सिंधिया और कैलाश के बीच क्या डील हुई? क्या विजयवर्गीय को गले लगाकर इंदौर जीतने का सपना देख रहे ''महाराज''

8/24/2022 5:51:09 PM

भोपाल (नाज़नीन नक़वी): मध्यप्रदेश की राजनीति (politics of madhya pradesh) इन दिनों बेहद नाजुक मोड़ से गुजर रही है, अक्सर बाहरी तस्वीरों को देखकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है, कि इनके पीछे की कहानी क्या है? ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई इंदौर से, जिसने सूबे के सियासी जानकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया, दरअसल इस बीच इंदौर पहुंचकर सिंधिया (scindia) ने बेहद ही गर्मजोशी के साथ कैलाश विजयवर्गीय (kailash vijayvargiya) से मुलाकात की, तो खुलकर ये भी बोले, कि वो कैलाश (kailash vijayvargiya) के मार्गदर्शन में काम करने को तैयार है। बात यहीं तक नहीं रुकी, इसके बाद वायरल हुआ ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) के बेटे महाआर्यन सिंधिया (mahanaryaman scindia) का वो वीडियो जिसमें वो कैलाश विजयविजर्गीय के पैर छूते नजर आए। जानकार कह रहे हैं, कि ये पहला ऐसा मौका था, जब सिंधिया खानदान के किसी सदस्य ने सार्वजनिक तौर पर किसी शख्स के पैर छुए हों। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं, कि आखिर कभी कट्टर प्रतिद्वंदी रहे विजयवर्गीय (vijayvargiya) के सामने सिंधिया के इस बदले अंदाज में पहुंचने की वजह क्या है? 

सिंधिया की नजरें इंदौर पर!

कभी राजनीति में अकड़ और रुतबे का पर्याय रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) का विजयवर्गीय के सामने यूं झुकना किसी के गले नहीं उतर रहा। हालांकि अगर गौर करें, तो इसके पीछे सिंधिया (scindia) की एक खास मंशा जरूर सामने आ रही है। जो इंदौर को लेकर उनकी महत्वाकांक्षा के साथ जुड़ी हुई है। दरअसल सूत्रों की मानें, तो सिंधिया इंदौर लोकसभा सीट (indore loksabah seat) से संसद पहुंचने के विचार में है। क्योंकि जाहिर सी बात है, कि ग्वालियर लोकसभा सीट (gwalior lok sabha seat) पर नरेंद्र सिंह तोमर (narendra singh tomar) अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, तो वहीं गुना जाकर सिंधिया (scindia) खुद को करारी शिकस्त देने वाले मौजूदा सांसद केपी यादव (bjp mp kp yadav) का टिकट कटवाने की हिम्मत नहीं जुटा सकते और ज्योरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) इस बात को भी बखूबी जानते हैं, कि राज्यसभा (rajya sabha) के जरिए संसद में पहुंचकर वो कभी भी सर्व स्वीकार्य नेता नहीं बन सकते। ऐसे में उनका लोकसभा में पहुंचना बेहद ही जरूरी है और इसके लिए फिलहाल इंदौर सीट (indore seat) ही उन्हें सुरक्षित नजर आ रही है। यहां से वो भाजपा (bjp) के टिकट पर आसानी से चुनाव भी जीत सकते हैं साथ ही इंदौर जैसी हाईप्रोफाइल सीट (highprofile seat ) उनके रुतबे को और बढ़ाने का भी काम करेगी। 

कांग्रेस में रहते था इंदौर पर प्रभाव 

दरअसल कांग्रेस (congress) में रहते ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) का प्रभाव ग्वालियर चंबल के साथ इंदौर, मालवा पर भी था, अक्सर यहां पर कांग्रेस की संगठन जमावट से लेकर टिकट वितरण तक सिंधिया (scindia) की ही चलती थी। लेकिन भाजपा में आने के बाद सिंधिया का ये असर सिर्फ ग्वालियर-चंबल (gwalior-chambal) तक ही सिमट कर रह गया। इस बीच अपने कई शक्ति प्रदर्शन के जरिए पिछले ढाई सालों में सिंधिया ने इंदौर (indore) में पैर जमाने की कोशिश तो काफी की, लेकिन भाजपा की नेताओं की बड़ी लॉबी ने उन्हें सक्सेस नहीं होने दिया। ऐसे में अब वो ये बात समझ गए हैं, कि विजयवर्गीय (vijayvargiya) का हाथ थामे बिना इंदौर में अपना दबदबा कायम करना उनके लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है, और उनकी मौजूदा कोशिशों को हम उनकी इसी मंशा के साथ जोड़कर देख सकते हैं। 

एक नजर सिंधिया-विजयवर्गीय की अदावत पर 

सूबे की सियासत में जब भी कभी दो चिर प्रतिद्वंदियों की जब भी बात होगी। उसमें दो नाम जरूर शामिल होंगे, ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) और कैलाश विजयवर्गीय। वजह साफ है कि कभी अलग अलग दलों में रहे तो अब एक दल में आने के काफी समय बाद तक दोनों के रिश्तों के बीच का मनमुटाव गाहे बगाहे सामने आता रहा। अदावत का ये दौर तब से दिखा जब 2010 में एमपीसीए के चुनाव (election of MPCA) में दोनों दो बार आमने-सामने थे। उस समय इस चुनाव ने एक राजनीतिक रंग ले लिया था, खासकर विजयवर्गीय गुट ने। इसमें दोनों बार सिंधिया (scindia) ने विजयवर्गीय को शिकस्त दी थी। दोनों के बीच के टकराव का आलम यहां तक था, कि सिंधिया के दलबदल के बाद कई दफा विजयवर्गीय पार्टी लाइन से हटकर सिंधिया और सिंधिया खेमे को निशाने पर लेने से नहीं चूके। 


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News Editor

Devendra Singh

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