बाबा महाकाल ने भगवान विष्णु को सौंपी सत्ता... आधी रात को गोपाल मंदिर तक निकली पालकी, जानिए सत्ता हस्तांक्षरण की पूरी विधि
Monday, Nov 07, 2022-01:00 PM (IST)

उज्जैन(विशाल सिंह): उज्जैन में महाकाल की सवारी को धूमधाम के साथ गोपाल मंदिर तक ले जाया गया। जहां एक दूसरे को बिल्व पत्र की माला स्पर्श करवा कर पहनाई गई। मान्यता है कि भगवान शिव आज से सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या करने चले जाते हैं। इस दौरान दोनों ही देवों को उनकी प्रिय वस्तु का भोग भी लगाया जाता है। इससे पहले देवशयनी एकादशी के बाद से 4 महीने तक भगवान शिव सृष्टि संभाल रहे थे।
बाबा महाकाल की सवारी रात 11:00 बजे महाकाल मंदिर के सभा मंडप चांदी की पालकी में रवाना हुई मंदिर के मुख्य द्वार पर बाबा को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया भगवान महाकाल द्वारकाधीश मंदिर पहुंचे 2 घंटे के पूजन और अभिषेक के बाद बाबा रात 1:30 बजे वापस महाकाल मंदिर लौटे।
कैसे होता है सत्ता हस्तांतरण
हर साल वैकुंठ चतुर्दशी पर बाबा महाकालेश्वर मंदिर से आधी रात को भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है। यहां सावन के सोमवार को निकलने वाली सवारी में हरिहर मिलन की तरह होता है। महाकाल मंदिर के पुजारी आशीष गुरु ने बताया कि हरि हर के समीप विराजते हैं। यहां सत्ता एक दूसरे को सौंपने के लिए दोनों का पूजन किया जाता है। उन्हें विशेष भोग लगाया जाता है। इस दौरान भगवान श्री महाकालेश्वर श्री द्वारकाधीश का पूजन किया जाता है। उनका दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से पंचामृत अभिषेक पूजन किया जाता है। इसके बाद भगवान महाकाल का भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की माला पहनाई जाती है और पूजन किया जाता है। वही भगवान विष्णु को शिव की प्रिय बेलपत्र की माला पहनाई जाती है। इस दौरान दोनों भगवान को पहनाई जाने वाली माला एक दूसरे को स्पर्श कराई जाती है। यानी भगवान विष्णु को तुलसी स्पर्श कराकर शिव को और भगवान शिव को बेलपत्र की माला स्पर्श कराकर भगवान विष्णु को पहनाई जाती है। इस तरह दोनों के प्रिय मालाओं को एक दूसरे को पहना कर सत्ता का हस्तांतरण होता है। दो देवताओं के इस दुर्लभ मिलन को देखने भक्त साल भर प्रतीक्षा करते हैं। यह अनूठी परंपरा वैष्णव और शैव संप्रदाय के संबंध व सौहार्द का प्रतीक है।