5 बेटियों के सिर से मां का उठा साया, अस्पताल से शव घर ले जाने तक के नहीं थे पैसे, फिर पुलिस कांस्टेबल ने निभाया अपनों जैसा फर्ज
Monday, Nov 17, 2025-08:03 PM (IST)
(जबलपुर): गरीबी इंसान को इतना लाचार कर देती है कि वो चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता। संस्कारधानी जबलपुर में ऐसी ही घटना घटी है। पाँच बेटियों के सिर से मां का साया उठ गया, लेकिन आर्थिक तंगी इतनी थी कि मां का शव अस्पताल से घर तक ले जाने के लिए एंबुलेंस का खर्च भी नहीं था।
हजारों की भीड़ में कोई भी आगे नहीं आया, न ही सरकार और न ही प्रशासन की कोई योजना। फिर विषम परिस्थिति में पुलिस एक कर्मचारी सामने आया और वो कर दिया जो कोई और नहीं सका। एंबुलेंस की व्यवस्था कर न सिर्फ परिवार का बोझ हल्का किया, बल्कि यह भी साबित किया कि इंसानियत आज भी जिंदा है।
दरअसल जबलपुर शहर में मानवता का ऐसा उदाहरण सामने आया जिसने हर किसी का दिल छू लिया। रांझी थाना क्षेत्र की रहने बाली गीता वंशकार ने मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। परिवार पहले से ही बदहाली और आर्थिक संकट से जूझ रहा था। इतना भी पैसे नहीं थे कि वे अपनी माँ के शव को एंबुलेंस में घर तक ले जा सकें। माँ की मौत के बाद बच्चियाँ और उनका पिता किसी उम्मीद के सहारे अस्पताल के वार्ड में बैठे रहे। उनके चेहरे पर मातम और बेबसी साफ झलक रही थी। आस-पास खड़े लोग भी उनकी हालत देख रहे थे लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नही आया। बेटियों की रुलाई, पिता की टूटी हुई हिम्मत और उनके सामने पड़ी माँ की निर्जीव देह बेहद पीड़ादायक थी।
इसी बीच मेडिकल केम्पस में बनी पुलिस की प्रीपेड एंबुलेंस सेवा में मौजूद आरक्षक संजय सनोडिया के पास बेटियां गईं और काँपती आवाज़ में अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा कि उनकी माँ अब दुनिया में नहीं है, और वे इतने असहाय हैं कि अंतिम यात्रा के लिए एंबुलेंस भी कर पा रहे हैं। यह सुनते ही आरक्षक संजय के मन में करुणा उमड़ पड़ी। बिना एक पल गंवाए उन्होंने अपने स्तर पर पूरा प्रबंध किया।
मानवता को सर्वोपरि मानते हुए आरक्षक संजय सनोडिया ने निःशुल्क एंबुलेंस की व्यवस्था कराई, ताकि बेटी अपनी माँ के पार्थिव शरीर को सम्मानपूर्वक घर ले जा सकें। उन्होंने न सिर्फ एंबुलेंस उपलब्ध कराई बल्कि पूरी प्रक्रिया में परिवार के साथ खड़े रहे। बच्चियों ने नम आँखों से उन्हें धन्यवाद दिया और दुआएँ देते हुए कहा कि वे इस मदद को जीवनभर नहीं भूलेंगी।
गरीबी का दर्द सबसे ज्यादा तब महसूस होता है जब कोई अपना दुनिया से विदा हो जाए और उसे घर तक ले जाने का भी साधन न हो। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में अगर कोई मदद का हाथ बढ़ाए, तो उम्मीद की एक किरण फिर से जन्म लेती है। आरक्षक संजय सनोडिया ने यही उम्मीद जगाईएक टूटते परिवार को संभाला, और दिखा दिया कि इंसानियत आज भी जिंदा है।

