गुना में दुखद घटना, नदी में डूबने से दो सगे भाइयों की मौत, आखरी सांस तक थामा रहा दोनों ने हाथ
Sunday, Jun 22, 2025-04:57 PM (IST)

गुना। (मिसबाह नूर): कभी-कभी किस्मत इतनी बेरहम होती है कि इंसान की सारी मेहनत, सारे ख़्वाब और पूरी जिंदगानी बस एक पल में बह जाती है... और पीछे रह जाते हैं टूटे हुए मां-बाप, बहनें, और एक ऐसा गांव, जहां अब हर आंख नम है। गुना जिले से एक ऐसी हृदयविदारक घटना सामने आई है, जिसने हर किसी का दिल झकझोर कर रख दिया है। कोहन नदी के बहाव में बहने वाले दो सगे भाई करन और सागर अब कभी लौटकर नहीं आएंगे।राजस्थान से लहसुन बेचकर लौटते वक़्त, नेवरी गांव के ये दो भाई खुशी-खुशी अपने घर की ओर बढ़ रहे थे। शायद रास्ते भर वे यही सोच रहे होंगे कि मां को पैसे देकर खुश कर देंगे, बहनों के हाथ पीले करने का सपना पूरा करेंगे... लेकिन किसे पता था कि किस्मत ने उनके लिए एक और ही मंज़र तय कर रखा था।
छबड़ा से लौटते समय जब ये दोनों भाई कोहन नदी पहुंचे, तो बारिश की वजह से पानी का बहाव बहुत तेज़ था। लेकिन समय पर घर पहुंचने की जिद और शायद अज्ञानता उन्हें उस नदी में उतार ले गई। ट्रैक्टर-ट्रॉली तो जेसीबी की मदद से बाहर आ गई... लेकिन करन और सागर वे दोनों नदी की धारा में कहीं गुम हो गए।
36 घंटे तक मां-पिता, बहनें और पूरा गांव डूबती सांसों के साथ बस एक खबर का इंतज़ार करता रहा बच्चे मिल जाएं... और फिर, रविवार सुबह 7 बजे, जब एनडीआरएफ की टीम ने पुलिया के नीचे दोनों भाइयों के शव बरामद किए, तो हर आंख छलक उठी।
आपको जानकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे कि जब दोनों भाई मिले तो एक-दूसरे के साथ थे, हाथ से हाथ पकड़े हुए । एक भाई के हाथ में दूसरे का हाथ अब भी था। शायद अंतिम क्षणों में, जब तेज़ बहाव ने उन्हें खींच लिया, जब दम घुटने लगा, सांस रुकने लगी... तब उन्होंने एक-दूसरे को थामे रखा, शायद सोचकर कि हम साथ हैं, कुछ नहीं होगा। करन 11वीं का छात्र था। सागर 12वीं में पढ़ता था। उनकी तीन बहनें हैं, जिनका ब्याह भी नहीं हुआ। और अब मां-बाप... जिन्हें अपने दोनों जवान बेटे एक ही दिन, एक ही समय, एक ही नदी में गंवाकर कुछ भी समझ नहीं आ रहा। आज वह घर, जिसमें लहसुन बेचकर लौटने की खुशबू आने वाली थी... मातम में डूब चुका है।
विधायक ऋषि अग्रवाल, कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल, एसपी अंकित सोनी खुद मौके पर पहुंचे, राहत कार्य में लगे रहे। लेकिन अब सवाल उठता है कोहन नदी का वह पुल, जो बरसों से जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है, आखिर उसकी सुध कब ली जाएगी? केवल 5-6 फीट ऊंचा वह पुल, सूखे में भी डराने वाला, आज मौत का सबब बन गया। कितनी विडंबना है... दो भाई, जिनकी जिंदगियां अभी शुरू भी नहीं हुई थीं, जिनकी मां ने आज तक उनके बिना कभी खाना नहीं खाया था... अब कभी लौटकर नहीं आएंगे। बस यादें रहेंगी, और वो तस्वीर, जब दोनों भाई आख़िरी सांस तक एक-दूसरे का हाथ थामे रहे।
मां बेसुध है, बहनें बदहवास हैं, पिता की आंखें उस दर्द को बयां कर रही हैं जिसे शब्दों में कह पाना मुमकिन नहीं। शायद अब वक़्त आ गया है कि हम पुलों की नहीं, इंसानों की कीमत समझें. वह चाहे गरीब हो, किसान हो या सुदूर सुनसान गांव का रहने वाला हो, उनका जीवन भी अमूल्य है सड़कें नहीं, ज़िंदगियों को बचाने की पहल करें। वरना ये बहाव यूं ही सब कुछ बहा ले जाएगा, और हम केवल आंखें पोंछते रह जाएंगे।