दुर्ग के धमधा की सरकारी शराब दुकान बनी अराजकता का केंद्र: खेत-खलिहान से स्कूल तक नशे का कहर, प्रशासन खामोश!
Friday, Sep 19, 2025-03:36 PM (IST)

धमधा। (दुर्ग) (हेमंत पाल): छत्तीसगढ़ का धमधा, जिसे कभी धर्मधाम और तालाबों की नगरी कहा जाता था, आज वहां की पहचान शराब दुकान की वजह से धुंधली होती जा रही है। जहां एक ओर गाँव विकास और स्वच्छता के सपने देख रहा है, वहीं दूसरी ओर शासकीय शराब दुकान नशे, गंदगी और अराजकता का पर्याय बन चुकी है।
गंदगी का अड्डा बनी सरकारी शराब दुकान
धमधा की सरकारी शराब दुकान के आसपास का नज़ारा कूड़ादन से कम नहीं है। यहाँ खाली शराब की बोतलें, प्लास्टिक झिल्लियाँ, पानी के पाउच और डिस्पोजल ग्लास हर ओर बिखरे पड़े हैं।
यह इलाका सैकड़ों एकड़ की कृषि भूमि से घिरा हुआ है, जहाँ किसानों द्वारा धान की खेती की जाती है। लेकिन अब खेत में जाने से पहले किसानों को सबसे पहले शराबियों की बिखेरी गंदगी हटानी पड़ रही है।
किसानों के लिए सिरदर्द बनी शराब दुकान
शराबियों द्वारा खेतों की मेड़ों पर ही बोतलें फोड़ दी जाती हैं। प्लास्टिक झिल्लियाँ और डिस्पोजल खेतों में उड़-उड़ कर गिरते हैं। पानी के पाउच और गिलास खेतों की नालियों में जमा होकर जल निकासी को बाधित कर रहे हैं। फसलें प्रभावित हो रही हैं और मवेशी इन प्लास्टिक सामग्रियों को खाकर बीमार पड़ रहे हैं।
महिलाएं खेतों में जाने से डरती हैं
महिलाओं के लिए खेत जाना अब जोखिम भरा हो गया है। शराबियों का झुंड, अश्लील टिप्पणियाँ और रास्तों में जमे नशे में धुत लोग खेतों तक महिलाओं की पहुंच रोक रहे हैं।
स्कूल-कॉलेज के सामने चकना सेंटर
सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि शराब दुकान के ठीक सामने आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल और शासकीय आईटीआई कॉलेज हैं। दुकान के बगल में नॉनवेज चकना सेंटर खुलेआम चलता है, जहाँ शराबियों का जमावड़ा दिन में भी रहता है। नॉनवेज की गंध, गालियाँ और उन्मादी व्यवहार से विद्यार्थियों की पढ़ाई और मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है।
आहता’ है या मजाक?
सरकारी नियमों के अनुसार, शराब दुकान के पास पीने के लिए निर्धारित 'आहता' (पीने का स्थान) होना जरूरी है। लेकिन धमधा में बना आहता सिर्फ कागजों में है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, शराब दुकान का संचालक अंदर बैठने नहीं देता, बल्कि चकना देकर लोगों को जानबूझकर बाहर बैठने को मजबूर करता है।
आबकारी विभाग और पुलिस की चुप्पी
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब यह सब खुलेआम हो रहा है, तो पुलिस और आबकारी विभाग आंखें क्यों मूंदे बैठे हैं?
क्या बाहर पीने की अनुमति है?
क्या स्कूल के सामने शराबी बैठने की छूट है?
क्या खेतों में कांच फोड़ना अब अपराध नहीं रहा?
और क्या आहते को मजाक बनाना मान्य है?
इन सवालों का जवाब कोई देने को तैयार नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि ऊपर तक मिलीभगत है, तभी कोई कार्रवाई नहीं होती।
पर्यावरण भी खतरे में
धमधा के प्रसिद्ध तालाब और जल स्रोत अब शराब की झिल्लियों और डिस्पोजल ग्लास से पट रहे हैं। कचरा नालियों में जमा हो रहा है, पानी प्रदूषित हो रहा है, और बारिश के मौसम में यह सब बहकर तालाबों में पहुंच रहा है।