खबर जरा हट के... सरपंची छोड़ महिला बनी शासकीय शिक्षक, अब आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारेगी

4/20/2023 7:21:06 PM

खंडवा (निशात सिद्दीकी) : सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति में आते हुए तो अब तक आपने कई लोगों को देखा होगा। लेकिन, राजनीति को त्याग कर शिक्षा के क्षेत्र में उजियारा फैलाने की एक चाह शायद पहली बार देंखगे। दरअसल मध्यप्रदेश के खंडवा में एक महिला ने सरपंच पद को त्यागकर शिक्षिका के रूप में अपनी नई राह चुनी है। खासतौर से आदिवासी बच्चों के जीवन को बदलने की चाह उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में खींच लाई है। सरपंच से शिक्षिका बानी महिला प्रदेश के दमोह जिले के सैजरा लखरौनी गांव की सरपंच थी। जो अब एक शासकीय शिक्षिका बन गई है।

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मध्यप्रदेश के दमोह जिले एक एक छोटे से ग्राम सैजरा लखरौनी में सरपंच रही सुधा सिंह अब सरपंची छोड़ शासकीय शिक्षिका बन गई है। हिंदी में सुधा का अर्थ अमृत होता है। यानी अपने नाम के अर्थ के अनुरूप ही अब सुधा उन बच्चों के जीवन में शिक्षा रूपी अमृत घोलेंगी, वह भी ठेठ आदिवासी अंचल में रहते हैं। दरअसल, सुधा अबतक दमोह के पथरिया के अंतर्गत ग्राम पंचायत सैजरा लखरौनी में सरपंच पद रहीं हैं। लेकिन, वह कुछ कर गुजरना चाहती थी। ऐसे में उसने   शिक्षा विभाग अंतर्गत वर्ग 3 में शिक्षिका के पद की परीक्षा दी और उसका चयन भी हो गया है। सुधा को  खंडवा जिले के आदिवासी ब्लॉक खालवा  के गुलाई माल में स्थित आश्रम स्कूल में पदस्थापना मिली है। इनका कहना है कि सरपंच रहकर तो मैं एक गांव का ही विकास कर पाती। लेकिन, अब शिक्षिका बनकर कई बच्चों के जीवन में बदलाव ला सकूंगी। आदिवासी बच्चों के बीच रहकर उनके भविष्य का निर्माण करना है। सुधा ने सरपंच रहते हुए अपने गांव के विकास के लिए भी अनेकों कार्य किए हैं।

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सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग  विवेक कुमार पांडेय ने बताया कि एक महिला हमारे विभाग में ज्वाइन करने दमोह से आई थी। उसके दस्तावेज चेक करते हुए पता चला कि उसमें इस्तीफा रखा हुआ है। इस्तीफा किसी सरकारी नौकरी से नहीं, बल्कि सरपंच पद से इस्तीफा दिया हुआ था। सहायक आयुक्त विवेक कुमार पांडेय ने बताया कि जब महिला से बातचीत की तो पता चला कि दमोह के एक गांव में सरपंच बनी थी। महिला ने उन्हें बताया कि वह निर्विरोध सरपंच बनी थी। महिला ने बकायदा परीक्षा देकर यह पद प्राप्त किया है। उन्होंने आदिवासी विकास विभाग ने अपनी ज्वाइनिंग दी है। महिला से बातचीत के दौरान मैं खुद भी इस बात से प्रभावित हुआ कि महिला खुद आदिवासी है और वह आदिवासी बालिकाओं और बालक को बेहतर शिक्षा देना चाहती है। मुझे उम्मीद है कि वह यहां भी बेहतर काम करेगी।


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meena

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