हसदेव को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस, कहा- उल्टी गंगा बह रही है...कोयला खदानें निरस्त होने तक जारी रहेगा आंदोलन

6/10/2022 3:58:09 PM

रायपुर(शिवम दुबे): हसदेव अरण्य में हो रहा विरोध आज लगभग छत्तीसगढ़ का हर नागरिक जानता है। इसको लेकर रायपुर प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में समाजसेवी आलोक शुक्ला और घाटबर्रा सरपंच जयनदन पोर्ट, साल्ही सरपंच विजय कोर्राम, बासेन सरपंच श्रीपाल पोर्ते के साथ सचिव भी मौजूद रहे। जिन्होंने कई ऐसे खुलासे किए हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि छत्तीसगढ़ के समृद्ध वन क्षेत्र "हसदेव अरण्या' को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासी और अन्य वन पर आश्रित समदाय पिछले एक दशक से आंदोलनरत हैं। अपने जल, जंगल, जमीन, आजीविका और पर्यावरण को बचाने का यह संघर्ष सिर्फ हसदेव नहीं बल्कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ की लड़ाई बन चुकी है जिसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है। बावजूद इसके राज्य व केंद्र सरकार सिर्फ कार्पोरेट मुनाफे के लिए इस समृद्ध वन संपदा का-विनाश करने के लिए आतुर है। खनन परियोजना को शुरू करने के लिए आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कुचलते हुए ग्रामसभाओं के निर्णयों की अवहेलना करके फर्जी तरीके से स्वीकृति दी गई है। गांधी की बात करने वाली सरकार उनकी आत्मा गांव और ऐसा कानून के आदर्शों को सिर्फ अडानी के मुनाफे के लिए कुचल रही है। हसदेव अरण्य के विनाश से न सिर्फ पर्यावरण बल्कि कई विलुप्त प्रजाति की वनस्पति और वन्य प्राणी का अस्तित्व खतरे में है। इसके विनाश से हसदेव नदी के जल ग्रहण क्षेत्र और उस पर बने मिनी माता बाघ से निर्भर 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिचाई पर संकट होगा। इसके विनाश से मानव हाथी संघर्ष इतना विकराल होगा जिसे कभी संभाला नहीं जा सकता. इसकी सपष्ट चेतवानी भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में देते हुए सम्पूर्ण हसदेव अरण्य को खनन मुक्त करने की सिफारिश की है।

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ग्रामसभाओं के विरोध के बावजूद हुआ कोल ब्लॉक का आवंटन वर्ष 2014 के बाद ग्रामसभाओं के विरोध के बावजूद परसा, परसा ईस्ट के बासेन और केले एकाटेसन कोल ब्लॉक राजस्थान सरकार को पतुरिया दिदी छत्तीसगढ़ सरकार एवं मदनपर साऊथ आंध्रप्रदेश सरकार को आवंटित किए गए है। मदनपुर को छोड़कर सभी कोल ब्लॉक के विकास व खनन का अनुबंध अडानी समूह को दिया गया है।

राजस्थान सरकार को आवंटित कोल ब्लॉक में खनन शुरू करने के लिए अडानी समूह के द्वारा फर्जी ग्रामसभा अस्ताव के आधार पर वन स्वीकृति हासिल कर जबरन भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया राज्य व केंद्र सरकार के सहयोग से आगे बधाई जा रही है। यहां तक कि हसदेव अरण्य की ICFRE द्वारा की गई जैव विविधता अध्यनन रिपोर्ट की अनुशंसा को भी NGT द्वारा तय की गई शर्तों के विपरीत लिखवाया गया जबकि WII के द्वारा स्पष्ट रूप से खनन पर प्रतिबन्ध लगाकर सम्पूर्ण क्षेत्र को नो गो करने की सिफारिश की गई है।

परसा कोल ब्लॉक प्रभावित ग्रामसभाओं के फर्जी प्रस्ताव की जांच तक नहीं हुई-1252 हेक्टेयर क्षेत्रफल की इस खनन परियोजना से 2 गांव फतेहपुर, हरिहरपुर पूरी तरह से एवं गांव साल्ही आशिक विस्थापित होगा जिसमें लगभग 1500 ग्रामीण प्रत्यक्ष और हजारों अप्रत्यक्ष प्रभावित होंगे। इन गांवों की ग्रामसभाओं ने वर्ष 2014 से 18 के बीच 4 बार ग्रामसभाओं में विरोध दर्ज किया। बावजूद इसके वर्ष 2018 में कम्पनी और जिला प्रशासन के द्वारा फर्जी प्रस्ताव ब्लॉक मुख्यालय उदयपुर में लिखे गए। 300 किलोमीटर पदयात्रा के बाद राज्यपाल के निर्देश के बावजूद बिना ग्रामसभा जांच किए परियोजना की अंतिम वन स्वीकृति MOEFCC के द्वारा 21 अक्टूबर 2021 एवं राज्य सरकर के वन विभाग द्वारा 6 अप्रैल 2022 को जारी कर पेड़ों की कटाई शुरू करवा दी गई जिसके खिलाफ 2 मार्च से ही आदिवासी अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं।

परसा ईस्ट के बासेन के प्रथम चरण का कोयला अवैध रूप से निकाला गया। इस परियोजना को वर्ष 2012 में स्वीकृति दी गई थी जिसे दो चरणों में खनन योजना को विभाजित किया गया था. प्रथम चरण में 15 वर्षो के लिए 137 मिलियन टन कोयला निकलने के बाद दूसरे चरण की शुरुवात वर्ष 2028 से होनी थी। अडानी कम्पनी के द्वारा अभी तक मात्र 82 मिलियन टन कोयला खनन के बाद कोयला समाप्ति की बात कहकर दूसरे चरण की अनुमति हासिल की गई है।

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महत्वपूर्ण है कि दूसरे चरण में घाटबर्रा गांव पूरी तरह विस्थापित होगा जिसके भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया 2013 के भूमि अर्जन कानून से वर्ष 2019 से शुरू हुई। वर्ष 2019 में जिस ग्रामसभा प्रस्ताव को आधार बनाया गया। वहन सिर्फ ग्रामसभा फर्जी है बल्कि 3 मृतक लोगों के हस्ताक्षर हैं जिनका वर्ष 2015 के पूर्व ही निधन हो गया था। ग्रामसभा घाटवरी द्वारा भूमि अर्जन प्रस्ताव का विधिवत विरोध, प्रशासन द्वारा इसे अवैध बताने की कोशिश स्थानीय स्वशासन पर हमला. व्यापक विरोध के बाद कलेक्टर सरगुजा ने भू अर्जन हेतु पुनः ग्रामसभा आयोजित करने दिनांक 25 मई 2022 को आदेशित किया जिसके तारतम्य में सरपंच ग्राम घाटूबरों ने "छत्तीसगढ़ अनुसूचित क्षेत्र की ग्रामसभा (गठन, सम्मिलन की प्रक्रिया कार्य संचालन) नियम 1988 की धारा 7 (1) की शक्तियों के आधार पर आयोजित की जिसमे ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से भू अर्जन की प्रक्रिया का विरोध कर भू अर्जन की अधिसूचना निरस्त करने की मांग की। अडानी कम्पनी के दवाब में इस संवैधानिक विरोध को कुचलने जिला कलेक्टर के द्वारा एक दिन पूर्व का आदेश ग्रामसभा आयोजित होने के अगले दिन मिडिया में जारी किया गया। इस आदेश को आज दिनांक तक गाँव के सरपंच और सचिव को प्रेषित नहीं किया गया।

वन स्वीकृति एवं भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया निरस्त कर हसदेव अरण्य की सभी कोयला खदाने निरस्त होने तक जारी रहेगा। आंदोलन कल ही मिडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान सरकार को आवंटित तीनों कोल ब्लॉक की प्रक्रिया स्थगित की गई है। हमारा स्पष्ट कहना है कि संविधान की पांचवी अनुसूचित पेसा 1996 एवं वनाधिकार बनाधिकार मान्यता अधिनियम 2006 तथा भूमि अर्जन कानून 2013 के प्रावधानों और ग्रामसभा की निहित शक्तियों के तहत हमारी ग्रामसभाओं के विरोध के विरोध स्वरुप राज्य सरकार तत्काल इन तीनों कोल ब्लॉक को निरस्त करने की कार्यवाही करें। जब तक इन खनन परियोजनाओं को बारी वन स्वीकृति एवं जारी भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को निरस्त कर हसदेव अरण्य को संरक्षण करने को घोषणा नहीं होती हमारा आन्दोलन यथावत जारी रहेगा।


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Content Writer

meena

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