर्फ पानीदार बना दिया बल्कि अब जल सहेली बबीता राजपूत को 29 मार्च को जल शक्ति मंत्रालय ने दिल्ली में जल प्रहरी अवार्ड से सम्मानित किया है।

छतरपुर जिले का अगरौठा गांव जो दशकों से पानी की भीषण समस्या से जूझता रहा, कुछ वर्ष पहले तक आलम यह था कि इस गांव की महिलाओं को दूर दराज से पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी, इतना ही नहीं घंटों पानी भरने के लिए लाइन में खड़ा रहना पड़ता था, गांव के अधिकांश जल स्रोत गर्मियों में जवाब दे जाते थे, जब बबीता 19 साल की थी और गांव के नल में पानी भरने की अपनी बारी का इंतजार कर रही थी, नल के पास लंबी लाइन लगी हुई थी और उसी समय परमार्थ समाज सेवी संस्थान के डॉक्टर संजय सिंह और मानवेंद्र सिंह आए और उन्होंने गांव वालों से पानी की समस्या कुछ दिनों में दूर करने की बात कही, लेकिन गांव वालों ने संस्थान के लोगों की कोई बात नहीं सुनी, बबीता ने उनकी बात को समझा और परमार्थ समाज सेवी संस्था जो पानी बचाने की तकनीकी पर काम करती है, उसके साथ जुड़कर बबीता ने प्रशिक्षण लिया।

प्रशिक्षण लेने के बाद जब बबीता वापस अपने गांव लौटी तो उसने गांव की बहुत सी महिलाओं को जल संरक्षण के बारे में समझाया, लेकिन गांव से सिर्फ 10 महिलाएं उसके साथ आईं। बबीता ने उन महिलाओं के साथ मिलकर चार चेक डैम और आउटलेट बनवाएं, जिसमें परमार्थ समाज सेवी संस्था ने भी साथ दिया। जिस वक्त बबीता अन्य महिलाओं के साथ मिलकर यह काम कर रही थी, तो गांव के बहुत से लोग उसे पागल कहते थे कुछ लोग उसके घर वालों को भी भड़काते रहते थे, लेकिन बबीता ने हार नहीं मानी जब चेक डैम बने और गांव के पास कुछ पानी रुकने लगा, तब लोगों को कुछ विश्वास हुआ।

इसके बाद वर्ष 2019 में बबीता राजपूत ने जल पंचायत बुलाई और महिलाओं से साथ मांगा, जल पंचायत में बबीता ने गांव वालों को समझाया कि अगर गांव के तालाब को भरना है तो हमें 10 से 15 मीटर ऊंचे पहाड़ को तोड़ना होगा, क्योंकि इस पहाड़ की वजह से अन्य पहाड़ियों का पानी गांव की ओर ना आकर नदी नालों की ओर बह जाता था, गांव के तालाब में पानी लाने के लिए बबीता ने पहाड़ तोड़ने का फैसला लिया, जिसमें गांव की लगभग 20 महिलाएं उसका साथ देने सामने आईं, तो वही गांव के कुछ पुरुष भी उसका साथ देने के लिए तैयार हो गए और उसके बाद जब पहाड़ खोदने का काम शुरू किया गया तो बबीता व उसके साथ जुड़ी अन्य महिलाओं के जुनून को देखते हुए, धीरे-धीरे न सिर्फ अगरौठा बल्कि पास के गांव की लगभग 3 सौ से अधिक महिलाएं बबीता के साथ जुड़ती गई कुछ पुरुषों ने भी बढ़-चढ़कर इस कार्य में महिलाओं का साथ दिया।

इसके बावजूद भी गांव के कुछ लोग बबीता और उसके साथ जुड़े लोगों को पागल कहते रहे। गांव वालों का कहना था कि कहीं पहाड़ काटने से पानी थोड़ी आ जाएगा, लेकिन बबीता और उसकी जल सहेलियों की टीम के द्वारा 18 महीने के अथक प्रयास के बाद 107 मीटर लंबी नहर पहाड़ का सीना चीर कर बना दी गई, और इसके बाद जब बारिश हुई तो तालाब में लबालब पानी भर गया, और पहली बार इतना पानी भरा देखकर गांव के सभी महिलाओं और पुरुषों ने दिए जलाए और दिवाली जैसा जश्न मनाया, अब बबीता की हर ओर तारीफ होने लगी जो लोग उसे पागल कहते थे वह शाबाशी देने लगे और उसे "जल सहेली" का नाम दिया गया, इतना ही नहीं गांव वालों के साथ मिलकर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की जमीन पर 500 पौधे भी लगाए गए, और गांव वाले उसका रखरखाव भी करते हैं।

फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में छतरपुर जिले के अगरौठा की बबीता और उसकी टीम की महिलाओं के कार्य की तारीफ की थी। अब स्थिति यह है कि गांव के तालाब में पानी की वजह से न सिर्फ सैकड़ों एकड़ फसल में सिंचाई हो पा रही है, बल्कि सिचाई के बावजूद भी तालाब में कुछ पानी बना रहता है, गांव सहित आसपास के 4 गांव के लोग पानी की वजह से खुशहाल हैं, गांव के आसपास के जल स्रोत का जलस्तर भी बढ़ गया है, बबीता अभी भी लगातार जल संरक्षण का कार्य कर रही हैं।

meena

This news is Content Writer meena