MP News: पांढुर्णा में शुरू हुआ गोटमार का खूनी खेल, वो प्रेम कहानी जिसकी याद में दो पक्ष एक दूसरे पर बरसातें है पत्थर

Tuesday, Sep 03, 2024-02:32 PM (IST)

पांढुर्णा (पंकज मदान) : गोटमार मेले का आयोजन मध्यप्रदेश के पांढुर्णा शहर के जाम नदी की पुलिया पर हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन किया जाता है। मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों की इस क्षेत्र में आबादी ज्यादा है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है। शब्द के अनुरूप मेले के दौरान पांढुर्णा और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और सूर्यउदय होते ही पलाश के पेड़ को झंडा स्वरूप जाम नदी के बीचों बीच गाड़ देते है, और सुबह लगभग 9 बजे से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस घटना में कई लोग घायल हो जाते हैं। इस पत्थर की बारिश वाले खेल में कई व्यक्तियों की मृत्यु भी हो चुकी है।

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परंपरा

इसकी शुरुआत 17वीं ई के लगभग मानी जाती है। नगर के बीच से बहने वाली जाम नदी के उस पार सावरगांव व इस पार पांढुर्णा कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के दिन यहां बैलों का त्यौहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन सावरगांव के कावले परिवार द्वारा पलाश के वृक्ष को काटकर अपने घर लाकर, उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। दूसरे दिन सुबह होते ही लोग उस वृक्ष की एवं झंडे की पूजा करते है और फिर प्रात: 9 बजे से शुरु हो जाता है एक दूसरे को पत्थर मारने का खेल।

ढोल ढमाकों के बीच भगाओ-भगाओ के नारों के साथ कभी पांढुर्णा के खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं तो कभी सावरगांव के खिलाड़ी। दोनों एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढ़केलने का प्रयास करते है और यह क्रम लगातार चलता रहता है। दर्शकों का मजा दोपहर बाद 2 बजे से 5 बजे के बीच बढ़ जाता है। पांढुर्णा पक्ष के खिलाड़ी चमचमाती तेज धार वाली कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए उसके पास पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये लोग जैसे ही झडे के पास पहुंचते हैं। सावरगांव पक्ष के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की भारी मात्रा में वर्षा करते है और पांढुर्णा वालों को पीछे हटा देते हैं। और यह सिलसिला दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोगों को रोमांचित करने वाला होता है।

शाम होते होते पांढुर्णा पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं मारो- मारो के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते है और झंडा तोड़ने वाले खिलाड़ी झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है। झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है। पत्थरबाजी की इस परंपरा के दौरान जो लोग घायल होते है, उनका शिविरों में उपचार किया जाता है और गंभीर रूप से घायल मरीजों को नागपुर भेजा जाता है।

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किवदंती

इस मेले के आयोजन के संबंध में कई प्रकार की किवंदतियां हैं। इन किवंदतियों में सबसे प्रचलित और आम किवंदती यह है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुर्णा का लड़का सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। उस समय जाम नदी में गर्दन तक पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के और लड़की पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दिया। पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई।

दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किल्ले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।

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बुराईयां

गोटमार मेले में समय के साथ कई बुराइयां भी शामिल हो गई हैं। गोटमार के दिन ग्रामीण मदिरा पान करते हैं तथा प्रतिबंधों के बावजूद गोफन के माध्यम से तीव्र गति और अधिक दूरी तक पत्थर फेंकते हैं जिससे दर्शकों के घायल होने का खतरा बढ़ जाता है। जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के उपाय किए जाते हैं। पांढुरना में इस दिन शराब विक्रय पर पाबंदी लगाई जाती है तथा गोफन से पत्थर फेंकने वालों की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है। प्रतिबंध के बावजूद भी पत्थर फेंकने वाले खिलाड़ी एवं अन्य कई लोग शराब के नशे में झूमते घूमते दिखाई पड़ते हैं।

प्रशासनिक कार्यवाही

आस्था से जुड़ा होने के कारण इसे रोक पाने में असमर्थ प्रशासन व पुलिस एक दूसरे का खून बहाते लोगों को असहाय देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते। निर्धारित समय अवधि में पत्थरबाजी समाप्त कराने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को बल प्रयोग भी करना पड़ता है। कई बार प्रशासन ने पत्थरों की जगह बीस हजार रबर की छोटे साइज की गेंद उपलब्ध कराई थी, परंतु दोनों गांवों के लोगों ने गेंद का उपयोग नहीं करते हुए पत्थरों का उपयोग ही किया था। थकहार कर नगरपालिका द्वारा दोनों गांवों के लोगों को नदी के दोनों किनारों पर पत्थर उपलब्ध कराता है। नदी के दोनो और स्वास्थ विभाग द्वारा मेडीकल कैंप लगा कर घायलों का प्राथमिक ईलाज किया जाता है।

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गोली चालान

1978 -1987 में गोली चालन हुआ था जिसमें बम्हनी के देवराव सकर्डे और जटावा वार्ड के कोठी राम सांभारे के आंख में गोली लगी थीं जिसमे दोनों की मौत हो गई थीं।
1955 से शुरू हुआ मौत का सिलसिला

22 अगस्त 1955 को सवारगांव के महादेव सांभारे की मौत हो गई थी। अभी तक कुल 13 लोग मारे जा चुके है। गोटमार में अब केवल दुश्मनी निकाली जाती है, आपसी विवाद को तूल देकर एक दूसरे पर वार कर घायल किया जाता है। इसे बंद कर देना चाहिए।


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Content Writer

meena

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