मनरेगा बना जी राम जी...क्या नाम बदलने से बदलेगी योजना की हकीकत?

Thursday, Dec 18, 2025-03:27 PM (IST)

एमपी डेस्क : केंद्र की मोदी सरकार ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा के नाम और संरचना में बड़ा बदलाव किया है। लोकसभा ने बृहस्पतिवार को विपक्ष के विरोध के बीच ‘विकसित भारत-जी राम जी विधेयक, 2025' को पारित कर दिया। प्रस्ताव के मुताबिक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) का नया नाम ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण’ (VB G RAM G) होगा। इसके साथ ही ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले गारंटीड रोजगार के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन करने का दावा किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बदलाव से योजना की जमीनी हकीकत भी बदलेगी या हालात जस के तस रहेंगे?

नाम बदला, व्यवस्था वही?

मनरेगा का इतिहास बताता है कि नाम बदलने से व्यवस्था में अपने-आप सुधार नहीं होता। शुरुआत में इस योजना का नाम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (NREGA) था। यूपीए सरकार के दौर में इसमें महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया, लेकिन इससे ग्रामीणों को मिलने वाले रोजगार की स्थिति में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया। गारंटी कागजों में रही, जबकि काम और भुगतान के मोर्चे पर समस्याएं वैसी की वैसी बनी रहीं।

100 दिन की गारंटी, 50 दिन की हकीकत

योजना में आज भी साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी का प्रावधान है, लेकिन देश का कोई भी राज्य औसतन 100 दिन का काम उपलब्ध नहीं करा पाया। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में प्रति परिवार औसतन सिर्फ 50.35 दिन ही रोजगार मिला है। ऐसे में 125 दिन की नई घोषणा कितनी प्रभावी होगी, इस पर संदेह बना रहना स्वाभाविक है।

आजीविका का सहारा, पर अनियमितता भारी

मनरेगा ग्रामीण परिवारों के लिए तब अहम बनती है, जब उनके पास रोजगार के अन्य विकल्प नहीं होते। सूखा, बाढ़ या कृषि ऑफ-सीजन में यही योजना जीवनरेखा साबित हो सकती है। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि काम न तो नियमित मिलता है और न ही समय पर मजदूरी। देरी से भुगतान और काम की कमी के कारण मजदूरों का भरोसा लगातार कमजोर हुआ है।

एक योजना, अलग-अलग मजदूरी

मनरेगा केंद्र प्रायोजित योजना है, लेकिन मजदूरी दरें राज्यों में अलग-अलग हैं। ‘एक देश, एक मजदूरी’ का सिद्धांत यहां लागू नहीं होता। नतीजतन औसत मजदूरी और काम के दिनों को जोड़कर जो सालाना आय बनती है, वह ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी में बड़ा बदलाव लाने में नाकाम रहती है। निष्कर्ष साफ है—सिर्फ नाम बदलने या दिनों की संख्या बढ़ाने से नहीं, बल्कि योजना को नियमित, पारदर्शी और उत्पादन से जोड़ने से ही वास्तविक बदलाव संभव है।


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meena

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