ओरछा के जहांगीर महल के दक्षिणी भाग में खुदाई का काम शुरु, उत्खनन में मकान और सामान के अवशेष मिले

Tuesday, Dec 27, 2022-05:26 PM (IST)

निवाड़ी (कृष्ण कांत बिरथरे): ओरछा राज्य (Orchha State) की स्थापना 15वीं सदी में बुंदेला राजा रूद्र प्रताप सिंह (Raja Rudra Pratap Singh) ने की थी। ओरछा अपने राजा महल, रामराजा मंदिर, शीश महल, जहांगीर महल आदि के लिये प्रसिद्ध है। बुन्देला शासकों (bundela Rulers) के दौरान ही ओरछा में बुन्देली और मुगल स्थापत्य कला का विकास हुआ था। ओरछा में बुन्देली और मुगल स्थापत्य के उदाहरण स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं, जिसमें यहां की इमारतें, मंदिर, महल, बगीचे आदि शामिल हैं। स्थापत्य कला में मुगल (Mughal) स्थापत्य का प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है। 500 साल पहले भी 15वीं शताब्दी में ओरछा सबसे विकसित रियासतों में शामिल हुआ करता था। उस समय भी यहां पर सर्वसुविधायुक्त बस्तियां थी और इसमें राजा के मंत्री और सूबेदार साथ रहते थे। ओरछा की इस विकसित संस्कृति की जानकारी यहां पर पुरातत्व विभाग द्वारा कराई जा रही खुदाई में सामने आ रही है। यहां पर 500 साल पुरानी विकसित संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीजे हासिल हुई है। 

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खुदाई में मिले मुगल काल की बेशकीमती सामान   

शासन के निर्देश के बाद ओरछा के जहांगीर महल (Jahangir Mahal) के दक्षिणी भाग में खुदाई का काम कराया जा रहा है। किले परिसर के 600 मीटर के क्षेत्र में खुदाई और सफाई का काम किया जा रहा है। खुदाई में उस समय के मकान आदि के अवशेष एवं अन्य सामग्री भी मिली है। मजदूरों से संभलकर खुदाई कराई जा रही है। अब तक की खुदाई में यहां पर 2 बस्तियाों के अवशेष मिल चुके हैं। पुराने आलीशान मकानों के अवशेष के साथ ही सड़क उस समय के मिट्टी और टेराकोटा के बर्तनों के साथ ही अन्य चीजें मिल रही है। इन कॉलोनियों को देखकर पता चलता है कि उस समय भी ओरछा राज्य को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने के लिए राजा द्वारा अपने मंत्री, बजीर एवं सूबेदारों को कॉलोनी बनाकर रखा जाता होगा। इससे सभी की सुरक्षा के साथ ही राजकीय कार्य में सुविधा होती होगी। यहां पर मिल रहे अवशेषों से स्पष्ट होता है की यह पूरा निर्माण एक सुरक्षित कैंपस नुमा एरिया रहा होगा।

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ओरछा का इतिहास

महाराजा रूद्र प्रताप सिंह (Rudra Pratap Singh) ने रविवार 29 अप्रैल सन 1531 को ओरछा किले (Orchha Fort) की नीव डाली गई और उसके कुछ माह पश्चात 1531 में ही एक चीता से गाय को बचाते समय उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद ओरछा का राज्य उनके बड़े बेटे भारती चन्द्र ने संभाला और 1554 में पुत्रहीन वह स्वर्गवासी हो गये। आखिर में उनके छोटे भाई मधुकर शाह (Madhukar Shah) ने राज्य की बागडोर संभाली और 1554 से 1592 तक मधुकारशाह ओरछा के राजा बने रहे और इसी काल में ओरछा में राम मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, चर्तुभुज मंदिर आदि का निर्माण हुआ और लगभग 252 वर्ष तक ओरछा राजधानी रही और उसके बाद सन 1840 मे यहां से हटाकर टीकमगढ़ को राजधानी बनाया गया। कहते है कि भगवान श्रीराम (Lord Ram) ने अयोध्या से ओरछा आते समय महारानी कुंवर गणेश से यह शर्तानुसार तय कर लिया था कि जहां बे रहेंगे वहां कोई दूसरा राजा न रहेगा। इसलिये ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप है और राम की प्रतिष्ठापना भी ओरछा में मंदिर नहीं महारानी के अपने महल में ही है।  


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News Editor

Devendra Singh

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