कांटों के बिस्तर पर लेटकर पूरे शरीर को करते हैं छलनी, आपके होश उड़ा देगी ये परंपरा

12/26/2020 1:48:39 PM

बैतूल: एक छोटे से कांटे की चुभन से इंसान का शरीर सिहर उठता है कल्पना करो कि यदि आपको कांटे के बिस्तर पर लेटना पड़े तो... जी हां सभी जानते हैं कि अगर शरीर में एक कांटा चुभ जाए तो वो बेहद तकलीफदेह होता है तो ये बिस्तर तो सारे शरीर को ही लहूलुहान कर देगा। लेकिन बैतूल में एक ऐसा समुदाय है जो अपनी खुशी से कांटों के बिस्तर पर लोटता है। यह उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि परंपरा है। इस परंपरा को निभाने के लिए इस समुदाय के लोग कई वर्षों से उत्सव के रुप में निभा रहे हैं। इस उत्सव को वो भोंडाई कहते हैं और यह समुदाय खुद को पांडवों का वंशज बताता है।



बैतूल जिले में रज्झड़ समाज रहता है। खुद को पांडवों का वंशज बताने वाले इस समाज के रीति-रिवाज और पंरपराएं अजब-गज़ब हैं। इस समुदाय के लोग कांटों को खुशी-खुशी गले लगाते हैं। भोंडाई के दिन कांटों का बिस्तर बिछाते हैं और फिर उस पर लेटते हैं।



दरअसल रज्झड़ समुदाय के ये लोग बैतूल के सेहरा गांव में रहते हैं। समाज के लोग खुद को पांडवों का वंशज बताते हैं और कांटों की सेज पर लेटकर वे अपनी परंपरा को निभाते हैं। इस पर्व का नाम भोंडाई है। इस आयोजन के पीछे मान्यता है कि भोंडाई पांडवों की मुंहबोली बहन थीं, उनकी विदाई के वक्त पांडवों को कांटों पर लेटकर खुद को सही साबित करना पड़ा था।



क्योंकि किसी समय पांडव इस जगह पर आए थे और प्यास लगने के बाद जब वे पानी की तलाश में एक झोपड़ी में पहुंचे तो वहां मौजूद महाल लोगों ने पांडवों के सामने उनकी बहन भोंडवी का विवाह उनसे रचाने की शर्त रख दी तभी अगहन मास में इस परंपरा को निभाया जा रहा हैं।



भोंडाई पर्व की तैयारियां कई दिन पहले ही शुरु हो जाती है। इस समुदाय के लोग कई दिन पहले से बेर के कंटीले पेड़ और डालियां इकट्ठा करने लगते हैं। वो इन्हें सुखाते हैं, फिर 5 दिनों तक चलने वाले मुख्य आयोजन वाले दिन गाजे बाजे के साथ झाड़ियों को लेकर अपने पूजन स्थल तक लाते हैं। फिर कंटीली झाड़ियों से कांटों की सेज बनाकर उस पर बारी बारी से लोटते हैं।



रज्झड़ समुदाय के लोगों की खास बात ये हैं कि उन्हें कांटों पर लेटने से कोई तकलीफ नहीं होती बल्कि वे खुद को खुशनसीब बताते हैं। उनका शरीर लहूलुहान तो हो जाता है लेकिन कुछ ही देर में वो सामान्य भी हो जाते हैं। इस आयोजन में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं। हालांकि भोंडाई पर्व को लेकर और भी कई किवंदतियां सुनने को मिलती है। 

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