कभी MP में सरकार बनाते थे महाकौशल-विंध्य, आज एक मंत्री पद के लिए लड़ रहे जंग

1/4/2021 5:25:30 PM

जबलपुर (विवेक तिवारी): मध्यप्रदेश के मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार भी महाकौशल और विंध्य इलाके में सूखा ही रहा। लेकिन सूखे के बावजूद राहत की बारिश तो यहां नहीं हो रही। यह दूसरी बात है कि यहां पर आग के अंगारे फूट फूट कर निकलने लगे हैं। ऐसे में ये अंगारे आने वाले नगरीय निकाय  के चुनाव में भी इफेक्ट कर सकते हैं, और यह बीजेपी के लिए बड़ा साइड इफेक्ट हो सकता है। कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में महाकौशल के साथ-साथ विंध्य का कद भी सबसे ऊंचा कर दिया गया था। लेकिन राजनैतिक परिवर्तन के बाद सरकार बदली और अब महज एक मंत्री पद के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

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लिहाजा गुस्सा भी सामने है। पहले की तरह इस बार भी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, तो जबलपुर की पाटन विधानसभा से विधायक अजय विश्नोई महाकौशल के साथ-साथ विंध्य को भी तवज्जो ना मिलने के चलते बेहद आक्रामक मूड में हमला करने लगे, और गुस्सा जाहिर कर दिया। अगर आप उनके ट्वीट को देखें तो सीधी जंग उन्होंने छेड़ दी है, उन्होंने लिखा कि महाकौशल के 13 भाजपा विधायकों में से एक को तथा रीवा संभाग में 18 भाजपा विधायकों में से एक को राज्य मंत्री बनने का सौभाग्य मिला है। महाकौशल और विंध्य अब फड़फड़ा सकते हैं, उड़ नहीं सकते। महाकौशल और विंध्य को अब खुश रहना होगा, और खुशामद करते रहना होगा उन्होंने एक और ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने बता दिया कि किस तरह से महाकौशल विंध्य के मुकाबले अन्य इलाकों को जमकर तवज्जो दी गई है। यह ट्वीट वर्तमान में मध्य प्रदेश में चल रही बीजेपी में राजनीतिक खींचतान को जाहिर करता है। तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि यहां पर सिंधिया, शिवराज से ऊपर हैं। तभी तो उनके अधिकांश समर्थक को मंत्री पद से नवाज  दिया गया और अब जो बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं, उनका गुस्सा सामने है।

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ऐसी तस्वीर पहले कभी नहीं बनती थी, बीजेपी के इतिहास में जब भी सरकार बनी। तब-तब महाकौशल को तवज्जो मिली इसके साथ ही बघेलखंड को भी अच्छी तवज्जो मिलती रही है। लेकिन इस बार कि सरकार सिंधिया के भरोसे बनी। लिहाजा इन इलाकों को तो पूरी तरह से छोड़ ही दिया गया है। कांग्रेस ने जहां यह बता दिया था कि महाकौशल में पूर्ण दबदबा रहेगा। उसके मुकाबले तो बीजेपी ने महाकौशल को दरकिनार ही कर दिया अब सोचिए कि 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी महाकौशल से थे। विधानसभा अध्यक्ष के साथ जबलपुर से ही 2 कैबिनेट मंत्री बना दिए गए थे। बघेलखंड को भी पूर्ण तवज्जो दी गई थी। लेकिन शिवराज सरकार इसके विपरीत वह तवज्जो नहीं दे पाई। महाकौशल जैसे बड़े इलाके में सिर्फ एक राज्यमंत्री बालाघाट की परसवाड़ा सीट से रामकिशोर कावरे के रूप में दिया गया। इससे आप समझ सकते हैं कि महाकौशल का राजनैतिक कद कितना कम कर दिया गया है। एक वक्त था यहां पर जब महाकौशल से ही मध्य प्रदेश की सियासत चलती थी। लेकिन धीरे-धीरे महाकौशल का कद कम हो गया। कद कम होने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है, कि कभी  महाकौशल के जबलपुर से बीजेपी के 8 में से 7 विधायक हुआ करते थे यह सिलसिला कई सालों तक चला लेकिन  2018 के चुनाव में यह आंकड़ा 4-4 का हो गया। शायद यही से महाकौशल का कद बीजेपी में कम हुआ और जबलपुर का हाल सामने है।

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2018  के बाद बदली तस्वीर…
महाकौशल की राजनीति में 2018 के पहले सब कुछ अच्छा था। इसके साथ ही बघेलखंड में भी यह तय था, कि सरकार बनाने के लिए यहां से अधिकांश विधायक अपना योगदान देंगे। लेकिन वक्त के साथ ही तस्वीर बदलती गई। दिग्विजय सरकार में भी महाकौशल का दबदबा रहा, तो तीन बार इसके पहले जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे। तो जबलपुर को तवज्जो मिलती रही। स्वर्गीय पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी का कद यहां से बड़ा ही रहा। लेकिन धीरे-धीरे महाकौशल की राजनीति सिमट गई। खासकर बीजेपी के लिहाज से 2013 के चुनाव में स्वास्थ्य मंत्री रहे अजय विश्नोई को हार मिली। तो उन्होंने पाटन विधानसभा से चुनाव ना लड़ने का ही मन बना लिया था। लेकिन 2018 आते-आते पाटन विधानसभा में हार की संभावनाओं को लेकर ही वे चुनावी मैदान पर उतरे। लेकिन इस बार किस्मत ने उनका साथ दिया और वे चुनाव जीत गए। लेकिन वरिष्ठ होने के बाबजूद जब उन्हें कांग्रेस की सरकार जाने के बाद मंत्री पद नहीं मिला। तो वे लगातार हमलावर हैं। 2018 से ही महाकौशल की सियासत में एक बदलाव और हुआ अप्रत्यक्ष तौर से खासकर मध्यप्रदेश की राजनीति के लिए यह बड़ा परिवर्तन है। 2018 के चुनाव में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह रहे। इस दौरान वह अपने गृह जिले में ही बीजेपी को जीता न सके, उनके अध्यक्ष के  कार्यकाल में ही यहां से 8 सीटों में बीजेपी सिर्फ 4 सीटें ही जीत सकी। जबकि इसके पहले यहां पर 7 सीटें करीब 3 पंचवर्षीय तक रहा करती थी। यहां से धीरे-धीरे कद महाकौशल का घटता गया। 2018 के चुनाव परिणाम में भी महाकौशल का वह दबदबा नहीं रहा। लिहाजा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी जबलपुर को वह खास तवज्जो नहीं दे सके। जबलपुर को पिछले पंचवर्षीय में एक राज्य मंत्री शरद जैन के रूप में मिला था। उसके विपरीत अगर कांग्रेस सरकार की बात करें तो जबलपुर संभाग से ही मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और दो कैबिनेट मंत्री भी जबलपुर से ही थे। लिहाजा अब बीजेपी सरकार में भी यही अपेक्षा की जा रही है, कि जबलपुर का दबदबा बढ़े। लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार जगह नहीं मिली और अब सिर्फ 4 मंत्री पद ही शेष हैं। लिहाजा अभी भी मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना तो नजर नहीं आती इस बीच आक्रोश खुलकर सामने है।

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राजेंद्र शुक्ला, अजय विश्नोई बड़े फैक्टर...
बघेलखंड और महाकौशल की राजनीति में इस वक्त अजय विश्नोई और राजेंद्र शुक्ला बड़े फैक्टर के रूप में निकल कर सामने आ रहे हैं। जिसमें अजय विश्नोई तो खुलकर बीजेपी सरकार पर हमले बोल रहे हैं, तो राजेंद्र शुक्ला शांत भाव से बैठे हुए हैं। लेकिन राजेश शुक्ला की वकालत एक तरह से अजय विश्नोई ही कर रहे हैं। जिसमें वे बघेलखंड का भी बार-बार नाम ले रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो आने वाले नगरीय निकाय चुनाव में इसका इफेक्ट भी निकल कर सामने आ सकता है। क्योंकि यहां वरिष्ठ नेताओं को तवज्जो नहीं दी गई है। अब यहां पर अजय विश्नोई एक तरह से स्वयं के लिए ही मंत्री पद की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह सच है कि शिवराज सरकार के पास महाकौशल में और भी बड़े ऑप्शन थे। आज जबलपुर में तो राज्य मंत्री की सौगात तो दी जा सकती थी। वहीं बघेलखंड में भी एक या दो मंत्री और दिए जा सकते थे। लेकिन जब यह मांग नहीं पूरी हुई, तो अब पारा पूरी तरह से चढ़ा हुआ है। अब देखने वाली बात होगी कि इसका इफेक्ट और कितना नजर आएगा। लेकिन शिवराज सिंह चौहान जिस  तरह से आक्रामक मूड में नजर आ रहे हैं उनकी आक्रामकता पर विराम वरिष्ठ विधायकों की नाराजगी से लगेगा, या फिर इन सब बातों को दरकिनार करके आगे बढ़ते रहेंगे।


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Vikas Tiwari

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