ये है स्वतंत्रता सेनानियों का तीर्थ, देश की आजादी के लिए इस माटी ने कुर्बान किए थे 392 लाल(video)

8/15/2020 3:10:12 PM

बालाघाट(हरिश लिलहरे): एक बार फिर आजादी का जश्न लेकिन जरा सोचिए अंग्रेजो की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए न जाने लोग शहीद हुए और कितने ही लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में ऐसे ही आजादी के लिए हुंकार भरने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की कमी नहीं है दावा यहां तक है कि मध्यप्रदेश में सबसे अधिक सेनानियों की धरती बालाघाट की वारासिवनी है लेकिन आजादी के रण बाकुरों के स्वर्णिम इतिहास को बनाये रखने के लिए हो रही उपेक्षा से लोग आहत है। 



मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में बसी ये तहसील है वारासिवनी वो वारसिवनी जिसे आजादी के परवाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का तीर्थ कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योकि ब्रिटिश काल में जब दौर था भारत छोड़ों आंदोलन का तो वारासिवनी क्रांतिकारियों और आंदोलकारियों के लिए केंद्र बिंदू था और यहां से आजादी के लिए आंदोलन न सिर्फ उफान मारता था। बल्कि आवश्यक बैठक और अहम निर्णय भी लिये जाते थे। बताया जाता है कि बालाघाट जिले में कुल 392 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या दर्ज है जिसमें सर्वाधिक 92 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वारासिवनी में हुए। बकायदा यहां 1942 के आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोलीबारी में शहीद हुए दशाराम फुलमारी के नाम से चैक भी बनाया गया है और इस इलाके को आज भी गोलीबारी इलाके के नाम से जाना जाता है। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की ऐसी दर्जनों एतिहासिक घटनाएं जिम्मेदारों के द्वारा नजर अंदाज किये जाने के चलते उनके परिजन सहित लोग भी आहत है।


वारासिवनी में आजादी के पूर्व पाव में गोली खाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रमेशचंद जैन की 95 वर्षीय विधवा धर्म पत्नी समताबाई और उनके परिजन आज भी अंग्रेजों से लोहा लेने की उस दास्ता को बड़े ही गर्व के साथ बताते हैं जो गुलामी के दौर में रमेशचंद जैन अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर कैसे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़कर आजादी के लिए लड़ाई लड़ते थे। साथ ही ऐसे सैकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की दास्ता है जिसकी उपेक्षा का मलाल भी इस परिवार को खल रहा है।  



स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों से भरी बालाघाट और वारासिवनी की धरती बेहद गौरवशाली इतिहास को संजोए हुए है यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजन संगठन के अध्यक्ष भी बताते है कि आने वाली पीढ़ी में गौरवशाली इतिहास को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। साथ ही कुछ ऐसे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार है जिनकी माली हालत खराब है। उन्हें न्याय मिले इसके लिए भी कोशिश की जा रही है।



आजादी के पहले बालाघाट की राजधानी महाराष्ट्र का नागपुर हुआ करती थी। आजादी के बाद बालाघाट जिला मध्यप्रदेश राज्य में शामिल है। उस गुलामी के दौर में बालाघाट का वारासिवनी क्षेत्र सेनानियों और क्रांतिकारियों के लिहाज से इसलिए भी बेहद खास था क्योकि यहां वनसंपदा की भरमार थी और लोगों को छूपने और भेष बदलकर रहने के लिए के भौगोलिक व्यवस्थाएं थी। जिसका उस दौर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी के लड़ाई के लिए भरपूर फायदा भी उठाया। लेकिन बालाघाट वारासिवनी क्षेत्र में आजादी की लड़ाई को लेकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गौरवशाली इतिहास को संजोए रखने के लिए ठोस कदम उठाये जाने की दरकार बनी हुई है।    

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